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चेहरे पर काले-भूरे धब्बे क्याें होते हैं? AIIMS गोरखपुर ने ढूंढा कारण और सटीक इलाज, आप भी जानें - AIIMS GORAKHPUR

एम्स गोरखपुर के अध्ययन से हुआ खुलासा, मेलाज्मा में हार्मोन की भूमिका और किफायती इलाज की जरूरत, डर्माकॉन 2025 में पेश हुआ महत्वपूर्ण शोध

गोरखपुर एम्स के डॉक्टर.
गोरखपुर एम्स के डॉक्टर. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 12, 2025, 3:31 PM IST

Updated : Feb 12, 2025, 4:11 PM IST

गोरखपुरः मेलाज्मा एक जटिल त्वचा रोग है, जिसमें चेहरे की त्वचा पर काले या भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं. यह सिर्फ सौंदर्य से जुड़ी समस्या नहीं है बल्कि इससे मानसिक तनाव, आत्मविश्वास में कमी और जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

इस बीमारी के लिए कई तरह के उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन ये महंगे, लंबे समय तक चलने वाले होते हैं. फिर भी सफलता की गारंटी नहीं होती. लेकिन अब ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस (AIIMS गोरखपुर में हुए एक महत्वपूर्ण शोध ने मेलाज्मा के कारणों और उसके प्रभावी इलाज को लेकर नए दरवाजे खोले हैं.

यह शोध त्वचा रोग विभागाध्यक्ष प्रो. सुनील कुमार गुप्ता के नेतृत्व में किया गया. जिसमें बायोकैमिस्ट्री विभाग के डॉ. शैलेंद्र द्विवेदी सह शोधार्थी रहे. यह अध्ययन इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजी, वेनेरियोलॉजी और लेप्रोलॉजी (IADVL) रिसर्च ग्रांट से वित्त पोषित था और डर्माकॉन 2025 (जयपुर) में प्रस्तुत किया गया.

मेलाज्मा को समझने की जरूरत क्यों थी: मेलाज्मा के इलाज में अब तक हाइड्रोक्विनोन, रेटिनॉइड्स, कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स, लेजर थेरेपी और केमिकल पील्स जैसी पारंपरिक विधियों का उपयोग किया जाता है. लेकिन ये न केवल महंगे हैं बल्कि प्रभाव भी सीमित होता है और बार-बार उपचार की जरूरत पड़ती है. खासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग की महिलाओं के लिए यह इलाज आर्थिक रूप से बोझ बन जाता है. इसलिए इस रोग के मूल कारणों को समझकर एक किफायती और प्रभावी इलाज विकसित करना बेहद जरूरी था.

डर्माकॉन 2025 में पेश हुआ महत्वपूर्ण शोध.
डर्माकॉन 2025 में पेश हुआ महत्वपूर्ण शोध. (Photo Credit; ETV Bharat)

शोध में क्या पाया गया: गोरखपुर एम्स के अध्ययन में 208 महिलाओं को शामिल किया गया. इसमें हार्मोनल असंतुलन और मेलनोसाइट इंड्यूसिंग ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर (MITF gene) की भूमिका को समझने की कोशिश की गई. जिसमें मुख्य निष्कर्ष यह निकला कि MITF का स्तर मेलाज्मा मरीजों में काफी कम पाया गया. जिससे यह साबित हुआ कि मेलाज्मा सिर्फ ज्यादा मेलेनिन बनने से नहीं, बल्कि त्वचा की कोशिकाओं में कुछ बदलावों से भी जुड़ा है. इसमें इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के बीच हल्का नकारात्मक संबंध पाया गया, जिससे संकेत मिलता है कि मेलाज्मा में हार्मोनल असंतुलन की भूमिका हो सकती है.

मेलाज्मा रोग से कैसे बचें: शोध में पाया गया कि सिर्फ धूप ही नहीं, बल्कि लंबे समय तक इनडोर लाइट में रहने से भी मेलाज्मा बढ़ सकता है. शोध के आधार पर इलाज में बदलाव की जरूरत है. शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि मेलाज्मा केवल एक सतही त्वचा रोग नहीं है, बल्कि यह हार्मोनल असंतुलन और आनुवंशिक कारकों से भी जुड़ा हुआ है. इसलिए, इसके इलाज में बदलाव जरूरी है.

हर मरीज का हार्मोनल प्रोफाइल जांचकर व्यक्तिगत इलाज किया जाना चाहिए. सिर्फ क्रीम और लेजर थेरेपी पर निर्भर रहने के बजाय हार्मोनल और जेनेटिक थेरेपी पर भी ध्यान देना होगा. प्रोजेस्टेरोन क्रीम या पैच जैसे टार्गेटेड हार्मोनल ट्रीटमेंट प्रभावी हो सकते हैं. कम लागत में अधिक प्रभावी इलाज विकसित करने की दिशा में यह शोध एक बड़ा कदम साबित हो सकता है.

महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण सलाह: मेलाज्मा का सही और सुरक्षित इलाज डॉक्टर से सलाह लेने पर ही संभव है. बाजार में मिलने वाली महंगी फेस क्रीम्स और क्रीमों का बिना डॉक्टर की सलाह के इस्तेमाल न करें. ये न केवल बेअसर होती हैं, बल्कि कई बार त्वचा को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं. खुद से कोई भी ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले विशेषज्ञ से परामर्श लें. भविष्य में मेलाज्मा के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव संभव है. यह शोध डर्माटोलॉजी विशेषज्ञों के लिए एक नई दिशा दिखाता है. अब मेलाज्मा के इलाज में सिर्फ त्वचा पर लगने वाली क्रीमों पर निर्भर न रहते हुए, हार्मोनल और जेनेटिक थेरेपी को भी महत्व दिया जाएगा.

किफायती उपचारों के विकास में अहम भूमिका निभाएगा: प्रो. गुप्ता ने कहा कि 'अगर हम मेलाज्मा के हार्मोनल और आनुवंशिक कारणों को समझ लें, तो इसका इलाज अधिक प्रभावी, सस्ता और स्थायी हो सकता है. इस शोध को डर्माकॉन 2025 में काफी सराहना मिली और यह भविष्य में मेलाज्मा के इलाज को नया रूप दे सकता है.

एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक (ED) मेजर जनरल प्रो. डॉ. विभा दत्ता ने कहा है कि यह शोध डर्माटोलॉजी के क्षेत्र में एक बड़ा योगदान है. हमें गर्व है कि Aiims गोरखपुर के डॉक्टर इस तरह के महत्वपूर्ण शोध कर रहे हैं. इस सम्बंध में कोई भी अधिक जानकारी के लिए त्वचा रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार गुप्ता से ओपीडी में संपर्क कर सकता है.

इसे भी पढ़ें-गोरखपुर में नकली दवाओं का काला कारोबार, गांव से लेकर शहर तक बिक्री कर मालामाल हो रहे जालसाज

गोरखपुरः मेलाज्मा एक जटिल त्वचा रोग है, जिसमें चेहरे की त्वचा पर काले या भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं. यह सिर्फ सौंदर्य से जुड़ी समस्या नहीं है बल्कि इससे मानसिक तनाव, आत्मविश्वास में कमी और जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

इस बीमारी के लिए कई तरह के उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन ये महंगे, लंबे समय तक चलने वाले होते हैं. फिर भी सफलता की गारंटी नहीं होती. लेकिन अब ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस (AIIMS गोरखपुर में हुए एक महत्वपूर्ण शोध ने मेलाज्मा के कारणों और उसके प्रभावी इलाज को लेकर नए दरवाजे खोले हैं.

यह शोध त्वचा रोग विभागाध्यक्ष प्रो. सुनील कुमार गुप्ता के नेतृत्व में किया गया. जिसमें बायोकैमिस्ट्री विभाग के डॉ. शैलेंद्र द्विवेदी सह शोधार्थी रहे. यह अध्ययन इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजी, वेनेरियोलॉजी और लेप्रोलॉजी (IADVL) रिसर्च ग्रांट से वित्त पोषित था और डर्माकॉन 2025 (जयपुर) में प्रस्तुत किया गया.

मेलाज्मा को समझने की जरूरत क्यों थी: मेलाज्मा के इलाज में अब तक हाइड्रोक्विनोन, रेटिनॉइड्स, कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स, लेजर थेरेपी और केमिकल पील्स जैसी पारंपरिक विधियों का उपयोग किया जाता है. लेकिन ये न केवल महंगे हैं बल्कि प्रभाव भी सीमित होता है और बार-बार उपचार की जरूरत पड़ती है. खासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग की महिलाओं के लिए यह इलाज आर्थिक रूप से बोझ बन जाता है. इसलिए इस रोग के मूल कारणों को समझकर एक किफायती और प्रभावी इलाज विकसित करना बेहद जरूरी था.

डर्माकॉन 2025 में पेश हुआ महत्वपूर्ण शोध.
डर्माकॉन 2025 में पेश हुआ महत्वपूर्ण शोध. (Photo Credit; ETV Bharat)

शोध में क्या पाया गया: गोरखपुर एम्स के अध्ययन में 208 महिलाओं को शामिल किया गया. इसमें हार्मोनल असंतुलन और मेलनोसाइट इंड्यूसिंग ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर (MITF gene) की भूमिका को समझने की कोशिश की गई. जिसमें मुख्य निष्कर्ष यह निकला कि MITF का स्तर मेलाज्मा मरीजों में काफी कम पाया गया. जिससे यह साबित हुआ कि मेलाज्मा सिर्फ ज्यादा मेलेनिन बनने से नहीं, बल्कि त्वचा की कोशिकाओं में कुछ बदलावों से भी जुड़ा है. इसमें इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के बीच हल्का नकारात्मक संबंध पाया गया, जिससे संकेत मिलता है कि मेलाज्मा में हार्मोनल असंतुलन की भूमिका हो सकती है.

मेलाज्मा रोग से कैसे बचें: शोध में पाया गया कि सिर्फ धूप ही नहीं, बल्कि लंबे समय तक इनडोर लाइट में रहने से भी मेलाज्मा बढ़ सकता है. शोध के आधार पर इलाज में बदलाव की जरूरत है. शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि मेलाज्मा केवल एक सतही त्वचा रोग नहीं है, बल्कि यह हार्मोनल असंतुलन और आनुवंशिक कारकों से भी जुड़ा हुआ है. इसलिए, इसके इलाज में बदलाव जरूरी है.

हर मरीज का हार्मोनल प्रोफाइल जांचकर व्यक्तिगत इलाज किया जाना चाहिए. सिर्फ क्रीम और लेजर थेरेपी पर निर्भर रहने के बजाय हार्मोनल और जेनेटिक थेरेपी पर भी ध्यान देना होगा. प्रोजेस्टेरोन क्रीम या पैच जैसे टार्गेटेड हार्मोनल ट्रीटमेंट प्रभावी हो सकते हैं. कम लागत में अधिक प्रभावी इलाज विकसित करने की दिशा में यह शोध एक बड़ा कदम साबित हो सकता है.

महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण सलाह: मेलाज्मा का सही और सुरक्षित इलाज डॉक्टर से सलाह लेने पर ही संभव है. बाजार में मिलने वाली महंगी फेस क्रीम्स और क्रीमों का बिना डॉक्टर की सलाह के इस्तेमाल न करें. ये न केवल बेअसर होती हैं, बल्कि कई बार त्वचा को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं. खुद से कोई भी ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले विशेषज्ञ से परामर्श लें. भविष्य में मेलाज्मा के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव संभव है. यह शोध डर्माटोलॉजी विशेषज्ञों के लिए एक नई दिशा दिखाता है. अब मेलाज्मा के इलाज में सिर्फ त्वचा पर लगने वाली क्रीमों पर निर्भर न रहते हुए, हार्मोनल और जेनेटिक थेरेपी को भी महत्व दिया जाएगा.

किफायती उपचारों के विकास में अहम भूमिका निभाएगा: प्रो. गुप्ता ने कहा कि 'अगर हम मेलाज्मा के हार्मोनल और आनुवंशिक कारणों को समझ लें, तो इसका इलाज अधिक प्रभावी, सस्ता और स्थायी हो सकता है. इस शोध को डर्माकॉन 2025 में काफी सराहना मिली और यह भविष्य में मेलाज्मा के इलाज को नया रूप दे सकता है.

एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक (ED) मेजर जनरल प्रो. डॉ. विभा दत्ता ने कहा है कि यह शोध डर्माटोलॉजी के क्षेत्र में एक बड़ा योगदान है. हमें गर्व है कि Aiims गोरखपुर के डॉक्टर इस तरह के महत्वपूर्ण शोध कर रहे हैं. इस सम्बंध में कोई भी अधिक जानकारी के लिए त्वचा रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार गुप्ता से ओपीडी में संपर्क कर सकता है.

इसे भी पढ़ें-गोरखपुर में नकली दवाओं का काला कारोबार, गांव से लेकर शहर तक बिक्री कर मालामाल हो रहे जालसाज

Last Updated : Feb 12, 2025, 4:11 PM IST
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