उत्तराखंड: हरिद्वार यानि हरि का द्वार और इसके दोनों ओर विशाल पर्वतों पर विराजमान हैं मां भगवती के दो सिद्ध मंदिर. इनमें से एक मनसा देवी मंदिर शिवालिक पर्वत पर है. दूसरा हरिद्वार के पूर्व में नील पर्वत पर स्थित है मां चंडी देवी का मंदिर. मां चंडी देवी यानि असुरों का संहार करने वाली देवी. देवताओं के प्राणों की रक्षा करने वाली मां चंडी और भगवान राम के प्राण बचाने वाली मां चंडी देवी.
मां चंडी देवी के दर्शन: अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाली मां चंडी देवी का यह मंदिर पुराणों में वर्णित है. जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उसके कण कण में मां का वास बताया जाता है. नवरात्रि में मां के मंदिर में भक्तों का तांता लगा है. भक्त मां चंडी की पूजा आराधना कर रहे हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना कर रहे हैं. मान्यता है कि इन दिनों पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
हरिद्वार में नील पर्वत पर है चंडी देवी मंदिर: हरिद्वार का पौराणिक मां चंडी देवी का मंदिर नील पर्वत पर स्थित है. मां का यह मंदिर सिद्ध पीठ है. माना जाता है कि मां भगवती यहां पर अपने रौद्र रूप यानी चंडी रूप में साक्षात विराजती हैं. मां चंडी देवी यहां कैसे आईं, इसकी पुराणों में कई कहानियां हैं. पुराणों के अनुसार जब देवलोक में असुरों का अत्याचार बढ़ने लगा, तो देवताओं ने मां भगवती की स्तुति की. जिसके बाद मां चंडी रूप में एक खंभे को फाड़ कर यहां प्रकट हुईं और असुरों का संहार कर देवताओं की रक्षा की. मां भगवती ही इस जगत को दैत्यों और दानवों से बचाने के लिए चंडी रूप में अवतरित हुई थीं.
चंडी देवी मंदिर का है पौराणिक महत्व: मां चंडी देवी मंदिर परमार्थ ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी महंत रोहित गिरि का कहना है कि पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब देवासुर संग्राम हुआ तो इंद्र आदि देवताओं को चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ आदि दैत्यों द्वारा पराजित कर इंद्रलोक से हटा दिया गया. उनका राज्य छीन लिया था. जिस पर इंद्र आदि देवताओं ने भगवान ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी की शरण ली. उनसे अपना राज्य वापस दिलवाने की प्रार्थना की.
ये है चंडी देवी मंदिर की कहानी: जिस पर भगवान ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी द्वारा इंद्र को यह बताया गया कि आप मां भगवती की शरण में जाओ. उनकी प्रार्थना करो, वही आपका उद्धार कर सकती हैं. तब इंद्र आदि देवताओं द्वारा मां भगवती की तपस्या की गई. तपस्या से प्रसन्न होने के बाद मां भगवती प्रकट हुईं. उनके जो कष्ट थे उनके समाधान के लिए धरती, आकाश, पाताल पर जितने भी देवता थे, उन सब की शक्ति एक जगह एक कुंज के रूप में समाहित हुई. इस दिव्य स्थल पर आकर के खम्भे के रूप में मां भगवती प्रकट हुईं. भगवती क्रोध के रूप में थीं. भगवती यहां पर प्रकट हुईं तो रुद्र चंडी के नाम से यहां पर जानी जाती हैं. भगवती के यहां दो रूप हैं. रुद्र चंडी और और मंगल चंडी. जब भगवती द्वारा रुद्र चंडी का रूप धारण करके चंड-मुंड, शुभ-निशुंभ आदि दैत्यों का संहार किया तो उसके पश्चात मां भगवती वापस इसी स्थान पर आकर के बीच वाले स्थान पर आकर बैठ गईं. पर जब उनका क्रोध शांत नहीं हुआ था तो इंद्र आदि देवताओं ने मां भगवती की पूजा की. उनका मंगल गान गया, जिस पर उनका नाम मंगल चंडी पड़ा. इसलिए इस स्थान पर अश्विन के नवरात्र में जो भी व्यक्ति अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी के दिन जिसको चंडी चौदस के रूप में यहां मनाया जाता है, उसमें दर्शन पूजा पाठ इत्यादि करता है, उसको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
नवरात्रि में बड़ी संख्या में आते हैं श्रद्धालु: देश विदेश से भी यहां श्रद्धालु आते हैं. कई लोग यहां पर मन्नत मांगते हैं और मन्नत के रूप में माता को चुन्नी में गांठ बांधकर बांध जाते हैं. जैसे ही उनकी इच्छा पूर्ति होती है, वह यहां आकर चुन्नी को खोल कर माता के चरणों में अर्पित करते हैं. भगवती शक्ति का स्वरूप हैं. सभी के साथ शक्ति के स्वरूप में ही रहती हैं. जैसे ही आप कोई मनोकामना मन में बांधते हैं, कई लोग बच्चे के लिए बांध देते हैं कि हमारे संतान हो पुत्र प्राप्ति के लिए करते हैं, कई लोग शादी के लिए करते हैं, और अन्य किसी की कोई भी प्रार्थना रहती है तो वह लोग उसके लिए माता के चरणों में चुन्नी छुआ करके बांध देते हैं. जैसे ही उनकी मनोकामना पूरी होती है उसके बाद वह चुन्नी को खोल कर उसके साथ जो भी उनकी प्रार्थना या मन्नत मांग रखी होती है, उसको भगवती के चरणों में अर्पित करते हैं.
भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं मां चंडी देवी: वैसे तो मां चंडी के दरबार में पूरे साल ही भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के दौरान यहाँ दूर दूर से बड़ी संख्या में भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. इस दौरान यहां पर पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां उनकी हर मुराद पूरी होती है. मां से जो भी मांगते हैं, सब कुछ उनको मिलता है. वो कहते हैं कि वैसे तो मां को सब पता है और वे स्वयं बिना मांगे सब मुराद पूरा कर देती हैं, फिर भी उन्होंने अपने परिवार के लिए सुख, शांति, समृद्धि मांगी है.
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