गैरसैंण: सबसे दूरस्थ और अंतिम गांव के ग्रामीण आजादी के 75 वर्षों बाद भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं. सरकारें विकास को लेकर बड़े-बड़े दावें करती हैं, लेकिन उनकी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. दरअसल लखण गांव आज भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहा है. जिससे ग्रामीण गैरसैंण मुख्यालय से 56 किलोमीटर दूर देवपुरी के विनायक धार में कड़ाके की ठंड में सड़क सहित चार सूत्रीय मांगों को लेकर पिछले 10 दिनों से आमरण अनशन कर रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन ग्रामीणों की सुध लेने को तैयार नहीं है.
आंदोलन से मूलभूत सुविधाओं की जगी उम्मीद: बता दें कि इस आंदोलन से देवपुरी गांव से 4 किलोमीटर दूर लखण तोक में भी उम्मीद की एक किरण जगी है. लखण गांव के 55 वर्षीय चंद्र दत्त जोशी 5 फरवरी से आमरण अनशन कर रहे हैं, जिन्हें पिछले दिनों ग्रामीणों के भारी विरोध के बावजूद जबरन प्रशासन द्वारा आमरण अनशन स्थल से उठाकर उनका अनशन समाप्त करवाया गया था. जिससे चंद्र दत्त जोशी के छोटे भाई भी आमरण अनशन पर बैठ गए हैं.
पहले लखण गांव हुआ करता था हरा-भरा: ग्रामीण चंद्र दत्त जोशी ने बताया कि उत्तराखंड राज्य बनने तक गांव में लगभग 45 परिवार रहते थे, तब गांव की जनसंख्या भी 150 के आसपास हुआ करती थी. प्राथमिक विद्यालय में लखण और देवली-जंगल गांव के कुल 30 बच्चे पढ़ा करते थे. उस समय गांव में बच्चों का शोरगुल होता था और हरे-भरे खेतों में काम करती महिलाओं की हंसी-ठिठौली गूंजती थी. राज्य बनने के बाद गांव में मूलभूत सुविधाएं सुविधाएं मुहैया कराने की उम्मीद जगी थी, लेकिन कई वर्षों तक बिजली-सड़क और संचार सुविधा को लेकर धरातल पर कुछ होता हुआ नजर नहीं आया, जिससे शेष बचे परिवारों ने भी गांव से पलायन करना शुरू कर दिया.
मूलभूत सुविधाएं मुहैया होने पर रुकेगा पलायन : सड़क आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे पलायन कर चुके ग्रामीण युवा भाष्करानंद जोशी ने बताया कि सड़क विहीन गांव से हमे कोसों दूर पैदल चलना पड़ता था. जिससे गांव मजबूरी में छोड़ना पड़ा. आजादी के बाद भी हम गुलामी का जीवन जीने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि नेता चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे और दावे तो करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद ग्रामीणों की समस्याओं से मुह फेर लेते हैं. वहीं, अगर गांव तक सड़क व बिजली पहुंचती है तो पलायन कर चुके परिवार पुनः गांव में स्थापित होंगे.
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