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बरसात होते ही बिहार के नक्शे से गायब हो जाते हैं दर्जनों गांव, 'लापतागंज' से देखिए ग्राउंड रिपोर्ट - Most backward area of ​​Bihar

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 16, 2024, 5:58 PM IST

बिहार के बगहा में दो दर्जन गांवों में लाखों की आबादी को आज तक मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. आज भी यहां के लोगों का कनेक्शन 4 महीने के लिए देश दुनिया से कट जाता है. बारिश में यहां पहुंचने का सिर्फ एक ही रास्ता है वो जल मार्ग. क्योंकि 1 ही नदी 22 बार आने वाले लोगों के रास्ते में पड़ती है. बाकी बची दूरी में दो दर्जन छोटे नाले हैं जो राह रोककर खड़े रहते हैं. ऐसे में यहां के लोगों का जीवन ठप सा हो जाता है. पढ़ें पूरी खबर-

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बगहा में अति पिछड़े गांव की दशा (ETV Bharat)
बिहार में लापता गांवों की पूरी कहानी (ETV Bharat)

बगहा : बिहार का बगहा अपनी हसीन वादियों और खूबसूरती के लिए पहचाना जाने वाला दोन इलाका आजादी के दशकों बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. एक तरफ शिवालिक की पहाड़ियां और दूसरी तरफ पहाड़ी नदियों से घिरे दोन में तकरीबन दो दर्जन से अधिक गांव हैं, जहां लाखों की आबादी बसती है. लेकिन बरसात के दिनों में बिहार के नक्शे से यह आदिवासी बहुल क्षेत्र एक तरह से गायब हो जाता है. यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब पहाड़ी नदियों में बाढ़ आती है और यहां की नदियां उफान पर रहती हैं.

एक ही नदी को 22 बार करना पड़ता है पार
एक ही नदी को 22 बार करना पड़ता है पार (ETV Bharat)

4 महीने 'प्रकृति' करती कैद : ग्रामीणों का कहना है की बरसात के मौसम में उनकी जिंदगी जानवरों सी हो जाती है और वे अपने गांव में कैदी की जिंदगी जीने को विवश हो जाते हैं. आजादी के इतने दशक बीत जाने के बावजूद गांवों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए ना तो पक्की सड़कें बनी और ना ही नदियों पर पुल पुलिया का निर्माण हुआ. दरअसल, दोन के दुर्गम इलाकों में आने के लिए महज दो रास्ते हैं और वह भी अलग अलग प्रखंडों से.

बिहार में बैकवर्ड एरिया
नदी पार कर स्कूल जाते बच्चे (ETV Bharat)

बरसात में कट जाता है दुनिया से संपर्क : पहला रास्ता बगहा दो प्रखंड के हरनाटांड से होकर जाता है, तो वहीं दूसरा रास्ता रामनगर प्रखंड के औरहिया गांव की तरफ से होकर गुजरती है. विचित्र भौगोलिक स्थिति के कारण एक ही नदी को 22 मर्तबा पार कर यहां पहुंचना पड़ता है. लिहाजा वर्ष के आठ महीने तो यहां लोग आसानी से पहुंचते हैं, लेकिन जब बरसात का समय शुरू होता है तो आवाजाही करीब करीब बंद हो जाती है.

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गांव तक जाने के लिए सड़क तक नहीं (ETV Bharat)

1 नदी और छोटे नाले बने जंजाल : यही वजह है कि ग्रामीण चार माह का राशन बरसात के पहले ही जमा कर लेते हैं. लेकिन यदि बरसात की अवधि में किसी की तबीयत बिगड़ती या फिर कोई आकस्मिक घटना हो जाती है तो ये अपनी जिंदगी की डोर भगवान के रहमो करम पर छोड़ देते हैं. बता दें की दोन क्षेत्र से होकर कापन, हरहा, सुखौड़ा, सिगहा, ढोंगही, भलुई, रघिया समेत आधा दर्जन पहाड़ी नदियां गुजरती हैं. इसके साथ ही कई जंगली नाला भी हैं. जो सालों भर शांत रहते हैं, पर बरसात में इनके जलस्तर में बढ़ोतरी हो जाती है. तब सड़क, नदी, नाला एवं गांव में फर्क करना मुश्किल होता है.

गांव तक पहुंचना मुश्किल
नदी से बाइक निकालते लोग (ETV Bharat)

1 नदी को 22 बार आर-पार : यह स्थिति कई कई दिनों तक बनी रहती है. पहाड़ी नदियां जब उफान पर होती है तो दोन क्षेत्र के ग्रामीणों की समस्याएं दोगुनी बढ़ जाती हैं, क्योंकि इस हालत में राहत एवं बचाव टीम को यहां पहुंचने का कोई चांस नहीं रहता है. वर्ष 2017 में आई बाढ़ के दौरान दोन के सभी रास्ते बंद हो गए थे, तो इस क्षेत्र में काफी मशक्कत के बाद हेलीकाप्टर के माध्यम से फूड पैकेट गिराया गया था. जो इस क्षेत्र के लिए नाकाफी था. ऐसे में कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं की वाल्मिकी टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच शिवालिक पहाड़ियों और पहाड़ी नदियों से घिरे दोन इलाके के आदिवासी जंगल के अंदर अपनी लड़ाई खुद लड़ते हैं और असुविधाओं के बीच जद्दोजहद से जूझते रहते हैं.

दोन इलाके के गांवों का हाल
दोन इलाके के गांवों का हाल (ETV Bharat)

एनओसी के चक्कर में उलझे मूल निवासी : इस बाबत जिला प्रशासन का कहना है की पहाड़ी नदियां हमेशा अपना रुख बदलती रहती हैं. दोन के इलाकों में जाने के लिए कई नदियों से होकर गुजरना पड़ता है, ऐसे में यदि पुल का निर्माण हो भी जाए तो आने वाले समय में नदी की धारा उसी जगह रहेगी या कहीं अन्य जगह कहना मुश्किल है. इसके अलावा वीटीआर जंगल के बीच पक्के सड़क का निर्माण कराना संभव नहीं है, क्योंकि इसके लिए वन एवं पर्यावरण विभाग ना तो एनओसी देगा और ना ही सड़क बनाने की सहमति देगा.

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पानी से घिरा गांव (ETV Bharat)

''पश्चिमी चंपारण जिलाधिकारी ने बताया की दोन क्षेत्र में छोटी छोटी पहाड़ी नदियां हैं जो नाले के प्रारूप में हैं. जब बारिश आती है तब उसमें पानी का प्रवाह तेज हो जाता है. फॉरेस्ट लैंड होने के कारण उन इलाकों में आवागमन के लिए पुल-पुलिया या पक्के सड़क के निर्माण की इजाजत वन एवं पर्यावरण विभाग की तरफ से नहीं मिल सकता. प्रशासन तो सुदूरवर्ती दोन इलाके के लोगों को सुरक्षित स्थान पर बसाना चाहता है. लेकिन इलाके के ग्रामीण अपना पुस्तैनी जगह छोड़ कहीं और बसना नहीं चाहते हैं.''- दिनेश कुमार राय, जिलाधिकारी

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एक ही नदी को 22 बार करना पड़ता है पार
एक ही नदी को 22 बार करना पड़ता है पार (ETV Bharat)

4 महीने 'प्रकृति' करती कैद : ग्रामीणों का कहना है की बरसात के मौसम में उनकी जिंदगी जानवरों सी हो जाती है और वे अपने गांव में कैदी की जिंदगी जीने को विवश हो जाते हैं. आजादी के इतने दशक बीत जाने के बावजूद गांवों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए ना तो पक्की सड़कें बनी और ना ही नदियों पर पुल पुलिया का निर्माण हुआ. दरअसल, दोन के दुर्गम इलाकों में आने के लिए महज दो रास्ते हैं और वह भी अलग अलग प्रखंडों से.

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गांव तक जाने के लिए सड़क तक नहीं (ETV Bharat)

1 नदी और छोटे नाले बने जंजाल : यही वजह है कि ग्रामीण चार माह का राशन बरसात के पहले ही जमा कर लेते हैं. लेकिन यदि बरसात की अवधि में किसी की तबीयत बिगड़ती या फिर कोई आकस्मिक घटना हो जाती है तो ये अपनी जिंदगी की डोर भगवान के रहमो करम पर छोड़ देते हैं. बता दें की दोन क्षेत्र से होकर कापन, हरहा, सुखौड़ा, सिगहा, ढोंगही, भलुई, रघिया समेत आधा दर्जन पहाड़ी नदियां गुजरती हैं. इसके साथ ही कई जंगली नाला भी हैं. जो सालों भर शांत रहते हैं, पर बरसात में इनके जलस्तर में बढ़ोतरी हो जाती है. तब सड़क, नदी, नाला एवं गांव में फर्क करना मुश्किल होता है.

गांव तक पहुंचना मुश्किल
नदी से बाइक निकालते लोग (ETV Bharat)

1 नदी को 22 बार आर-पार : यह स्थिति कई कई दिनों तक बनी रहती है. पहाड़ी नदियां जब उफान पर होती है तो दोन क्षेत्र के ग्रामीणों की समस्याएं दोगुनी बढ़ जाती हैं, क्योंकि इस हालत में राहत एवं बचाव टीम को यहां पहुंचने का कोई चांस नहीं रहता है. वर्ष 2017 में आई बाढ़ के दौरान दोन के सभी रास्ते बंद हो गए थे, तो इस क्षेत्र में काफी मशक्कत के बाद हेलीकाप्टर के माध्यम से फूड पैकेट गिराया गया था. जो इस क्षेत्र के लिए नाकाफी था. ऐसे में कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं की वाल्मिकी टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच शिवालिक पहाड़ियों और पहाड़ी नदियों से घिरे दोन इलाके के आदिवासी जंगल के अंदर अपनी लड़ाई खुद लड़ते हैं और असुविधाओं के बीच जद्दोजहद से जूझते रहते हैं.

दोन इलाके के गांवों का हाल
दोन इलाके के गांवों का हाल (ETV Bharat)

एनओसी के चक्कर में उलझे मूल निवासी : इस बाबत जिला प्रशासन का कहना है की पहाड़ी नदियां हमेशा अपना रुख बदलती रहती हैं. दोन के इलाकों में जाने के लिए कई नदियों से होकर गुजरना पड़ता है, ऐसे में यदि पुल का निर्माण हो भी जाए तो आने वाले समय में नदी की धारा उसी जगह रहेगी या कहीं अन्य जगह कहना मुश्किल है. इसके अलावा वीटीआर जंगल के बीच पक्के सड़क का निर्माण कराना संभव नहीं है, क्योंकि इसके लिए वन एवं पर्यावरण विभाग ना तो एनओसी देगा और ना ही सड़क बनाने की सहमति देगा.

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पानी से घिरा गांव (ETV Bharat)

''पश्चिमी चंपारण जिलाधिकारी ने बताया की दोन क्षेत्र में छोटी छोटी पहाड़ी नदियां हैं जो नाले के प्रारूप में हैं. जब बारिश आती है तब उसमें पानी का प्रवाह तेज हो जाता है. फॉरेस्ट लैंड होने के कारण उन इलाकों में आवागमन के लिए पुल-पुलिया या पक्के सड़क के निर्माण की इजाजत वन एवं पर्यावरण विभाग की तरफ से नहीं मिल सकता. प्रशासन तो सुदूरवर्ती दोन इलाके के लोगों को सुरक्षित स्थान पर बसाना चाहता है. लेकिन इलाके के ग्रामीण अपना पुस्तैनी जगह छोड़ कहीं और बसना नहीं चाहते हैं.''- दिनेश कुमार राय, जिलाधिकारी

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