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विदिशा के विकास में मानवता का अंश, खुद की गाड़ी से दी 5,700 शवों को अंतिम विदाई

विदिशा के विकास पचौरी हजारों पार्थिव शवों का निशुल्क करा चुके अंतिम सफर, वैन को एंबुलेंस बनाकर कर रहे लोगों की मदद.

VIDISHA VIKASH PACHAURI SOCIAL WORK
विकास पचौरी खुद की गाड़ी से ढ़ोते हैं लोगों के शव (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 19 hours ago

Updated : 15 hours ago

विदिशा: मध्य प्रदेश के विदिशा के एक व्यक्ति ने मानवता और सेवा का एक शानदार उदाहरण पेश किया है. जिन्होंने पिछले एक दशक में हजारों परिवारों को उनके सबसे कठिन समय में सहारा दिया है. समाजसेवी विकास पचौरी पिछले 10 वर्षों से बिना किसी स्वार्थ के निशुल्स शव वाहन सेवा दे रहे हैं और अबतक 5700 से अधिक पार्थिव शरीरों को सम्मानजनक विदाई दे चुके हैं. उनका यह सेवा कार्य अब विदिशा की पहचान बन चुका है.

एक घटना ने बदल दिया जीवन का लक्ष्य

इस सेवा की शुरुआत को लेकर विकास पचौरी बताते हैं, “मेरे परिवार में एक सदस्य के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को मुक्तिधाम ले जाने में काफी कठिनाई हुई थी. क्योंकि शव भारी था और मुक्तिधाम शहर से काफी दूर है. तब मुझे एहसास हुआ कि यह समस्या केवल मेरी नहीं, बल्कि हर उस परिवार की है जो ऐसी स्थिति का सामना करता है. उसी समय मैंने यह निर्णय लिया कि किसी भी परिवार को इस कठिनाई से नहीं गुजरने दूंगा.” उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालकर इस सेवा की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने लिखा कि किसी भी जरूरतमंद परिवार को शव ले जाने में कठिनाई हो तो वह मुझसे संपर्क करें. यह सेवा लगातार बढ़ती गई और अब यह विदिशा के हर घर में चर्चित है.

जानकारी देते हुए समाजसेवी विकास पचौरी (ETV Bharat)

सभी धर्मों और वर्गों के लिए है निशुल्क सेवा

विकास की यह सेवा किसी धर्म, जाति या वर्ग तक सीमित नहीं है. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सभी के लिए यह सेवा सामान रूप से उपलब्ध है. वाहन में बजने वाला भजन "हे राम, हे राम" विदिशा में एक पहचान बन चुका है. इस धुन को सुनते ही लोग समझ जाते हैं कि कोई पार्थिव शरीर विदाई के लिए जा रहा है और हाथ जोड़कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. विकास का कहना है, “सेवा करते-करते यह अनुभव हुआ कि मैं इन परिवारों के दुख का हिस्सा बन गया हूं. अंतिम संस्कार में सहयोग करते-करते मेरे और इन परिवारों के बीच एक भावनात्मक रिश्ता बन गया है. यह केवल सेवा नहीं, बल्कि मानवता के प्रति मेरी जिम्मेदारी है.”

कोरोना महामारी थी सबसे बड़ी चुनौती

जब महामारी के कारण मौतों की संख्या तेजी से बढ़ी तो विकास ने अपनी सेवा को रुकने नहीं दिया. उन्होंने बताया, “उस समय स्थिति इतनी भयावह थी कि शव गिनना संभव नहीं था. संक्रमण के डर के बावजूद मैंने यह कार्य जारी रखा. मैं खुद भी कोरोना संक्रमित हो गया, लेकिन ठीक होने के बाद तुरंत सेवा में जुट गया था.” महामारी के दौरान शवों को मुक्तिधाम तक ले जाना कठिन था. कई बार जगह की कमी के कारण शवों को पास के गांवों और अन्य जिलों में भेजना पड़ा. विकास कहते हैं, “उस समय दिमागी संतुलन बनाए रखना भी कठिन था. ऐसा लगता था कि मानो पूरा शहर खत्म हो जाएगा.”

खराब मारुति वैन से हुई थी शुरुआत

विकास पचौरी इस सेवा के लिए कभी दान की मांग नहीं करते. हालांकि, एक बार नए शव वाहन और फ्रीजर के लिए उन्होंने 6 लाख रु की अपील की थी. इसके बाद उन्हें 8 लाख रुपए लोगों की तरफ से मिले भी. उसके बाद उन्होंने और दान लेने से इनकार कर दिया. जो लोग मदद करना चाहते हैं. वह सीधे वाहन के लिए डीजल भरवा सकते हैं. इस सेवा की शुरुआत एक पुरानी मारुति वैन से हुई थी, जिसकी मरम्मत करवाकर शव वाहन में बदला गया. विकास कहते हैं, “शुरुआत में यह वाहन सेवा योग्य नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे इसे बेहतर बनाया गया. अब हमारे पास एक नया वाहन है, जिसमें शव ले जाने की सभी सुविधाएं हैं.”

धन, संपत्ति सबकुछ यहीं रह जाना है

पार्थिव शरीरों के साथ काम करने का अनुभव विकास के जीवन दर्शन को बदल चुका है. विकास कहते हैं, “मृत्यु के साथ इतने करीब रहने से यह सीख मिली है कि जीवन में धन, संपत्ति, और प्रशंसा का कोई मूल्य नहीं है. सब कुछ यहीं रह जाना है. अब मेरा जीवन एक सहज प्रवाह में चल रहा है.” विकास ने भारत सरकार से एक विशेष अपील की है. उनका कहना है, “हर जिले के सरकारी अस्पताल के बाहर एक निशुल्क शव वाहन होना चाहिए. गरीब मरीज, जो सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं, यदि उनकी मृत्यु हो जाती है तो उनके परिवार के पास शव ले जाने के लिए साधन नहीं होता. कई बार शव को अस्पताल के कॉरिडोर में घंटों तक रखा जाता है. यह न केवल विदिशा, बल्कि पूरे देश की समस्या है. इस दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए.”

विदिशा: मध्य प्रदेश के विदिशा के एक व्यक्ति ने मानवता और सेवा का एक शानदार उदाहरण पेश किया है. जिन्होंने पिछले एक दशक में हजारों परिवारों को उनके सबसे कठिन समय में सहारा दिया है. समाजसेवी विकास पचौरी पिछले 10 वर्षों से बिना किसी स्वार्थ के निशुल्स शव वाहन सेवा दे रहे हैं और अबतक 5700 से अधिक पार्थिव शरीरों को सम्मानजनक विदाई दे चुके हैं. उनका यह सेवा कार्य अब विदिशा की पहचान बन चुका है.

एक घटना ने बदल दिया जीवन का लक्ष्य

इस सेवा की शुरुआत को लेकर विकास पचौरी बताते हैं, “मेरे परिवार में एक सदस्य के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को मुक्तिधाम ले जाने में काफी कठिनाई हुई थी. क्योंकि शव भारी था और मुक्तिधाम शहर से काफी दूर है. तब मुझे एहसास हुआ कि यह समस्या केवल मेरी नहीं, बल्कि हर उस परिवार की है जो ऐसी स्थिति का सामना करता है. उसी समय मैंने यह निर्णय लिया कि किसी भी परिवार को इस कठिनाई से नहीं गुजरने दूंगा.” उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालकर इस सेवा की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने लिखा कि किसी भी जरूरतमंद परिवार को शव ले जाने में कठिनाई हो तो वह मुझसे संपर्क करें. यह सेवा लगातार बढ़ती गई और अब यह विदिशा के हर घर में चर्चित है.

जानकारी देते हुए समाजसेवी विकास पचौरी (ETV Bharat)

सभी धर्मों और वर्गों के लिए है निशुल्क सेवा

विकास की यह सेवा किसी धर्म, जाति या वर्ग तक सीमित नहीं है. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सभी के लिए यह सेवा सामान रूप से उपलब्ध है. वाहन में बजने वाला भजन "हे राम, हे राम" विदिशा में एक पहचान बन चुका है. इस धुन को सुनते ही लोग समझ जाते हैं कि कोई पार्थिव शरीर विदाई के लिए जा रहा है और हाथ जोड़कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. विकास का कहना है, “सेवा करते-करते यह अनुभव हुआ कि मैं इन परिवारों के दुख का हिस्सा बन गया हूं. अंतिम संस्कार में सहयोग करते-करते मेरे और इन परिवारों के बीच एक भावनात्मक रिश्ता बन गया है. यह केवल सेवा नहीं, बल्कि मानवता के प्रति मेरी जिम्मेदारी है.”

कोरोना महामारी थी सबसे बड़ी चुनौती

जब महामारी के कारण मौतों की संख्या तेजी से बढ़ी तो विकास ने अपनी सेवा को रुकने नहीं दिया. उन्होंने बताया, “उस समय स्थिति इतनी भयावह थी कि शव गिनना संभव नहीं था. संक्रमण के डर के बावजूद मैंने यह कार्य जारी रखा. मैं खुद भी कोरोना संक्रमित हो गया, लेकिन ठीक होने के बाद तुरंत सेवा में जुट गया था.” महामारी के दौरान शवों को मुक्तिधाम तक ले जाना कठिन था. कई बार जगह की कमी के कारण शवों को पास के गांवों और अन्य जिलों में भेजना पड़ा. विकास कहते हैं, “उस समय दिमागी संतुलन बनाए रखना भी कठिन था. ऐसा लगता था कि मानो पूरा शहर खत्म हो जाएगा.”

खराब मारुति वैन से हुई थी शुरुआत

विकास पचौरी इस सेवा के लिए कभी दान की मांग नहीं करते. हालांकि, एक बार नए शव वाहन और फ्रीजर के लिए उन्होंने 6 लाख रु की अपील की थी. इसके बाद उन्हें 8 लाख रुपए लोगों की तरफ से मिले भी. उसके बाद उन्होंने और दान लेने से इनकार कर दिया. जो लोग मदद करना चाहते हैं. वह सीधे वाहन के लिए डीजल भरवा सकते हैं. इस सेवा की शुरुआत एक पुरानी मारुति वैन से हुई थी, जिसकी मरम्मत करवाकर शव वाहन में बदला गया. विकास कहते हैं, “शुरुआत में यह वाहन सेवा योग्य नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे इसे बेहतर बनाया गया. अब हमारे पास एक नया वाहन है, जिसमें शव ले जाने की सभी सुविधाएं हैं.”

धन, संपत्ति सबकुछ यहीं रह जाना है

पार्थिव शरीरों के साथ काम करने का अनुभव विकास के जीवन दर्शन को बदल चुका है. विकास कहते हैं, “मृत्यु के साथ इतने करीब रहने से यह सीख मिली है कि जीवन में धन, संपत्ति, और प्रशंसा का कोई मूल्य नहीं है. सब कुछ यहीं रह जाना है. अब मेरा जीवन एक सहज प्रवाह में चल रहा है.” विकास ने भारत सरकार से एक विशेष अपील की है. उनका कहना है, “हर जिले के सरकारी अस्पताल के बाहर एक निशुल्क शव वाहन होना चाहिए. गरीब मरीज, जो सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं, यदि उनकी मृत्यु हो जाती है तो उनके परिवार के पास शव ले जाने के लिए साधन नहीं होता. कई बार शव को अस्पताल के कॉरिडोर में घंटों तक रखा जाता है. यह न केवल विदिशा, बल्कि पूरे देश की समस्या है. इस दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए.”

Last Updated : 15 hours ago
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