मिर्जापुर : मां जगदंबा की स्तूति का पर्व नवरात्र कल से शुरू हो रहा है. इस दौरान शक्ति पीठों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ेगी. यूपी के सबसे बड़े शक्ति पीठ के रूप में विंध्याचल धाम की अलग ही महिमा है. इसे देश भर के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. हर शक्तिपीठ के पीछे मान्यता है कि माता सती के शरीर का कोई न कोई अंग गिरा था, मगर यहां मां विंध्यवासिनी साक्षात विराजमान हैं. इसलिए इसे सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है. यहां पर तीन देवियां हैं, जिनके त्रिकोण से भक्तों को संपूर्ण फल मिलता है.
हर मनोकामना होती है पूरी: विंध्याचल धाम में विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी का का जिक्र वेदों में भी है. मान्यता है कि यहां मां विंध्यवासिनी सभी की इच्छापूर्ति करती हैं. वैसे तो यहां पर हर दिन खास रहता है, मगर नवरात्र में यहां का महत्व और बढ़ जाता है. लाखों श्रद्धालु हर दिन पहुंचकर मां की एक झलक पाकर निहाल हो जाते हैं. मां विंध्यवासिनी विंध्य पर्वत पर विराजमान हैं. मां गंगा भी विंध्य पर्वत को स्पर्श करती हुई आगे बढ़ती हैं. इस धाम की विशेषता यह है कि मां विंध्यवासिनी देवी के साथ ही यहां पर त्रिकोण मार्ग पर कालिखोह में मां काली और अष्टभुजा पहाड़ पर मां अष्टभुजा देवी विराजमान हैं. मां विंध्यवासिनी को महालक्ष्मी, मां काली को महाकाली और मां अष्टभुजा को मां सरस्वती के रूप में जाना जाता है. भक्त तीनों देवियों का दर्शन कर अपने समस्त इच्छाओं की पूर्ति करते हैं.
तीनों देवियों की पूजा: देश-दुनिया से आए श्रद्धालु विंध्याचल धाम में नवरात्र पर प्रथम तीन दिन मां विंध्यवासिनी की पूजा करते हैं. इसके बाद तीन दिन मां अष्टभुजा की आराधना करते हैं. नवरात्रि के अंतिम तीन दिन यहां पर भक्त मां काली की आराधना करते हैं. तीनों मां की पूजा कर भक्त असंतुलित जीवन को संतुलित कर लेते हैं. कहां जाता है जो भी मां के दरबार में सच्चे मन से आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं जाता है. विंध्य कॉरीडोर का निर्माण हो जाने से विंध्याचल धाम में पहले से श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी है. हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. नवरात्र में यह संख्या लाखों में पहुंच जाती हैं.
आदिशक्ति हैं मां विंध्यवासिनी: धर्माचार्य मिट्ठू मिश्रा बताते हैं कि मां विंध्यवासिनी का जिक्र वेदों में भी किया गया है. माता सती के अंग गिरने से पहले की /ये भगवती हैं और आदिशक्ति के रूप में जानी जाती हैं. यहां पर मां सशरीर विराजमान हैं. मां विंध्यवासिनी वह हैं, जिन्होंने प्रथम प्रकृति पुरुष मनु शतरूपा को सृष्टि नव निर्माण की सफलता का आशीर्वाद दिया और विंध्यवासिनी धाम में आकर विराजमान हो गईं. जिस तरह से बिंदु के बिना एक रेखा सृजित नहीं की जाती है, उसी तरह माता विंध्यवासिनी के बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. इसीलिए मां विंध्यवासिनी को बिंदु के नाम से भी जाना जाता है.
इस नवरात्र कलश स्थापन का मुहूर्त: इस बार नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तीन अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा है, जो 11 अक्टूबर महानवमी तक चलेगा. इस बार नवरात्र में चतुर्थी तिथि की वृद्धि और नवमी तिथि का क्षय है. अत: 11 अक्टूबर को ही महाष्टमी व्रत व महानवमी व्रत दोनों किया जाएगा. विद्वानों की मानें तो शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, अर्थात तीन अक्टूबर को कलश स्थापन का मुहूर्त प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से सुबह नौ बजकर 30 मिनट तक, उसके बाद अभिजीत मुहूर्त दिन में 11.37 से 12.23 दिन तक अतिशुभ रहेगा. हालांकि प्रात: से शाम तक में कभी भी घट स्थापन किया जा सकता है. शास्त्रानुसार प्रात: घट स्थापन की विशेष महत्ता बताई गई है.
कब करें नवमी का हवन-पूजन: महाष्टमी तिथि 10 अक्टूबर को प्रात: 07.29 पर लगेगी जो 11 अक्टूबर को प्रात: 06 बजकर 52 मिनट तक रहेगी. इसके बाद 06 बजकर 52 मिनट से नवमी तिथि लग जाएगी. जो 12 अक्टूबर की भोर 05 बजकर 47 मिनट तक रहेगी. उसके बाद दशमी तिथि लग जाएगी. नवमी का हवन-पूजन आदि नवमी में करना चाहिए. महागौरी माता अन्नपूर्णा की परिक्रमा 11 अक्टूबर को प्रात: 06.52 मिनट से पूर्व करना चाहिए. नवरात्र व्रत की पारना उदयकालीन दशमी में 12 अक्टूबर को किया जाएगा, तो सायं काल में मां दुर्गा का प्रतिमा विसर्जन होगा. महाष्टमी व्रत 11 अक्टूबर को किया जाएगा और पारना 12 अक्टूबर की भोर 05 बजकर 47 मिनट से पूर्व किया जाना चाहिए. नवरात्र व्रत की पारना 12 अक्टूबर को प्रात: 06 बजकर 13 मिनट के बाद करनी चाहिए. महानिशा पूजन निशितकाल में 10/11 अक्टूबर को किया जाएगा.