सीकर : शहर के शिक्षण संस्थान सोभासरिया ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के रजत जयंती समारोह में शनिवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ अपनी धर्मपत्नी सुदेश धनखड़ के साथ बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. इस दौरान समारोह में राज्य के उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा, यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा और राज्यसभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी मौजूद रहे. वहीं, रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज कुछ चिंता के विषय जरूर हैं, लेकिन उस पर चिंतन और मंथन की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि शिक्षा एक जरिया था, जिसकी बदौलत हम समाज के ऋण को उतारते थे. अपने समाज के लिए बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन अब एजुकेशन कमोडिटी बन गया है. यही वजह है कि इसे फायदे के लिए बेचा जा रहा है.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि अगर आप शैक्षणिक संस्थाओं को एक अर्थ लाभ के चश्मे से देखेंगे तो आपका उद्देश्य धूमिल होगा. ऐसे में हमें इससे बचने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि संस्था का पैसा संस्था में ही लगना चाहिए और इसका उपयोग संस्था के विकास के लिए होना चाहिए. उपराष्ट्रपति ने कहा कि जो कॉर्पोरेट हाउस संस्थाओं को नर्चर कर रहे हैं, वो हर साल सीएसआर फंड से इंफ्रास्ट्रक्चर और नए कोर्स की डील के लिए पैसा दें तो समाज के लिए बहुत अच्छा रहेगा.
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उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि आज शिक्षा को व्यापार से बचाने की जरूरत है. ऐसा इसलिए क्योंकि आज समाज को वापस देने और समाज की सेवा करने का काम व्यापार में तब्दील हो चुका है, लेकिन शिक्षा का व्यापार देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है. उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों को आर्थिक रूप से सबल होना चाहिए. एक जमाना था, जब हमारे भारत में नालंदा, तक्षशिला जैसे संस्थान थे, लेकिन बख्तियार खिलजी ने उन संस्थानों को बर्बाद कर दिया. हमारी संस्थाओं को नष्ट किया गया. अंग्रेज आए तो हमारी संस्थाओं की ताकत को सेप कर लिया गया.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज इंडस्ट्री का भी दायित्व है कि समय-समय पर वो भी संस्थाओं को नर्चर करने के लिए सीएसआर फंड का उपयोग करें. इनोवेशन और रिसर्च का सबसे बड़ा फायदा उद्योग को होता है, जो अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है और इससे देश ताकतवर बनता है.
विदेश जाने की लालसे को बताया खतरनाक : उन्होंने कहा कि कभी भारत पूरी दुनिया में ज्ञान का केंद्र था, वहां की संस्थाओं की जड़ें काट दी गई. 19वीं शताब्दी में स्वामी विवेकानंद ने इन्हें वापस उजागर करने का प्रयास किया. अब समय आ गया है कि इस महायज्ञ में भारत को शिक्षा का केंद्र बनाने के लिए हर कोई आहुति दे. उपराष्ट्रपति ने छात्रों से कहा कि वर्तमान में एक नई बीमारी फैली है और वो है विदेश जाने की. बच्चे विदेश में पढ़ाई करने के लिए जा रहे हैं. एक ओर पेरेंट्स की काउंसलिंग होती नहीं है और दूसरी ओर बच्चा लालायित होकर विदेश जाना चाहता है. उसे दिखता है कि वहां जाते ही उसे स्वर्ग मिल जाएगा. कोई आंकलन नहीं है कि किस संस्था में जा रहा है, किस देश में जा रहा है. बस एक अंधाधुंध रास्ता है कि मुझे विदेश जाना है.
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सब विज्ञापन का प्रभाव : उन्होंने कहा कि आपको आश्चर्य होगा कि 18 से 25 साल के छात्र-छात्राएं विज्ञापन से प्रभावित होते हैं. 2024 में 13.50 लाख स्टूडेंट्स विदेश गए. उनके भविष्य का क्या होगा. उसका आंकलन हो रहा है, लेकिन इसका देश पर कितना भार हो रहा है. 6 बिलियन यूएस डॉलर फॉरेन एक्सचेंज में जा रहा है. अंदाजा लगाइए कि यदि यही हमारे संस्थाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर में लगाया जाता तो हमारे हालात क्या होते. उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज के बच्चे हमारे समय के हालातों को नहीं समझ पाएंगे.
चारों तरफ होप और पॉसिबिलिटी का माहौल : उन्होंने कहा कि एक दशक पहले हम देखते थे कि हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की 5 गिरती डुलती अर्थव्यवस्था में थी. कभी भी गिर सकते थे, हम कहां से कहां आ गए. दुनिया की पांचवी आर्थिक महाशक्ति, 2 साल में तीसरी महाशक्ति जापान और जर्मनी से आगे. हमारी इकोनॉमी 4 ट्रिलियन को टच कर रही है. हमारी ग्रोथ रेट दुनिया को अचंभित कर रही है. जीडीपी ग्रोथ 8% है और दुनिया की कोई भी लार्ज इकोनॉमी इसके नजदीक भी नहीं है.
चारों तरफ होप और पॉसिबिलिटी का माहौल है. भारत संभावनाओं से भरा एक देश है और दुनिया भारत का लोहा मान चुकी है. इंटरनेशनल मोनेटरी फंड, वर्ल्ड बैंक जो कुछ समय पहले भारत को सिखाते थे कि शासन व्यवस्था कैसे हो, वह आज के दिन भारत की प्रशंसा करते हुए थकते नहीं है. भारत वैश्विक रूप से इन्वेस्टमेंटमें आगे है.