पूर्णियाः बिहार के पूर्णिया में पद्मा भोलानाथ की प्रेम कहानी काफी दिलचस्प है. इनकी कहानी इतनी दिलचस्प है कि आज सभी प्रेमी-प्रेमिका जानने के बाद कह उठेंगे 'वाह क्या शानदार जोड़ी थी'. 21वीं सदी में ऐसा प्यार देखने को नहीं मिलता है. ऐसे थे पूर्णिया के भोलानाथ जिन्होंने पत्नी के मरने के बाद भी साथ नहीं छोड़ा. 31 साल तक पत्नी की अस्थि को अपने पास रखा.
दो साल पहले भोलानाथ का निधनः यह प्रेम कहानी पूर्णिया शहर के सिपाही टोला की है. भोलानाथ का दो साल पहले निधन हो चुका है. इससे पहले 1990 में ही इनकी पत्नी का निधन हो गया था. भोलानाथ के दामाद अशोक कुमार आज भी दोनों की प्रेम कहानी को याद कर भावुक हो जाते हैं. बताते हैं कि भोलानाथ अपनी पत्नी की अस्थि कलश को 31 साल तक अपने पास रखा. उन्होंने कहा था उनके मरने के बाद एक साथ दोनों की अस्थि को प्रवाहित किया जाए.
1990 में पद्मा का निधनः दामाद अशोक कुमार बताते हैं कि यह कहानी 1990 की है. एक रात उनकी सास यानि पद्मा भोलानाथ के पास जाकर कहती है कि 'आप मेरे बगल में सो जाइए, मैं सुहागन मरना चाहती हूं', उस वक्त भोलानाथ को नहीं पता था कि सच में उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली जाएगी. उन्होंने कहा कि 'ऐसा कभी नहीं होगा, हम दोनों साथ जिएंगे और साथ मरेंगे' लेकिन सुबह जब आंख खुली तो पद्मा दुनिया को अवविदा कह चुकी थी.
31 साल तक पत्नी की अस्थि को साथ रखाः अशोक कुमार बताते हैं कि पत्नी के आकस्मिक निधन से भोलानाथ को काफी सदमा लगा. वे चाहते थे कि पत्नी के साथ अपनी जीवन समाप्त कर लें लेकिन अपने तीन बेटियों को किसके सहारे छोड़कर जाते. अपने बच्चों के लिए उन्हें जीना पड़ा. उन्होंने अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार किया और अस्थि को दरवाजे पर एक आम के पेड़ में टांग दिया. बेटियों से कहा कि जब उनका निधन होगा तो दोनों की अस्थि को एक साथ नदी में प्रवाहित कर देना.
इलाहाबाद संगम नदी में अस्थि होगी प्रवाहितः दो साल पहले 95 वर्ष की उम्र में भोलानाथ का निधन हो गया. उस दौरान उनकी भी अस्थि को एक ही कलश में मिलाकर दरवाजे पर आम के पेड़ में टांग दिया गया. दामाद अशोक बताते हैं कि भोलानाथ के एक नतनी की शादी होना बाकी है. इनकी भी शादी होने के बाद इस अस्थि कलश को इलाहाबाद के संगम नदी में पूरे परिवार के साथ मिलकर प्रवाहित करने के लिए जाएंगे.
"मेरे ससुर 31 साल अपनी पत्नी की अस्थि को सहेजकर रखा. इसके बाद मैं अपने सास-ससुर दोनों की अस्थि को सहेजकर रखा हूं. इस अस्थि कलश के रहने से ऐसा लगता है कि आज भी वे हमलोगों के साथ हैं. मेरी एक बेटी की शादी नहीं हुई है. मेरी बेटी की शादी के बाद इस अस्थि कलश को पूरे परिवार के साथ मिलकर इलाहाबाद के संगम नदी में प्रवाहित करने के लिए जाएंगे." -अशोक कुमार, भोलानाथ के दामाद
'प्यार कभी नहीं मरता': स्थानीय दिलीप कुमार दीपक इस सच्ची घटना के गवाह हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि 'प्यार अमर है दुनिया में, प्यार कभी नहीं मरता है'. दिलीप बताते हैं कि भोलानाथ एक साहित्यकार और बुजुर्ग समाज के अच्छे नेता थे. भोलानाथ अपनी पत्नी की अस्थि कलश को एक आम पेड़ में टांग कर रखे थे. वे रोज वहां पर कुर्सी लगाकर बैठा करते थे.
'आज का वैलेंटाइन डे दिखावा': आज पूरी दुनियां वैलेंटाइन डे मना रहा है. इसको लेकर स्थानीय वकील गौतम वर्मा ने कहा कि यह एक सच्ची प्रेम कहानी है. उन्होंने वैलेंटाइन डे को लेकर कहा कि यह हमारे देश का नहीं है. यह केवल दिखावटी है. उन्होंने कहा कि सच्ची वैलेंटाइन डे तो स्वर्गीय भोलानाथ जी का है, जिन्होंने जीवन भर अपनी पत्नी की अस्थि कलश को अपने पास रखा.
'समर्पन और त्याग ही प्रेम की परिभाषा': स्थानीय वरीष्ठ प्रत्रकार सतेंद्र कुमार भी इस सच्ची कहानी से प्रेरित हैं. उन्होंने कहा कि प्रेम शाश्वत है. यह दिखावे की नहीं बल्कि महसूस करने की जीच है. आज के समय में युवा प्रेम के नाम पर दिखावा करते हैं. इसके अंदर की सच्चाई क्या है, यह सभी लोग जानते हैं. समर्पन और त्याग ही प्रेम की परिभाषा है. इस समर्पन को भोलानाथ जी ने दिखाया. उन्होंने अपने बच्चों में वो प्रेम के बीच जो बोया जो आज के समय में नहीं मिलता है.
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