वैशालीः दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावी महापर्व का शुभारंभ हो चुका है. इसके साथ ही राजनेताओं ने जनता जनार्दन के दरबार में हाजिरी देनी शुरू कर दी है. लोकतंत्र के इस महान् पर्व पर याद आता है वो गणराज्य जिसने सबसे पहले दुनिया में लोगों का,लोगों के लिए, लोगों द्वारा शासन का मंत्र दिया था. जी हां, बात वैशाली गणराज्य की जहां हर निर्णय जनप्रतिनिधियों के बहुमत के आधार पर हुआ करता था.
वैदिक युग में हुई पहले गणराज्य की स्थापनाःइतिहासकारों की मानें तो इस गणराज्य की स्थापना वैदिक युग में हुई थी.इसका उल्लेख ऋग्वेद और अथर्ववेद में भी मिलता है. वहीं कई धार्मिक ग्रंथों के अनुसार राजा विशाल ने एक विशाल नगर बनाया था जो बाद में वैशाली के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इसे 600 ईसा पूर्व का कालखंड माना जा सकता है.
एक साथ बैठते थे 7707 जनप्रतिनिधिः इस गणराज्य में एक विशाल संसद भवन हुआ करता था, जहां जनता की ओर से चुने गये प्रतिनिधि बैठक करते थे. संसद भवन का सभा कक्ष इतना विशाल था कि एक साथ 7707 जनप्रतिनिधि बैठ सकते थे. कई इतिहासकारों ने उन जनप्रतिनिधियों को राजा अथवा प्रधान कह कर भी संबोधित किया है.
बहुमत के आधार पर होता था निर्णयः सभी जनप्रतिनिधि एक ही सभा कक्ष में बैठकर अपने-अपने मुद्दों पर विचार-विमर्श कर उसका निराकरण करते थे. कुछ मामलों का निचले स्तर पर भी निष्पादन किया जाता था. उसे समय जातीय व्यवस्था नहीं थी.कई लेखों से पता चलता है कि वैशाली बज्जी महाजनपद की राजधानी थी और राज्य का घेरा 1000 मील था.
भगवान बुद्ध की कर्मस्थली और भगवान महावीर की जन्मस्थलीः हाजीपुर के आरएन कॉलेज के प्रोफेसर कुमार दिवेश बताते हैं कि "वैदिक काल में जो दौर था वह जन का दौर था जो उत्तर वैदिक काल में जनपद के दौर में बदला. फिर जब बुद्ध का दौर आता है तो महाजनपद का दौर शुरू हुआ. जो 16 महाजनपद हुए उसमें एक बज्जी था जो आठ राज्यों का संघ रहा था.इसमें ही एक वैशाली की लिच्छवि भी रही है."
हिमालय की तराई से गंगा के तराई तक था वैशाली गणराज्यः वरिष्ठ पत्रकार पांडे बृजनंदन के मुताबिक "लिच्छवियों ने अपने गणराज्य का विस्तार किया तो वैशाली को अपनी राजधानी बनायी. वैशाली गणराज्य हिमालय की तराई से लेकर गंगा की तराई इलाके तक फैला था. माना जाता है कि राजा विशाल ने 8 घटकों को मिलाकर संगठन का विस्तार किया."
वैशाली से सीख लेंगे आज के जनप्रतिनिधि ?: आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. हालांकि आधुनिक लोकतंत्र में साम, दान, दंड, भेद का जोर देखने को मिल रहा है. संप्रदाय और जाति के आधार पर मतों का ध्रुवीकरण हो रहा है. ऐसे में जब लोकतंत्र का महान् पर्व चल रहा है तो जरूरत है कि वैशाली गणराज्य के सिद्धांतों से सीख ली जाए ताकि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो सके.