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उत्तराखंड में विद्युत संविदा कर्मियों का टूटने लगा सब्र, रोक के बावजूद दिखने लगे आंदोलन के संकेत - Energy Corporation Contract Workers

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 14, 2024, 8:46 AM IST

Energy Corporation Contract Workers in Uttarakhand उत्तराखंड में विद्युत संविदा कर्मचारियों का सब्र अब जवाब देने लगा है. उनकी मांग सालों साल पुरानी है. मामले में श्रम न्यायालय से लेकर हाईकोर्ट भी कर्मियों के पक्ष में फैसला कर चुका है, लेकिन सरकार कर्मचारियों की मांग किसी भी हालत में पूरा करने के मूड में नहीं है. शायद यही वजह है कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार खुद कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है. हालांकि, विद्युत संविदा कर्मचारी इसके बावजूद सरकार और शासन से उम्मीद लगाए बैठे हैं, जिससे अब कर्मचारियों का भरोसा उठने लगा है.

Uttarakhand Energy Corporation Strike Ban
उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन (फोटो सोर्स- ईटीवी भारत)

देहरादून: उत्तराखंड में ऊर्जा के तीनों निगमों (यूपीसीएल, यूजेवीएनएल, पिटकुल) में उपनल के माध्यम से काम करने वाले संविदा कर्मचारियों की स्थिति दुविधा भरी हो गई है. एक तरफ विद्युत संविदा कर्मचारियों की विभिन्न मांगों का मामला कोर्ट में चल रहा है तो कर्मचारी सालों से मांगे पूरी न होने के चलते अपना सब्र भी खोने लगे हैं. एक तरफ कर्मचारी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार पर मांगे पूरी करने का भरोसा भी बना हुआ है. हालांकि, अब दिनों दिन कर्मचारियों में आक्रोश भी बढ़ने लगा है.

उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन की बैठक के दौरान कुछ इसी तरह की स्थिति दिखाई दी. कर्मचारियों की मांग नियमितीकरण, समान काम का समान वेतन और महंगाई भत्ते से जुड़ी है. इन सभी मांगों पर वित्त की मंजूरी बेहद जरूरी है, लेकिन ना तो वित्त से इन मांगों पर मुहर लगने की उम्मीद है और न ही कर्मचारियों का अपना विभाग ही इस दिशा में गंभीर प्रयास करता हुआ दिखाई दे रहा है.

ऊर्जा निगम में हड़ताल पर लगी है रोक: कर्मचारी संगठन भी अब इस हालत को समझने लगा है और इसीलिए विद्युत संविदा कर्मचारियों ने बड़े आंदोलन के संकेत देना शुरू कर दिया है. हालांकि, इन कर्मचारियों के सामने दूसरी बड़ी परेशानी ये है कि ऊर्जा निगम पहले ही किसी भी तरह की हड़ताल को प्रतिबंधित कर चुका है. ऐसे में इन कर्मचारियों के लिए आंदोलन करना तो रास्ता है, लेकिन आंदोलन को हड़ताल तक ले जाना मुमकिन नहीं दिखाई दे रहा.

दोहरी नीति से खफा कर्मचारी: उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि स्पष्ट कहते हैं कि राज्य में कर्मचारियों को लेकर दोहरी नीति बनी हुई है. कुछ जगहों पर कर्मचारियों को बिना नियम के ही नियमित किया जा रहा है तो ऊर्जा निगम में पिछले कई सालों से काम करने वाले कर्मचारी के लिए कोई नियमितीकरण या समान काम के बदले समान वेतन की व्यवस्था नहीं है.

हैरानी की बात ये है कि पूर्व में ऊर्जा सचिव मीनाक्षी सुंदरम महंगाई भत्ता (VDA) ऊर्जा संविदा कर्मचारियों के लिए देने से जुड़ा आदेश भी कर चुके हैं, लेकिन शासन में उन पर भारी दबाव के बाद उन्हें 24 घंटे के भीतर इस आदेश को वापस लेना पड़ा था. कर्मचारी संगठन का आरोप है कि ऊर्जा निगम ठेकेदारी प्रथा पर चलने का षड्यंत्र रचा जा रहा है.

उनका ये भी कहना है कि तमाम कार्यों को अब ठेके पर देने की योजना बना रही है. हालांकि, अब कर्मचारी संगठन ने इन हालातों में आंदोलन करने के लिए एकजुट होने की तैयारी कर ली है और एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने के भी संकेत दे दिए हैं. जिससे एक बार फिर से सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है.

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उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन की बैठक के दौरान कुछ इसी तरह की स्थिति दिखाई दी. कर्मचारियों की मांग नियमितीकरण, समान काम का समान वेतन और महंगाई भत्ते से जुड़ी है. इन सभी मांगों पर वित्त की मंजूरी बेहद जरूरी है, लेकिन ना तो वित्त से इन मांगों पर मुहर लगने की उम्मीद है और न ही कर्मचारियों का अपना विभाग ही इस दिशा में गंभीर प्रयास करता हुआ दिखाई दे रहा है.

ऊर्जा निगम में हड़ताल पर लगी है रोक: कर्मचारी संगठन भी अब इस हालत को समझने लगा है और इसीलिए विद्युत संविदा कर्मचारियों ने बड़े आंदोलन के संकेत देना शुरू कर दिया है. हालांकि, इन कर्मचारियों के सामने दूसरी बड़ी परेशानी ये है कि ऊर्जा निगम पहले ही किसी भी तरह की हड़ताल को प्रतिबंधित कर चुका है. ऐसे में इन कर्मचारियों के लिए आंदोलन करना तो रास्ता है, लेकिन आंदोलन को हड़ताल तक ले जाना मुमकिन नहीं दिखाई दे रहा.

दोहरी नीति से खफा कर्मचारी: उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि स्पष्ट कहते हैं कि राज्य में कर्मचारियों को लेकर दोहरी नीति बनी हुई है. कुछ जगहों पर कर्मचारियों को बिना नियम के ही नियमित किया जा रहा है तो ऊर्जा निगम में पिछले कई सालों से काम करने वाले कर्मचारी के लिए कोई नियमितीकरण या समान काम के बदले समान वेतन की व्यवस्था नहीं है.

हैरानी की बात ये है कि पूर्व में ऊर्जा सचिव मीनाक्षी सुंदरम महंगाई भत्ता (VDA) ऊर्जा संविदा कर्मचारियों के लिए देने से जुड़ा आदेश भी कर चुके हैं, लेकिन शासन में उन पर भारी दबाव के बाद उन्हें 24 घंटे के भीतर इस आदेश को वापस लेना पड़ा था. कर्मचारी संगठन का आरोप है कि ऊर्जा निगम ठेकेदारी प्रथा पर चलने का षड्यंत्र रचा जा रहा है.

उनका ये भी कहना है कि तमाम कार्यों को अब ठेके पर देने की योजना बना रही है. हालांकि, अब कर्मचारी संगठन ने इन हालातों में आंदोलन करने के लिए एकजुट होने की तैयारी कर ली है और एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने के भी संकेत दे दिए हैं. जिससे एक बार फिर से सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है.

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