लखनऊ : कांग्रेस ने अमेठी और रायबरेली सीट पर उम्मीदवारों को लेकर पांचवें चरण के नामांकन के अंतिम दिन तक सस्पेंस बरकरार रखा था. कांग्रेस ने इस सीट पर उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही अगले एक महीने के लिए एक नया सस्पेंस देश के सामने फिर खड़ा कर दिया है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय से लेकर देश के राजनीतिक गलियारों में अब राहुल गांधी के दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ने के घोषणा के बाद वह किस सीट को 4 जून के बाद खाली करेंगे इसको लेकर चर्चा तेज हैं.
कांग्रेस की ओर से नया सस्पेंस पैदा किया गया है कि क्या रायबरेली से चुनाव जीतने के बाद राहुल इस सीट को खाली कर देंगे और उपचुनाव के जरिए उनकी बहन प्रियंका गांधी को यहां से सक्रिय राजनीति में लाया जाएगा. तीन मई को राहुल गांधी ने रायबरेली से अपना नामांकन दाखिल कर दिया है, यह सिर्फ गांधी परिवार की सीट रही है. राहुल से पहले उनकी मां सोनिया गांधी लगातार 20 साल तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है. अब वह राज्यसभा की सदस्य हैं.
इससे पहले 2004 में वह अपनी मां की सियासी विरासत की डोर पड़कर अमेठी से पहली बार देश की संसद में पहुंचे थे. रायबरेली सीट पर सोनिया गांधी से पहले उनके सास और भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उससे पहले इंदिरा गांधी के पति और राहुल गांधी के दादा फिरोज गांधी यहां से दो बार चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को इस सीट पर मुंह की खानी पड़ी थी, लेकिन 1980 में जब फिर चुनाव हुए तो उन्होंने प्रचंड जीत हासिल की थी.
लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि राजनीतिक परिदृश्य में सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर कांग्रेस की रणनीति है क्या है? राहुल गांधी को अमेठी छोड़ना पड़ा और फिर से मां की विरासत की सियासत के लिए रायबरेली से नामांकन. ऐसा कदम उठाकर कांग्रेस और राहुल गांधी ने दो बड़े और सुरक्षित दांव खेले हैं. पहली बात तो भाजपा नेता केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की जो एक पहचान है वह राहुल गांधी जैसे कद्दावर नेता को उनके घर में चुनाव हराया और वही दूसरी बात यह है कि कभी मौका मिला तो राहुल गांधी पर दोगनी ताकत लगाकर हमला करती रहीं, लेकिन 2014 चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी भाजपा और स्मृति ईरानी का वह गोल्डन भाव बेकार कर दिया है.
क्या होगा, अगर वायानाड और रायबरेली का रिजल्ट एक जैसा हो
प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि पहले तो इस सवाल को ही करके की आखिर राहुल गांधी के वायनाड से जीतने पर संदेह क्यों जाते जा रहा हैं. इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि वायनाड में पिछली बार के मुकाबले इस बार राहुल के सामने खड़ी कैंडिडेट कौन है? राहुल गांधी ने पिछली बार मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं के दबदबे वाले वायनाड लोकसभा सीट को सुरक्षित समझा था. अमेठी में इस आशंका के बीच राहुल का यह फैसला सही साबित हुआ था और वह वायनाड में भाकपा प्रत्याशी को हराकर संसद पहुंचे थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल को वायनाड में 7 लाख 6000 से अधिक वोट मिले थे. जबकि उनके सामने जो प्रत्याशी था उसको दो लाख चार हजार वोट ही मिले थे.
वायनाड में हालात बदले हैं : बहरहाल इस बार वायनाड के हालात अलग हैं. प्रदेश के सत्ताधारी वाम गठबंधन में इस बार प्रत्याशी बदल दिया है. इस बार राहुल का भाजपा महासचिव डी. राजा की पत्नी से मुकाबला है. हालांकि पिछली बार की तरह इस बार भी इंडियन मुस्लिम लीग का समर्थन राहुल को प्राप्त है. वायनाड के मुस्लिम मतदाताओं पर इंडियन मुस्लिम लीग का बहुत बड़ा प्रभाव है, लेकिन डी. राजा का अपने सपोर्ट बसे हैं. इसलिए वहां राहुल के लिए जीत आसान नहीं बताई जा रही है, लेकिन अगर राहुल वायनाड से भी जीत गए तो कहा जा रहा है कि वह रहे हो रायबरेली का ही उपयोग करेंगे, क्योंकि देश की सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश से आती हैं और गांधी परिवार का प्रदेश में अस्तित्व खत्म हो जाएगा. यह कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी रणनीति भूल होगी.
यह भी पढ़ें : मेरठ: राहुल और प्रियंका गांधी को प्रशासन ने शहर पहुंचने से पहले लौटाया
यह भी पढ़ें : लखनऊ: अचानक से जयपुर के लिए रवाना हुए प्रियंका और राहुल गांधी