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लखनऊ की रहस्यमयी सुरंगें; जानिए बड़ा इमामबाड़ा, हुसैनाबाद से लेकर मोती महल तक की सुरंगों की अनकही दास्तां - TUNNEL IN LUCKNOW

इतिहासकार रोशन तकी और नवाब के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला ने दी जानकारी.

लखनऊ में ऐतिहासिक इमारतें
लखनऊ में ऐतिहासिक इमारतें (Photo credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 30, 2024, 5:52 PM IST

Updated : Dec 30, 2024, 6:00 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी ऐतिहासिक इमारतों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. नवाबों के दौर में यहां कई शानदार इमारतें बनाई गईं, जो आज भी अपनी भव्यता के कारण पर्यटकों को आकर्षित करती हैं. इन इमारतों के बीच मौजूद सुरंगें आज भी रहस्य और चर्चाओं का विषय बनी हुई हैं. इन सुरंगों से जुड़ी कहानियां और दावे इतिहास में गहरी दिलचस्पी रखने वालों को अपनी ओर खींचते हैं. आइए जानते हैं इन सुरंगों की हकीकत और इनके निर्माण के पीछे की कहानी...

भूलभुलैया और इसकी सुरंगें : लखनऊ के बड़ा इमामबाड़ा की भूलभुलैया में एक सुरंग आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. प्रसिद्ध इतिहासकार रोशन तकी के अनुसार, यह सुरंग गोमती नदी तक जाती थी. इसका निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि बाढ़ में नदी का जलस्तर बढ़ने पर पानी को इमामबाड़े की बावड़ी तक लाया जा सके.


छत्तर मंजिल और जुबली कॉलेज की सुरंगें : छत्तर मंजिल के परिसर में खुदाई के दौरान सुरंगों का पता चला था. इसी तरह, जुबली कॉलेज के बारे में कहा जाता है कि यहां भी एक पुरानी सुरंग मौजूद है, जो लगभग 200 साल पुरानी है. यह माना जाता है कि नवाब आसफ-उद-दौला ने इसे गोमती नदी से जोड़ने के लिए बनवाया था, हालांकि, बाद में कॉलेज के छात्रों की सुरक्षा के लिए इसे बंद कर दिया गया.

हुसैनाबाद और मोती महल की सुरंगें : हुसैनाबाद से लेकर मोती महल तक फैली सुरंगों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें नवाबी परिवार के सदस्यों और बेगमों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए बनाया गया था. इतिहासकार रोशन तकी बताते हैं कि कैसरबाग की बारादरी से भी एक सुरंग जुड़ी हुई थी, जो अन्य इमारतों को जोड़ती थी.

अंग्रेजों के दौर में सुरंगों का हश्र : नवाबी दौर में इन सुरंगों का उपयोग सुरक्षा और गोपनीयता के लिए किया जाता था, लेकिन अंग्रेजों के शासन के बाद इनका उपयोग लगभग समाप्त हो गया. 1960 में आई भीषण बाढ़ के बाद इन सुरंगों को पूरी तरह बंद कर दिया गया.




इतिहासकार रोशन तकी का मानना है कि इन सुरंगों का निर्माण युद्ध और आपात स्थितियों में सुरक्षित निकासी के लिए किया गया था. इसके अलावा, पर्दा प्रथा का पालन करने वाली नवाबी बेगमें इन्हीं सुरंगों से आवागमन करती थीं. नवाबों की भव्यता और गोपनीयता को बनाए रखने में इन सुरंगों का अहम योगदान था.

नवाब मसूद अब्दुल्ला का बयान : नवाब मसूद अब्दुल्ला कहते हैं कि नवाबों के लिए यह स्वीकार्य नहीं था कि वे आम रास्तों से गुजरें, इसलिए उन्होंने लाल ईंटों से खूबसूरत और मजबूत सुरंगों का निर्माण करवाया. इन सुरंगों का उपयोग विशेष रूप से बेगमों और राजकीय व्यक्तियों के लिए होता था.


नवाब के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला कहते हैं कि लखनऊ की सुरंगें आज भी एक रहस्य बनी हुई हैं. समय के साथ इनका उपयोग बंद हो गया, लेकिन इनसे जुड़ी कहानियां आज भी इतिहास प्रेमियों को रोमांचित करती हैं. ये सुरंगें न केवल नवाबों के दौर की शान-ओ-शौकत की गवाही देती हैं, बल्कि उस दौर के निर्माण कौशल और सुरक्षा तंत्र को भी दर्शाती हैं. उन्होंने कहा कि लखनऊ की ये रहस्यमयी सुरंगें अपने इतिहास के पन्नों के साथ आज भी जीवंत हैं. इनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियां और किस्से आने वाले समय में भी लोगों को अपनी ओर खींचते रहेंगे.

यह भी पढ़ें : छतर मंजिल को नहीं मिल रही निर्माण की राह - लखनऊ हिंदी खबरें

यह भी पढ़ें : लखनऊ : 16 फीट मोटी है दुनिया के सबसे बड़े इमामबाड़े की छत - यूपी न्यूज

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी ऐतिहासिक इमारतों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. नवाबों के दौर में यहां कई शानदार इमारतें बनाई गईं, जो आज भी अपनी भव्यता के कारण पर्यटकों को आकर्षित करती हैं. इन इमारतों के बीच मौजूद सुरंगें आज भी रहस्य और चर्चाओं का विषय बनी हुई हैं. इन सुरंगों से जुड़ी कहानियां और दावे इतिहास में गहरी दिलचस्पी रखने वालों को अपनी ओर खींचते हैं. आइए जानते हैं इन सुरंगों की हकीकत और इनके निर्माण के पीछे की कहानी...

भूलभुलैया और इसकी सुरंगें : लखनऊ के बड़ा इमामबाड़ा की भूलभुलैया में एक सुरंग आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. प्रसिद्ध इतिहासकार रोशन तकी के अनुसार, यह सुरंग गोमती नदी तक जाती थी. इसका निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि बाढ़ में नदी का जलस्तर बढ़ने पर पानी को इमामबाड़े की बावड़ी तक लाया जा सके.


छत्तर मंजिल और जुबली कॉलेज की सुरंगें : छत्तर मंजिल के परिसर में खुदाई के दौरान सुरंगों का पता चला था. इसी तरह, जुबली कॉलेज के बारे में कहा जाता है कि यहां भी एक पुरानी सुरंग मौजूद है, जो लगभग 200 साल पुरानी है. यह माना जाता है कि नवाब आसफ-उद-दौला ने इसे गोमती नदी से जोड़ने के लिए बनवाया था, हालांकि, बाद में कॉलेज के छात्रों की सुरक्षा के लिए इसे बंद कर दिया गया.

हुसैनाबाद और मोती महल की सुरंगें : हुसैनाबाद से लेकर मोती महल तक फैली सुरंगों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें नवाबी परिवार के सदस्यों और बेगमों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए बनाया गया था. इतिहासकार रोशन तकी बताते हैं कि कैसरबाग की बारादरी से भी एक सुरंग जुड़ी हुई थी, जो अन्य इमारतों को जोड़ती थी.

अंग्रेजों के दौर में सुरंगों का हश्र : नवाबी दौर में इन सुरंगों का उपयोग सुरक्षा और गोपनीयता के लिए किया जाता था, लेकिन अंग्रेजों के शासन के बाद इनका उपयोग लगभग समाप्त हो गया. 1960 में आई भीषण बाढ़ के बाद इन सुरंगों को पूरी तरह बंद कर दिया गया.




इतिहासकार रोशन तकी का मानना है कि इन सुरंगों का निर्माण युद्ध और आपात स्थितियों में सुरक्षित निकासी के लिए किया गया था. इसके अलावा, पर्दा प्रथा का पालन करने वाली नवाबी बेगमें इन्हीं सुरंगों से आवागमन करती थीं. नवाबों की भव्यता और गोपनीयता को बनाए रखने में इन सुरंगों का अहम योगदान था.

नवाब मसूद अब्दुल्ला का बयान : नवाब मसूद अब्दुल्ला कहते हैं कि नवाबों के लिए यह स्वीकार्य नहीं था कि वे आम रास्तों से गुजरें, इसलिए उन्होंने लाल ईंटों से खूबसूरत और मजबूत सुरंगों का निर्माण करवाया. इन सुरंगों का उपयोग विशेष रूप से बेगमों और राजकीय व्यक्तियों के लिए होता था.


नवाब के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला कहते हैं कि लखनऊ की सुरंगें आज भी एक रहस्य बनी हुई हैं. समय के साथ इनका उपयोग बंद हो गया, लेकिन इनसे जुड़ी कहानियां आज भी इतिहास प्रेमियों को रोमांचित करती हैं. ये सुरंगें न केवल नवाबों के दौर की शान-ओ-शौकत की गवाही देती हैं, बल्कि उस दौर के निर्माण कौशल और सुरक्षा तंत्र को भी दर्शाती हैं. उन्होंने कहा कि लखनऊ की ये रहस्यमयी सुरंगें अपने इतिहास के पन्नों के साथ आज भी जीवंत हैं. इनसे जुड़ी दिलचस्प कहानियां और किस्से आने वाले समय में भी लोगों को अपनी ओर खींचते रहेंगे.

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Last Updated : Dec 30, 2024, 6:00 PM IST
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