झालावाड़. राजस्थान अपनी ऐतिहासिक कला व संस्कृति के लिए पूरे विश्व में विख्यात है. यहां कुछ दूरी पर ही लोगों का पहनावा व बोली जाने वाली भाषा बदल जाती है. वहीं, हाड़ौती क्षेत्र अपनी समृद्ध परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है. यहां की लोक संस्कृति व प्रथाओं को ग्रामीण आज भी बचाए हुए हैं. ऐसी प्रथाएं जो न केवल परिवारों को जोड़े रखती हैं, बल्कि समाज में एक समरसता भी लाती है. झालावाड़ के बकानी कस्बे के छोटे से गांव कमलपुरा में रविवार को करीब 50 साल से जारी अनूठे सामूहिक भोज का आयोजन किया गया. इसमें करीब 400 लोगों ने 58 क्विंटल आटा, 400 किलो दाल, 450 किलो गुड़, 200 किलो घी और 4 हजार से अधिक कंडे का इस्तेमाल कर 10 हजार से अधिक लोगों का भोजन तैयार किया.
लोधा समाज के करीब 60 गांवों के लोग इस अनूठे आयोजन में शामिल हुए. वहीं, भगवान सत्यनारायण की प्रसाद के रूप में शामिल लोगों को भोजन कराया गया. साथ ही बताया गया कि इस प्रसादी को तैयार करने के लिए लोगों से घर-घर जाकर पहले आटा, दाल, घी व गोबर के कंडे इक्कठे किए जाते हैं और फिर बाद में भगवान सत्यनारायण की प्रसादी तैयार की जाती है.
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कथा सुनने पहुंचते हैं 60 गांवों के लोग : इस अनूठे सामूहिक भोज से एक दिन पहले गांव में भगवान की कथा व भजन संध्या का आयोजन किया जाता है. वहीं, कथा सुनने के लिए बकानी कस्बे के आसपास स्थित करीब 60 गांवों के लोधा समाज के लोग सपरिवार पहुंचते हैं. भजन संध्या का आयोजन सामूहिक भोज के एक दिन पहले होता है. साल में एक बार होने वाले इस अनूठे आयोजन में कथा के दौरान कई आयोजन होते हैं. भगवान की पूजा के बाद ग्रामीण रातभर भजन करते हैं. इस दिन गांव के सभी मंदिरों के ध्वज बदले जाते हैं. साथ ही भगवान की पोशाक को भी बदल दिया जाता है और नए सिरे से भगवान का श्रृंगार किया जाता है.
व्यक्ति की डाइट के हिसाब से लेते हैं सामग्री : समाज के प्रतिनिधि कमल लोधा ने बताया कि यह प्रथा उनके पूर्वजों के समय से चली आ रही है. यह आयोजन भले ही लोधा समाज का है, लेकिन इसमें गांव के सभी समाज बढ़ चढ़कर सहयोग करते आए हैं. उन्होंने ने बताया कि इस अनूठे आयोजन के लिए सबसे पहले एक टीम तैयार की जाती है, जो आसपास के गांवों में समाज के प्रत्येक घरों में जाकर प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से आटा, दाल, कंडे और पैसे इक्कठे करती है. इसमें एक परिवार से 3 किलो आटा, 6 कंडे और प्रति व्यक्ति 400 ग्राम दाल ली जाती है.
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देसी ठाठ से तैयार की जाती है प्रसादी : भजन संध्या के एक दिन बाद होने वाले इस सामूहिक भोज के अनूठे आयोजन में बड़े स्तर पर प्रसादी तैयार की जाती है. इसमें बाटियां बनाने के लिए 12 खाट का उपयोग किया जाता है. ऐसे में घर-घर जहां भी खाट होती है, वहां से मंगा ली जाती है. वहीं, कम पड़ने पर निवार की खाट का उपयोग किया जाता है और बाद में गोबर के कंडे जलाकर बाटियों को राख में गाड़ दिया जाता है, जिन्हें सेकने के लिए तीन गांव के करीब 300 से 400 लोग आते हैं. इस आयोजन में करीब 10000 से अधिक लोगों के लिए भोजन प्रसादी तैयार की जाती है.
बहन-बेटियों को भी दिया जाता है निमंत्रण : इस अनूठे आयोजन के लिए जिन बहन-बेटियों की शादी दूसरे गांवों में हुई होती है, उन्हें व उनके परिवार को भी निमंत्रण दिया जाता है. बाद में बड़े स्तर पर पंगत लगाकर सभी को सामूहिक भोज करवाया जाता है.