वाराणसी : बॉलीवुड से लेकर राजनीतिक गलियारों तक हर ओर बनारसी साड़ी की डिमांड देखी जाती है. इसकी पूरी दुनिया दीवानी है. यही वजह है कि जो भी काशी आता है, बनारसी साड़ी को खरीदने की चाह रखता है, लेकिन कई बार ग्राहकों को बनारसी साड़ी में ठगी का भी शिकार होना पड़ता है. उन्हें असली बताकर नकली साड़ियां असली दाम में बेच दी जाती हैं, लेकिन अब ग्राहकों के साथ ऐसा फ्रॉड नहीं हो सकेगा. इसको लेकर काशी के युवा ने एक नई तरकीब की खोज की है, जिसके तहत अब एक क्लिक में बनारस की ओरिजनल और नकली बनारसी साड़ियों की पहचान की जा सकेगी.
जी हां! इस तरकीब को खोजने का काम आईआईटी दिल्ली से पढ़े कुणाल मौर्य ने किया है, जो बनारस के रामनगर में रहते हैं. जिनका पुश्तैनी बनारसी साड़ी का कारोबार है. आईआईटी दिल्ली से पढ़कर वाराणसी लौटे कुणाल ने बनारसी साड़ी में हो रही मिलावट को देखते हुए इस चिप को बनाने का निर्णय लिया. जिसमें उनकी मदद उनके भाई पिता और दोस्त ने की.
स्टार्टअप के तहत की शुरुआत : बताते चलें कि, स्टार्टअप इंडिया के तहत कुणाल ने इस चिप और एप्लीकेशन(एप) को तैयार किया है. जिसमें लगभग 15 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट हुआ है. कुणाल ने खुद से इस चिप को तैयार किया है, जिसे साड़ी में लगाया जाएगा. साड़ी के बनाने तक की डिटेल व वीडियो उसमें अपडेट कर दिया जाएगा, ताकि कोई भी सहजता से असली बनारसी साड़ी खरीदते वक्त इसकी हकीकत को जान सके.
काशी के युवा ने बनाया नैनो चिप : इस बारे में कुणाल मौर्य ने बताया कि, वाराणसी में बड़ी संख्या में लोग हाथ की बनी हुई साड़ी बोलकर मशीन से बनी हुई नकली साड़ी लोगों को बेचते हैं. लोगों को साड़ियों की बहुत जानकारी नहीं होती तो, दुकानदार जो कहता है उसे मानकर साड़ी खरीद लेते हैं. लगभग 80 फीसदी लोगों को नकली साड़ी ही बेची जा रही थी. जिस वजह से बुनकरों पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा था.
2009 में लगभग 90 हजार बनारसी ओरिजनल साड़ियों के बुनकर थे जो 2019 तक घट कर 25,000 हो गए थे. इसको देखते हुए हम लोगों ने बुनकरों को बचाने की मुहिम शुरू की. इसके लिए ओरिजनल सामान की बिक्री सबसे ज्यादा जरूरी थी उसके तहत इस चिप को तैयार किया गया, जो आरएफआईडी तकनीक पर काम करती है.
एप्लिकेशन बताएगी साड़ी का राज, देगी सभी जानकारी : वहीं, दूसरे साथी नीलेश मौर्य ने बताया कि इसे साड़ी के आंचल पर लगाया जाता है और इसका नाम हस्तकला प्रमाणक रखा गया है. जिसका मतलब होता है कि हाथों से बने हुए सामान को प्रमाणित करना, यह हर साड़ी के आंचल में लगाया जाता है. इसके ऊपर कपड़े का एक बैज लगता है, जिसके अंदर इस चिप को रख दिया जाता है. जब कोई भी अपना मोबाइल इस पर टैप करता है तो सहजता के साथ साड़ी की पूरी डिटेल मोबाइल में खुल जाती है.
उन्होंने बताया कि यह सारी डिटेल हमारे एप्लीकेशन पर मौजूद रहते हैं. जिसमें यह साड़ी कब बनी, किसने बनाई, कितना धागा लगा, कौन सा धागा लगा, कितने समय में यह साड़ी तैयार हुई, कौन सा रंग है, कहां बनी? यह सारी डिटेल और साड़ी का बनते हुए वीडियो हम वेबसाइट पर अपडेट करते हैं, जिसे देखकर खरीददार खुद इस बात की जानकारी ले लेते हैं कि यह साड़ी ओरिजनल है या नहीं. जब ग्राहक को पता चलता है कि यह ओरिजनल साड़ी है तो वह खुद से खरीदते हैं और बुनकरों को भी इसका लाभ मिलता है.
2023 में तीन युवाओं ने किया तैयार, 180 रुपये आएगा खर्च : कुणाल बताते हैं कि, 2023 जनवरी में इस तकनीकी को विकसित करने की शुरुआत की गई. इसमें तीन युवा जुटे हुए थे, लगभग डेढ़ साल में हम लोगों ने इसे बना लिया. वर्तमान समय में हम लोग अलग-अलग कोऑपरेटिव सोसाइटी के जरिए इसे हर गद्दीदार तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सहजता के साथ ओरिजनल बनारसी साड़ी को बेचा जा सके और ग्राहकों के साथ बुनकरों को भी इसका लाभ मिले.
उन्होंने बताया कि इस एक चिप की एक साड़ी पर खर्च 180 रुपये आता है. वहीं, यदि कोई कारोबारी इस ऐप को लेता है तो लगभग 500 रुपये महीने का खर्च पड़ता है. यह बेहद सस्ती और अच्छी तकनीक है, जो बनारसी साड़ी की वजूद को बचाकर के रखना में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाएगी.