उज्जैन: अखिल भारतीय युवा ब्राम्हण समाज ने दशहरा पर रावण के पुतला दहन पर रोक लगाने की मांग की है. यह मांग प्रदेश के मुखिया मोहन यादव को एक पत्र लिखकर की गई है. 12 अक्टूबर को दशहरा का पर्व है. इस दिन पूरे देश में जगह-जगह रावण का पुतला जलाया जाता है. दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है.
रावण पुतला दहन रोकने की मांग
महाकाल मंदिर के पुजारी और अखिल भारतीय युवा ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष महेश शर्मा ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने दशहरा पर्व पर रावण के पुतला दहन पर रोक लगाने की मांग की है. महेश शर्मा का कहना है कि, "रावण बहुत विद्वान थे. सभी शास्त्रों और वेदों के ज्ञाता थे. वह भगवान शिव के सबसे बड़े उपासक थे. उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न भी किया था. त्रेता युग से लेकर आज तक रावण का अपमान किया जा रहा है. रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन उसने उनके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया था. उनको अशोक वाटिका में सुरक्षित रखा था."
'दुष्कर्मियों और अत्याचरियों का पुतला जलाना चाहिए'
महेश शर्मा ने कहा, "हर साल दशहरा को रावण का पुलता जलाया जाता है, जो ब्राह्मणों का अपमान है. अगर पुतला जलाना ही है तो उन लोगों के पुतले जलाये जाने चाहिए जो आज महिलाओं को साथ दुष्कर्म और अत्याचार करते हैं. रावण के पुतला दहन को रोकना है. इसके लिए मैंने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिकर इस पर रोक लगाने की मांग की है."
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क्यों किया जाता है रावण का पुतला दहन
शास्त्रों के अनुसार 10 सिर वाला रावण अस्त्र-शस्त्रों का पारंगत, तपस्वी और प्रकांड विद्वान था. रावण ने ब्रह्माजी की 10 हजार वर्षों तक तपस्या की और हर 1000वें वर्ष में उसने अपने 1 शीश की आहुति दी, इसी तरह जब वह अपना 10वां शीश चढ़ाने लगा तो ब्रह्माजी प्रकट हुए और रावण से वर मांगने को कहा. रावण ने ब्रह्माजी से ऐसा वर मांग लिया की उसे मारना मुश्किल था. रावण पर जब राम ने विजय प्राप्त की तो इसे विजयादशमी कहा जाने लगा. रावण का सर्वनाश उसके क्रोध और अहंकार के कारण हुआ. इसलिए उसके वध को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा गया. इसी वजह से बुराई रूपी रावण के पुतले के दहन की परंपरा हर साल निभाई जाती है.