नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने लिबरेशन टाईगर्स ऑफ तमिल एलम (एलटीटीई) पर प्रतिबंध लगाने वाले फैसले को लेकर यूएपीए ट्रिब्यूनल में चल रही सुनवाई में ब्रिटेन स्थित श्रीलंकाई नागरिक को अपना पक्ष रखने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दिया है. जस्टिस प्रतिभा सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच ने श्रीलंकाई नागरिक विसुवनाथन रुद्रकुमारन की याचिका खारिज करने का आदेश दिया.
रुद्रकुमारन ने पक्षकार बनाने की मांग की: रुद्रकुमारन ने याचिका दायर कर 11 सितंबर को एलटीटीई पर यूएपीए के प्रावधानों के तहत प्रतिबंध लगाने के मामले में खुदको पक्षकार बनाने की मांग की थी. हाईकोर्ट ने कहा कि यूएपीए ट्रिब्यूनल के फैसले में हस्तक्षेप की कोई जरुरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में फैसले की समीक्षा करते समय सावधानी बरतने की जरुरत है. क्योंकि ये देश की सुरक्षा और अखंडता से जुड़ा हुआ है.
दूसरे देशों के संबंधों पर असर पड़ने का दिया हवाला : हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता रुद्रकुमारन खुदको तमिल एलम सरकार का प्रधानमंत्री होने का दावा करता है. वो खुद को एलटीटीई का सदस्य या पदाधिकारी भी नहीं बताता है. ऐसे में अगर उसकी याचिका को स्वीकार किया जाता है तो इसके दूसरे देशों के संबंधों पर गहरे असर पड़ेंगे. रुद्रकुमारन का दावा है कि एलटीटीई पर प्रतिबंध के बाद इसके समर्थकों ने श्रीलंका में तमिलों के हित की बात शांतिपूर्ण तरीके से उठाने की जरुरत महसूस की. एलटीटीई के समर्थकों ने टीजीटीई नामक एक संस्था का गठन किया.
ट्रिब्यूनल ने खारिज की रुद्रकुमारन की याचिका : हाईकोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि एलटीटीई पर प्रतिबंध के मामले पर सुनवाई कर रही यूएपीए ट्रिब्यूनल में तमिलनाडु की राज्य सरकार और एलटीटीई के दूसरे समर्थकों का पक्ष भी सुना जा रहा है. इससे ये साफ है कि यूएपीए ट्रिब्यूनल नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत पर कार्रवाई कर रही है. ट्रिब्यूनल को पूरा हक है कि इस मामले में किसे पक्षकार बनाएं और किसे नहीं बनाएं. हाईकोर्ट ने कहा कि रुद्रकुमारन ने 2019 में ट्रिब्यूनल के समक्ष हस्तक्षेप याचिका दायर कर खुद को पक्षकार बनाने की मांग की थी जिसे ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया था.
ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देने का प्रावधान नहीं : सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने इस याचिका को सुनवाई योग्य होने पर सवाल उठाते हुए कहा कि यूएपीए के तहत ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देने का कोई प्रावधान नहीं है. केंद्र सरकार ने कहा कि 1992 में ही एलटीटीई पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. प्रतिबंध कि ये अवधि बढ़ा दी गई और 14 मई को एक नोटिफिकेशन के जरिये एलटीटीई को और पांच सालों के लिए गैरकानूनी संगठन करार दिया गया.
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