रांची: किसी भी चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में नेता एक अदद टिकट के लिए अपनी पार्टी निष्ठा को ताक पर रखकर दूसरे दलों में शामिल हो जाते हैं. ऐसे दलबदलुओं के लिए झारखंड की जनता ने लोकसभा चुनाव के नतीजों के जरिए बड़ा संदेश दिया है कि ऐसे नेता उन्हें पसंद नहीं हैं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दल बदलने वाले तीन प्रमुख चेहरों, जिनमें से दो विधायक और एक सांसद थे, को मतदाताओं ने लोकसभा पहुंचाने के लिए वोट देकर दिल्ली जाने से रोक दिया.
सिंहभूम की निवर्तमान सांसद गीता कोड़ा और सीता सोरेन भाजपा में शामिल होने के बाद भी चुनाव हार गईं, वहीं भाजपा विधायक होने के बावजूद टिकट के लिए चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हुए जयप्रकाश भाई पटेल को भी हजारीबाग में करारी हार का सामना करना पड़ा.
"दलीय निष्ठा को नजरअंदाज कर टिकट के लिए दूसरे दलों में जाने वाले नेताओं को इस बार जनता ने संदेश दिया है कि पहले नेता अपनी-अपनी पार्टी के प्रति वफादार रहें, तभी जनता उन पर भरोसा करेगी." - राजेश कुमार, वरिष्ठ टीवी पत्रकार
दुमका से हारीं सीता
इस बार लोकसभा आम चुनाव 2024 में शिबू सोरेन की बड़ी बहू और जामा से तीन बार विधायक रहीं सीता सोरेन ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले झामुमो छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था. 2019 के विजयी उम्मीदवार सुनील सोरेन का घोषित टिकट काटकर भाजपा ने दुमका से सीता सोरेन को अपना उम्मीदवार भी बना दिया.
सीता सोरेन के खिलाफ झामुमो ने अपने पुराने और वफादार अनुभवी नेता नलिन सोरेन को मैदान में उतारा. नतीजा यह हुआ कि शिबू सोरेन के बीमार होने और हेमंत सोरेन के जेल में होने के बावजूद झामुमो ने यह सीट भाजपा से छीन ली. झामुमो उम्मीदवार के तौर पर नलिन सोरेन ने 5,47,370 वोट पाकर सीता सोरेन को 22,527 वोटों से हराया.
सीता सोरेन की जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दुमका में पीएम मोदी की चुनावी रैली के साथ ही भाजपा के कई नेताओं ने संथाल और दुमका में डेरा डाल दिया था, लेकिन फिर भी परिणाम झामुमो के पक्ष में गया.
जेपी को भी हजारीबाग की जनता ने नकार दिया
झारखंड की राजनीति में प्रखर आंदोलनकारी रहे स्वर्गीय टेकलाल महतो की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे पूर्व मंत्री और मांडू से विधायक जयप्रकाश भाई पटेल की अति महत्वाकांक्षा इस बार मतदाताओं को रास नहीं आई. जनता में यह संदेश गया कि जयप्रकाश भाई पटेल के लिए पार्टी की नीति, सिद्धांत और निष्ठा से ज्यादा उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा मायने रखती है.
पिता की मौत के बाद उन्होंने झामुमो पार्टी छोड़ दी. जिस झामुमो ने उन्हें उपचुनाव जिताकर मंत्री बनाया उसे छोड़ वे भाजपा में शामिल हो गए और जब भाजपा ने उन्हें लोकसभा का टिकट नहीं दिया तो चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए.
"जेपी पटेल की छवि एक बेहद महत्वाकांक्षी नेता की बन गई है, जो कम समय में बहुत कुछ हासिल करना चाहते हैं. अब ऐसे नेता विधानसभा स्तर पर अपनी या अपने पिता और परिवार की राजनीतिक विरासत से कुछ हद तक सफल हो सकते हैं, लेकिन लोकसभा क्षेत्र बहुत बड़ा होता है और वहां जीतने के लिए जनता के बीच आपकी छवि भी काफी मायने रखती है. इसलिए जेपी पटेल को हजारीबाग लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार मनीष जायसवाल के हाथों 276686 मतों के बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा." - सतेंद्र सिंह, वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार
गीता पर भारी पड़ीं जोबा
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा लोकसभा आम चुनाव 2024 से ठीक पहले झारखंड से दल बदलने वाली बड़ी नेता थीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और तत्कालीन भाजपा सांसद लक्ष्मण गिलुआ को हराकर लोकसभा पहुंचने वाली गीता कोड़ा कांग्रेस आलाकमान और गांधी परिवार की करीबी बन गई थीं.
प्रदेश कांग्रेस नेताओं की मानें तो प्रियंका गांधी ने उनमें झारखंड से उभरने वाली एक बड़ी आदिवासी महिला का अक्स देखा था, यही वजह है कि पार्टी ने गीता कोड़ा को एकमात्र महिला प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष चुना, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गीता कोड़ा भाजपा में शामिल हो गईं और उन्हें सिंहभूम से टिकट भी मिल गया.
गीता कोड़ा के अचानक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने से सदमे में आई कांग्रेस को अपनी जीती हुई सीट इंडिया ब्लॉक की सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए छोड़नी पड़ी. नतीजा यह हुआ कि गीता कोड़ा को झारखंड की राजनीति में अपनी सादगी के लिए मशहूर अनुभवी नेता और पूर्व मंत्री जोबा मांझी के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा उम्मीदवार के तौर पर सिंहभूम लोकसभा सीट पर हुए चुनाव में उन्हें महज 351762 वोट ही मिल सके और उन्हें 01 लाख 68 हजार 402 वोटों से हार का सामना करना पड़ा.