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बनारस की आबोहवा सुधरेगी जापान का यह तकनीक, शहर के बीचोबीच बसाए जाएंगे कृत्रिम जंगल - VARANASI NEWS

6 स्पॉट चिन्हित किए गए, 2 पर कृत्रिम जंगल बसाने का काम फिलहाल होगा शुरू.

बनारस में बसाए जाएंगे कृत्रिम जंगल.
बनारस में बसाए जाएंगे कृत्रिम जंगल. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 11, 2024, 5:46 PM IST

वाराणसी: दिल्ली में वायु प्रदूषण के बिगड़े हालात की वजह से हरियाणा पंजाब हर तरफ हाहाकार मचा है. प्नदूषण ने यूपी के भी कई शहरों को अपनी चपेट में ले लिया है. हमेशा से ग्रीन जोन में रहने वाला प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र भी कभी ऑरेंज तो कभी रेड जोन में पहुंच जाता है. पॉल्यूशन का लेवल बढ़ा तो चिंता सभी को हुई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मन की बात कार्यक्रम में इस बात का जिक्र किया कि वायु प्रदूषण की बढ़ रही स्थिति से निबटने के लिए हरियाली बढ़ाने की जरूरत है. अब पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में कृत्रिम जंगल बनाए जाने की तैयारी शुरू कर दी गई है. इसके लिए 6 स्पॉट चिन्हित किए गए हैं. जिनमें से दो पर काम शुरू होने जा रहा है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जापान की मियावाकी तकनीक पर इन जंगलों का निर्माण होगा, जहां डेढ़ से 2 एकड़ भूमि में 20000 से ज्यादा वृक्षों को लगाकर लोगों को बड़ी राहत देने की प्लानिंग की जा रही है.

बनारस में बसाए जाएंगे कृत्रिम जंगल. (Video Credit; ETV Bharat)

कानपुर में किया गया है सफल प्रयास: दरअसल, शहरीकरण और विकास के चलते शहरों में कम हुई हरियाली को बढ़कर बिगड़ रहे वायु प्रदूषण के स्तर को सुधारने की प्लानिंग की जा रही है. यह प्रयास इसके पहले कानपुर नगर निगम में किया गया है. कानपुर नगर निगम में प्रयास को करने वाले अधिकारी वीके सिंह का कहना है कि कानपुर में लगभग 13 से ज्यादा जगह पर इस प्रयास को किया गया. जिसकी वजह से आसपास जो 120 से 150 एक यूआई हुआ करता था, उसमें कमी भी दर्ज की गई. 6 महीने की निगरानी के बाद यह स्पष्ट हुआ कि इन एरिया में एक यूआई लेवल 50 तक पहुंच गया था, जो अपने आप में ग्रीन जोन में माना जाता है.

कंचनपुर और सारंग तालाब के पास तैयार होगा कृत्रिम जंगल: इसी प्लानिंग के तहत वाराणसी में भी उपवन योजना की शुरुआत हुई है. जिसके तहत वाराणसी नगर निगम कंचनपुर और सारंग तालाब के पास डेढ़ से दो एकड़ भूमि में कृत्रिम जंगल बनाने जा रहा है. इन दोनों स्थानों पर लम्बी आयु वाले पौधों को लगाया जाएगा. इन स्थलों पर 1 से 2.5 एकड़ भूमि पर मियावाकी तकनीक से पौधरोपण व शेष स्थानों पर ओपन जिम वाकिंग ट्रैक, व्यायाम स्थल आदि का निर्माण होगा.

20000 से ज्यादा पौधे लगाने की तैयारी: नगर निगम के जनसंपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि नगर निगम द्वारा उपवन योजना के तहत लगभग 20000 से ज्यादा पौधे लगाने की तैयारी है. यह वह पौधे होंगे, जिनमें कम समय में ज्यादा बढ़ने और घने होने के चांसेस होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इन पौधों को लगाए जाने के बाद सिर्फ आसपास ही नहीं, लगभग 5 किलोमीटर के एरिया पर इसका असर पड़ेगा. जिन एरिया में हरियाली बिल्कुल नहीं है, वहां पर इसका असर वायु प्रदूषण के स्तर को सुधारने में काफी मददगार साबित होगा. इन दोनों स्थानों पर लंबी आयु वाले पौधे भी लगाए जाएंगे. इसमें नीम, बरगद, पाकड़, पीपल आदि के पौधे होंगे. पौधों की सुरक्षा के लिए ट्री-गार्ड और देखभाल के लिए माली तैनात होंगे.

हरियाली वाले इलाकों में कम प्रदूषण: इस प्लानिंग का क्या सच में कुछ लाभ होगा या नहीं? इस बारे में पर्यावरणविद डॉ प्रकाश सीजे का कहना है कि वृक्ष हमेशा से ही हर रूप में मददगार होते हैं. चाहे एक हो चाहे 10. यदि सैकड़ो की संख्या में एक स्थान पर वृक्ष लगाए जाते हैं तो निश्चित तौर पर उसका असर बड़े एरिया पर पड़ता है. इसका जीता जाता है उदाहरण शहर के वह इलाके माने जा सकते हैं, जहां पर हरियाली ज्यादा है. जैसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस लोकोमोटिव वर्कशॉप या कैंटोनमेंट. इन एरिया में एक साथ हजारों की संख्या में पौधे लगे हैं. इस वजह से यहां पर्यावरण की दृष्टि से सांस लेना भी उत्तम माना गया है और यहां का एक्यूआई भी बेहतर होती है. इसके अलावा इन एरिया में डस्ट पार्टिकल्स भी पेड़ों तक ही सीमित रह जाते हैं. जिसकी वजह से सांस लेने में दिक्कत नहीं होती है. ऐसे में यदि इस तरह की तकनीक का प्रयोग करके एक ही स्थान पर 15 से 20000 पौधे लगाकर उनका संरक्षण होता है, तो निश्चित तौर पर उसका लाभ बड़े इलाके को मिलेगा.

पर्यावरण विद् का कहना है कि मीयावाकी तकनीक जापान की बेहद ही पुरानी तकनीक है यह शहरीकरण के दौर में एक कृत्रिम जंगल को डेवलप करने का तरीका है. जिससे शहर के बीचो-बीच के एरिया को भी पर्यावरण की दृष्टि से मजबूत रखा जा सके इस तकनीक का इस्तेमाल अब धीरे-धीरे कई जगहों पर हो रहा है जो कारगर भी है.

एक नजर इन तथ्यों पर

  • बनारस में दो जगहों पर बनेंगे कृत्रिम जंगल
  • डेढ़ से 2 एकड़ एरिया में लगेंगे 20000 से ज्यादा पौधे.
  • जापानी तकनीक से होगा शहर में डेवलपमेंट.
  • वर्तमान में बनारस के शहरी क्षेत्र में 1.15 प्रतिशत हरियाली है.
  • 3 महीने से बनारस का एक्यूआई 52 से 200 के बीच है.

यह भी पढ़ें : यूपी-हरियाणा के बीच आसान होगा सफर; 31 गांव की जमीन का होगा अधिग्रहण, किसानों को मिलेगा 1500 करोड़ रुपये मुआवजा

वाराणसी: दिल्ली में वायु प्रदूषण के बिगड़े हालात की वजह से हरियाणा पंजाब हर तरफ हाहाकार मचा है. प्नदूषण ने यूपी के भी कई शहरों को अपनी चपेट में ले लिया है. हमेशा से ग्रीन जोन में रहने वाला प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र भी कभी ऑरेंज तो कभी रेड जोन में पहुंच जाता है. पॉल्यूशन का लेवल बढ़ा तो चिंता सभी को हुई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मन की बात कार्यक्रम में इस बात का जिक्र किया कि वायु प्रदूषण की बढ़ रही स्थिति से निबटने के लिए हरियाली बढ़ाने की जरूरत है. अब पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में कृत्रिम जंगल बनाए जाने की तैयारी शुरू कर दी गई है. इसके लिए 6 स्पॉट चिन्हित किए गए हैं. जिनमें से दो पर काम शुरू होने जा रहा है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जापान की मियावाकी तकनीक पर इन जंगलों का निर्माण होगा, जहां डेढ़ से 2 एकड़ भूमि में 20000 से ज्यादा वृक्षों को लगाकर लोगों को बड़ी राहत देने की प्लानिंग की जा रही है.

बनारस में बसाए जाएंगे कृत्रिम जंगल. (Video Credit; ETV Bharat)

कानपुर में किया गया है सफल प्रयास: दरअसल, शहरीकरण और विकास के चलते शहरों में कम हुई हरियाली को बढ़कर बिगड़ रहे वायु प्रदूषण के स्तर को सुधारने की प्लानिंग की जा रही है. यह प्रयास इसके पहले कानपुर नगर निगम में किया गया है. कानपुर नगर निगम में प्रयास को करने वाले अधिकारी वीके सिंह का कहना है कि कानपुर में लगभग 13 से ज्यादा जगह पर इस प्रयास को किया गया. जिसकी वजह से आसपास जो 120 से 150 एक यूआई हुआ करता था, उसमें कमी भी दर्ज की गई. 6 महीने की निगरानी के बाद यह स्पष्ट हुआ कि इन एरिया में एक यूआई लेवल 50 तक पहुंच गया था, जो अपने आप में ग्रीन जोन में माना जाता है.

कंचनपुर और सारंग तालाब के पास तैयार होगा कृत्रिम जंगल: इसी प्लानिंग के तहत वाराणसी में भी उपवन योजना की शुरुआत हुई है. जिसके तहत वाराणसी नगर निगम कंचनपुर और सारंग तालाब के पास डेढ़ से दो एकड़ भूमि में कृत्रिम जंगल बनाने जा रहा है. इन दोनों स्थानों पर लम्बी आयु वाले पौधों को लगाया जाएगा. इन स्थलों पर 1 से 2.5 एकड़ भूमि पर मियावाकी तकनीक से पौधरोपण व शेष स्थानों पर ओपन जिम वाकिंग ट्रैक, व्यायाम स्थल आदि का निर्माण होगा.

20000 से ज्यादा पौधे लगाने की तैयारी: नगर निगम के जनसंपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि नगर निगम द्वारा उपवन योजना के तहत लगभग 20000 से ज्यादा पौधे लगाने की तैयारी है. यह वह पौधे होंगे, जिनमें कम समय में ज्यादा बढ़ने और घने होने के चांसेस होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इन पौधों को लगाए जाने के बाद सिर्फ आसपास ही नहीं, लगभग 5 किलोमीटर के एरिया पर इसका असर पड़ेगा. जिन एरिया में हरियाली बिल्कुल नहीं है, वहां पर इसका असर वायु प्रदूषण के स्तर को सुधारने में काफी मददगार साबित होगा. इन दोनों स्थानों पर लंबी आयु वाले पौधे भी लगाए जाएंगे. इसमें नीम, बरगद, पाकड़, पीपल आदि के पौधे होंगे. पौधों की सुरक्षा के लिए ट्री-गार्ड और देखभाल के लिए माली तैनात होंगे.

हरियाली वाले इलाकों में कम प्रदूषण: इस प्लानिंग का क्या सच में कुछ लाभ होगा या नहीं? इस बारे में पर्यावरणविद डॉ प्रकाश सीजे का कहना है कि वृक्ष हमेशा से ही हर रूप में मददगार होते हैं. चाहे एक हो चाहे 10. यदि सैकड़ो की संख्या में एक स्थान पर वृक्ष लगाए जाते हैं तो निश्चित तौर पर उसका असर बड़े एरिया पर पड़ता है. इसका जीता जाता है उदाहरण शहर के वह इलाके माने जा सकते हैं, जहां पर हरियाली ज्यादा है. जैसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस लोकोमोटिव वर्कशॉप या कैंटोनमेंट. इन एरिया में एक साथ हजारों की संख्या में पौधे लगे हैं. इस वजह से यहां पर्यावरण की दृष्टि से सांस लेना भी उत्तम माना गया है और यहां का एक्यूआई भी बेहतर होती है. इसके अलावा इन एरिया में डस्ट पार्टिकल्स भी पेड़ों तक ही सीमित रह जाते हैं. जिसकी वजह से सांस लेने में दिक्कत नहीं होती है. ऐसे में यदि इस तरह की तकनीक का प्रयोग करके एक ही स्थान पर 15 से 20000 पौधे लगाकर उनका संरक्षण होता है, तो निश्चित तौर पर उसका लाभ बड़े इलाके को मिलेगा.

पर्यावरण विद् का कहना है कि मीयावाकी तकनीक जापान की बेहद ही पुरानी तकनीक है यह शहरीकरण के दौर में एक कृत्रिम जंगल को डेवलप करने का तरीका है. जिससे शहर के बीचो-बीच के एरिया को भी पर्यावरण की दृष्टि से मजबूत रखा जा सके इस तकनीक का इस्तेमाल अब धीरे-धीरे कई जगहों पर हो रहा है जो कारगर भी है.

एक नजर इन तथ्यों पर

  • बनारस में दो जगहों पर बनेंगे कृत्रिम जंगल
  • डेढ़ से 2 एकड़ एरिया में लगेंगे 20000 से ज्यादा पौधे.
  • जापानी तकनीक से होगा शहर में डेवलपमेंट.
  • वर्तमान में बनारस के शहरी क्षेत्र में 1.15 प्रतिशत हरियाली है.
  • 3 महीने से बनारस का एक्यूआई 52 से 200 के बीच है.

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