जयपुर : पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (अब पार्वती-कालीसिंध-चंबल परियोजना) का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 दिसंबर को शिलान्यास करने का कार्यक्रम प्रस्तावित है. इस बीच इस मुद्दे पर सियासत एक बार फिर गरमाने लगी है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने मांग की है कि प्रधानमंत्री इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दें और इसे लेकर पिछले दिनों राजस्थान सरकार का मध्यप्रदेश सरकार के साथ जो एमओयू हुआ है, उसे भी सार्वजनिक किया जाए. टीकाराम जूली ने शुक्रवार को बयान जारी कर कहा कि प्रधानमंत्री आगामी 15 दिसंबर को इस बहुउद्देश्यीय परियोजना का शिलान्यास करने राजस्थान आ रहे हैं. इस मौके पर उन्हें इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करना चाहिए. इस बारे में मोदी ने अजमेर में एक जनसभा में राज्य की जनता से वादा भी किया था. प्रधानमंत्री को अब अपना यह वादा निभाना चाहिए.
सरकार दबाकर बैठी है समझौते को : जूली ने कहा कि राज्य सरकार पड़ोसी राज्यों से इस प्रोजेक्ट को लेकर किए गए समझौते का खुलासा भी करना चाहिए. सरकार इस समझौते को दबा कर बैठी है. जो कई तरह के सवालों को जन्म दे रहा है. उन्होंने कहा, केंद्र सरकार प्रधानमंत्री के दौरे से पहले आधिकारिक रूप से यह घोषित करे कि ईआरसीपी (पीकेसी) प्रोजेक्ट देश में संचालित अन्य नदी जल राष्ट्रीय परियोजनाओं की सूची में जोड़ा जा चुका है. उन्होंने कहा, देश में पहले से जो 16 नदी जल राष्ट्रीय परियोजना चल रही हैं. उसी श्रेणी में ईआरसीपी को शामिल किया जाए. इससे कम दर्जे की कोई घोषणा राजस्थान के हितों के अनुकूल नहीं है.
ERCP को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाये और मुख्यमंत्री जी MOU का खुलासा करें?@narendramodi @BhajanlalBjp @RajGovOfficial @RajCMO @INCRajasthan @INCIndia pic.twitter.com/iQw0sNSnHj
— Tika Ram Jully (@TikaRamJullyINC) November 22, 2024
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पुरानी है मांग, पूरा करने से कतरा रही केंद्र सरकार : उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने से कतरा रही है. वे बोले- 2017-18 का बजट पेश करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी राजस्थान विधानसभा के सदन में ईआरसीपी को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना घोषित करने का केंद्र सरकार से आग्रह किया था. कांग्रेस पार्टी का शुरू से ही स्पष्ट मत है कि राष्ट्रीय परियोजना घोषित होने पर ही राजस्थान को इस परियोजना का व्यापक लाभ प्राप्त हो सकेगा.
सरकार समझ नहीं पा रही या दबाव में है : टीकाराम जूली ने कहा कि वर्तमान में राज्य की भाजपा सरकार इस प्रोजेक्ट के महत्व को समझ नहीं रही है या फिर मुख्यमंत्री केंद्र सरकार के दबाव में हैं. इसलिए यह जरूरी है कि प्रधानमंत्री के शिलान्यास करने से पहले पड़ोसी राज्यों से हुए समझौते को प्रदेश की जनता के सामने रखा जाए. वे बोले- मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने राजस्थान विधानसभा में अपने भाषण के दौरान भी इस एमओयू का खुलासा करने से इनकार कर दिया था. मुख्यमंत्री का यह रवैया अलोकतांत्रिक था, क्योंकि राज्य का हित सर्वोपरि होता है और प्रदेश को एमओयू के बारे में जानने का अधिकार है.
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राजस्थान-एमपी में पानी का बंटवारा कैसे होगा : जूली ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कई साल तक ईआरसीपी में 75 प्रतिशत जल की निर्भरता लागू करने पर अड़ी हुई थी. इस स्थिति में राजस्थान में 2.80 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होना नामुमकिन था. ऐसा तभी संभव है. जब 50 प्रतिशत जल की उपलब्धता की शर्त लागू हो. पुरानी डीपीआर में राजस्थान को 3510 एमसीएम पानी देने की बात कही गई थी. मध्य प्रदेश और राजस्थान में पानी का बंटवारा होने पर यह किस तरह क्रियान्वित होगा. इसका खुलासा होना अनिवार्य है. यदि सब कुछ सही है तो एमओयू को सार्वजनिक करने में कहाँ दिक्कत है?
केंद्र सरकार की नीयत ही नहीं है साफ : उन्होंने कहा कि सन 2017 में घोषित ईआरसीपी प्रोजेक्ट सन 2023 में पूरा हो जाना चाहिए था, लेकिन केंद्र सरकार की नीयत इस प्रोजेक्ट पर साफ नहीं है. इसलिए इतने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में निरंतर देरी हुई. इसके बावजूद राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने अपने बलबूते इस प्रोजेक्ट की संरचना तैयार की. कांग्रेस शासन में ईआरसीपी प्रोजेक्ट के लिए दस हजार करोड़ रुपए एक साथ बजट में आवंटित किए गए थे. ईआरसीपी निगम का भी गठन किया गया था.
नोनेरा बांध बनवाया, ईसरदा का नवनिर्माण : उन्होंने कहा कि कालीसिंध नदी पर नोनेरा बांध ईआरसीपी प्रोजेक्ट में बनकर तैयार हुआ था. इसके अलावा इस प्रोजेक्ट में ईसरदा बांध का भी नव-निर्माण कर छह शहरों और 1250 गांवों की पेयजल समस्या का निदान किया गया. इसलिए ईआरसीपी प्रोजेक्ट कांग्रेस शासन में आगे बढ़ चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका शिलान्यास करना चाहते हैं तो राज्य के दूरगामी हित के मद्देनजर हम इसका विरोध नहीं कर रहे हैं. लेकिन राजस्थान को यह जानने का अधिकार है कि इस प्रोजेक्ट का जो एमओयू किया गया है. उसकी हकीकत क्या है.