लखनऊ: जहां का आम विश्व प्रसिद्ध है, वहीं आजकल बाघ ने डेरा जमा रखा है. मलिहाबाद में पिछले 45 दिनों से बाघ की वजह से दहशत का माहौल है. बच्चे स्कूल नहीं जा रहे है और बड़े गुट में निकल रहे हैं. बाघ इतना चतुर है कि वन विभाग के पकड़ने के सारे पैंतरे फेल हो चुके हैं. वन विभाग की भारी भरकम टीम और दो हथिनी अब तक सिर्फ बाघ के पंजे ही ढूंढ सकी है, जबकि तक 38 लाख रुपये खर्च किये जा चुके हैं. सिर्फ में सिर्फ दो हथिनी ही पिछले दस दिनों में एक लाख रुपये का खाना खा चुकी है.
बाघ पकड़ने के लिए शासन से मांगे 20 लाख रुपयेः बता दें कि 2 दिसम्बर 2024 को मलिहाबाद के रहमान खेड़ा में बाघ ने दस्तक दी थी. इसके बाद आस पास के करीब 12 गांव के लोग घर में दुबक गए. वन विभाग लखनऊ टीम ने इस इलाके में कॉम्बिग की और शुरुआती तौर पर कुछ इलाकों में जाल लगाकर बाघ को रोकने का प्रयास किया. लेकिन बाघ ने अपना दायरा बढ़ा लिया. इसके बाद वन विभाग की टीम बढ़ाई गई और आस पास जिलों के 80 अफसर कर्मचारियों ने ऑपरेशन बाघ शुरू किया. ऑपरेशन शुरू किये 45 दिन बीत चुके हैं और अब तक टीम सिर्फ बाघ को कैमरे में ही कैद कर सकी है. अब तक 38 लाख रुपये खर्च हो गए हैं. जिसके बाद शासन से 20 लाख रुपये की और मांग की गई है.
8 हजार का खाना रोज खा रहीं दोनों हथिनीः 45 दिनों से दहसत बन चुके बाघ को पकड़ने के लिए सिर्फ वन विभाग के कर्मचारी और एक्सपर्ट ही नही बल्कि दो हथिनी भी इस ऑपरेशन का हिस्सा बनी हुई है. इन हथिनी पर भी वन विभाग पानी की तरह पैसा बहा रही है, बावजूद इसके अब तक बाघ पकड़ने में सफलता नही मिल सकी है. दस दिनों से रेस्क्यू में लगी सुलोचना और डायना हथिनी पर अब तक एक लाख खर्च हो चुका है. दोनों हथिनी खुराख प्रति दिन करीब 8 हजार रुपये है. जिसमे वो 4 कुंतल गन्ना, एक किलो गुड़, दस किलो चावल, सोयाबीन और सरसों का तेल दिया जाता है. दरअसल, आम तौर पर हथिनी इतनी खुराख नहीं खाती है, लेकिन किसी ऑपरेशन के दौरान उन्हें खुराक अधिक दी जाती है.
बाघ को पकड़ने के लिए 80 कर्मचारियों की फोर्सः रहमान खेड़ा के जंगलों में आराम से घूम रहे बाघ को पकड़ने के लिए 80 वन विभाग के अफसर और कर्मचारी तैनात है. इसके अलावा कानपुर जू और दूधवा से एक्सपर्ट टीम भी मौजूद हैं. एक प्लाटून पीएसी और पुलिस बल भी तैनात किया गया है. इसके अलावा टेक्निकल फोर्स जंगल में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों पर नजर रख रही है. बाघ को पकड़ने के लिए एक्सपर्ट टीम बुलाई गई है, इसके अलावा जंगलों में सीसीटीवी कैमरे भी इंस्टाल किये गए है. इनमे बजट खर्च हो रहा है. इसके अलावा बाघ को पकड़ने के लिए पड़वे (भैंस के बच्चे) रखे जाते हैं, जिन्हें वन विभाग की टीम 15 से 30 हजार रुपये के खरीदता है. अब तक पांच पड़वे बाघ मार चुका है. 80 अफसर और कर्मचारी व एक प्लाटून पीएसी भी इस ऑपरेशन में लगे हुए है, जिन पर बजट खर्च हो रहे है.
कोहरा बन रहा ऑपरेशन में बाधाः डीएफओ सितांशु पाण्डेय ने बताया कि बाघ को पकड़ने के ऑपरेशन में हमारा दुश्मन और बाघ का दोस्त कोहरा बन रहा है. बाघ को जंगल में शिकार के लिए जानवर मिल रहे हैं. नहर भी है तो उसे आसानी से पानी भी मिल रहा है. ऐसे में प्रकृति के हिसाब से उसे जो मिलना चाहिए वो मिल रहा है. इसी वजह से बाघ आराम से जंगल में टहल रहा है. बाघ की यही सब साहूलियतें हमारे लिए समस्या पैदा कर रही हैं. डीएफओ ने बताया कि बाघ देर रात व सुबह तड़के ही टहलने निकालता है. जिस कारण टीम को दिख ही नहीं रहा है. ऐसे में बाघ संरक्षण नियमावली के तहत ट्रेंक्यूलाइज नहीं कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि ट्रेंक्यूलाइज करने के 45 मिनट के अंदर ही हमें बाघ को पकड़ना पड़ता है, ऐसे में कोहरे में यह संभव नही हैं. क्योंकि ट्रेंक्यूलाइज करने पर बाघ भागेगा और यदि वह अंधेरे में गहरे पानी में चला गया तो उसकी मौत हो सकती है.
2014 में 108 दिन बाघ ने किया था परेशानः बता दें कि वर्ष 2013 में भी इसी इलाके में बाघ ने दहशत फैलाई थी. करीब 20 गावों में लोग दहशत में जी रहे थे. जिसके बाद वन विभाग की टीम ने काफी दांव पेंच खेले थे लेकिन बाघ लगातार अपना दायरा बढ़ाता जा रहा था. करीब 108 दिन बाद बाघ को पकड़ा जा सका था.
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