हिसारः हरियाणा में बड़े पैमाने पर गेहूं की खेती होती है. बेहतर पैदावार के लिए आवश्यक है समय पर बुआई, खाद-पानी मिले. खरपतवार, कीट नियंत्रण, मौसम की मार व विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से बचाव किया जाए. सर्दी के मौसम में गेहूं की फसल पर पीला रेतुआ खतरा काफी बढ़ जाता है. पीला रेतुआ के फफूंद हवा के साथ आते हैं. इससे 70 से 80 फीसदी तक फसलें खराब होने का खतरा रहता है.
ठंड और नमी से पीला रतुआ का खतराः चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगले एक माह तक अधिक ठंड और नमी के कारण गेहूं पर पीला रतुआ का खतरा बना रहता है. विश्वविद्यालय के गेहूं विभाग के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. ओ पी बिश्नोई ने बताया कि हरियाणा प्रदेश में बड़े पैमाने पर गेहूं की खेती होती है. पीला रेतुआ से गेहूं की फसल पर संकट आ सकता है.
31 जनवरी तक पीला रतुआ का है खतराः किसानों को सलाह है कि पीला रतुआ बीमारी से बचने के लिए 31 जनवरी 2025 तक किसान नियमित रूप से गेहूं की फसल पर नजर रखें. पहाड़ी प्रदेशों से हवा के जरीए यह बीमारी पहुंचती है. पीला रतुआ का खतरा हरियाणा के कुछ जिलो में बना हुआ है. अगर खेतों में पीला रतुआ दिखे तो सबसे पहले कृषि अधिकारियों से सलाह लें. जब कन्फर्म हो जाएगा कि आपकी फसल पर पीला रतुआ का आक्रमण है तो कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से दवाई व अन्य आवश्यक कदम उठाएं.
राज्य के इन जिलों में आ सकता है पीला रतुआः पहाड़ी प्रदेशों के साथ लगने वाले जिलों में गेहूं का पीला रेतुआ का खतरा का सबसे अधिक खतरा बना रहता है. हरियाणा के यमुनागर, अंबाला, पंचकूला में पीला रतुआ का सबसे अधिक खतरा बना रहता है. चौधरी चरण सिहं हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं विभाग के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. ओ पी बिश्नोई ने कहा कि किसान जनवरी 2025 तक लगातार खेतों मे जायें. चारों तरफ घूमकर फसल का मुआयना करें.
पीला रतुआ की पहचान कैसे करेंः
कृषि वैज्ञानिक डॉ. ओ पी बिश्नोई ने बताया कि पीला रेतुआ के फफूंद हवा के साथ आते हैं. पीला रेतुआ 70 से 80 प्रतिशत तक फसले बर्बाद हो जाती है. पीला रेतुआ रोग के लक्षणों में पीले रंग की धारियां पतियां पर दिखाई देती है. इसकी पहचाने के लिए पत्ते को तोड़ कर हाथ पर मसलना चाहिए. अगर हल्दी जैसा रंग पीला चूरन निकलता है तो यह पीला रेतुआ है. पौधे के नीचे देखें की वहां भी पीला पाऊटर जमीन पर गिरा दिखाई दे तो यह पीला रेतुआ है. पतियों पर पीली धारिया पाई जाती है. तापमान बढ़ने से मार्च के अंत में पत्तियों पर पीला धारियां काले रंग में बदल जाती है. इसका सबसे अधिक प्रकोप अधिक ठंड और मौसम में नमी के कारण होता है. उन्होंने बताया कि इस समय में बारिश से से गेहूं, जौ, सरसों की फसलों के लिए फायदेमंद साबित होगी. दिन का तापमान 10-15 डिग्री के बीच रहने से गेंहू में पीला रतुआ की बीमारी का खतरा बना रहता है.