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दुधवा नेशनल पार्क का सरताज बनने के लिए गैंडों में वर्चस्व की लड़ाई; 25 साल राज करने के बाद 'बांके' की मौत, रघु, विजय और पवन रेस में - world rhino day - WORLD RHINO DAY

यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क में तीन गैंडों पर सबकी नजर है. वन्य जीवों की देखभाल करने और इनके व्यवहार पर नजर रखने वालों के लिए दुधवा के ये तीन गैंडे उत्सुकता का विषय बने हैं.

दुधवा में गैंडों के कुनबे में चल रही है वर्चस्व की लड़ाई.
दुधवा में गैंडों के कुनबे में चल रही है वर्चस्व की लड़ाई. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 22, 2024, 1:27 PM IST

Updated : Sep 22, 2024, 4:46 PM IST

लखीमपुर खीरी: यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क में तीन गैंडों पर सबकी नजर है. वन्य जीवों की देखभाल करने और इनके व्यवहार पर नजर रखने वालों के लिए दुधवा के ये तीन गैंडे उत्सुकता का विषय बने हैं. पिछले करीब 25 साल तक एकछत्र राज करने वाले गैंडे बांके की मौत हो चुकी है. बांके की जगह पाने के लिए ये तीन गैंडे गाहे-बेगाहे एक-दूसरे से भिड़ते रहते हैं. दुधवा का सरताज कौन बनेगा, तीनों में इसके लिए जोर आजमाइश चल रही है. दुखद यह कि तीनों के लिए चुनौती बने चौथे गैंडे भीमसेन ने इसी वर्चस्व की लड़ाई में अपनी जान गंवा दी.

दुधवा में गैंडों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है.
दुधवा में गैंडों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. (Photo Credit; ETV Bharat)

पार्क में अभी 46 गैंडे : दुधवा में गैंडों का कुनबा फूलफूल रहा है. फिलहाल यहां 46 गैंडे हैं. करीब 40 साल पहले गैंडों के परिवार को अपने पुरखों की धरती पर 100 साल बाद बसाया गया था. तब से गैंडों के परिवार में कोई न कोई मुखिया होता है. हालांकि मुखिया बनने की राह कभी आसान नहीं रही. फिलहाल दुधवा में रघु, विजय और पवन में वर्चस्व के लिए अक्सर भिड़ंत होती रहती है. दुधवा में इन तीनों के बीच की लड़ाई चर्चा बनी है.

25 साल रहा यहां बांके का राज : करीब 25 साल तक यहां बांके गैंडे का राज रहा. बांके के जिंदा रहने तक किसी दूसरे गैंडे ने अपना राज कायम करने की हिमाकत नहीं की. अब बांके की मौत हो चुकी है. अब बांके की सत्ता पर रघु, विजय' और पवन नाम के युवा गैंडों में दबदबा बनाए रखने को लेकर द्वंद चल रहा है. गैंडों का सरदार बनने के लिए तीनों आमने-सामने हैं. जोश और ताकत से भरे इन तीनों गैंडों में आए दिन भिड़ंत हो जाती है.

लड़ाई में भीमसेन ने दम तोड़ा : दुधवा में बांके और राजू के बाद भीमसेन और सहदेव का नाम भी चर्चा में रहा. वर्चस्व के लिए रघू के साथ कई बार भीमसेन की लड़ाइयां हुईं. इसी लड़ाई में भीमसेन ने दम तोड़ दिया. फिर सहदेव ने रघु को चुनौती दी, लेकिन बाजी रघु के हाथ रही. अब रघु को विजय और पवन नाम के गैंडे चुनौती दे रहे हैं. इस तरह दुधवा में सरताज बनने की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है.

1984 में बसा था दुधवा में गैंडों का परिवार : दुधवा टाइगर रिजर्व में 1984 में गैंडों को उनकी खोई जमीन पर 'रिहेबिलिटेट' किया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसके लिए व्यक्तिगत रुचि ली. हवाई जहाज से असम से पांच मेल और फीमेल गैंडों को लाया गया. गैंडों को तराई की धरती की आबोहवा खूब भाई. कुनबा फलने-फूलने लगा. पहले राजू फिर बांके का बरसों तक गैंडों के कुनबे पर एकछत्र राज रहा. करीब 25 सालों तक बांके पूरे कुनबे पर अपने भारी भरकम डीलडौल और ताकत के बल पर राज करता रहा. दुधवा के सलूकापुर में चल रहे गैंडा पुनर्वासन केंद्र में बांके की मौत के बाद कुनबे का सरदार बनने को युवा गैंडे बराबर कोशिश में जुटे हैं.

भारी पड़ रहा रघु : नई पीढ़ी का रघू अपने आकर्षक गठीले शरीर, सूझबूझ और ताकत के बल पर पूरे गैंडा कुनबे पर भारी साबित हो रहा है. रघू दुधवा के मेल गैंडों में इस वक्त सबसे ताकतवर गैंडा माना जा रहा है. रघू की बादशाहत को भीमसेन और सहदेव की मौत के बाद अब विजय और पवन चुनौती दे रहे हैं.

मादा को सम्मोहित करने के लिए हो रहीं लड़ाइयां : वाइल्ड लाइफ के जानकार मोहम्मद शकील कहते हैं कि गैंडों में मादा को सम्मोहित करने और आधिपत्य दिखाने को लड़ाइयां होती हैं. ताकत और डीलडौल मायने रखता है. बांके की मौत के बाद कुनबे में सरदार बनने को नई पीढ़ी आगे आई है. 'सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट' तो प्रकृति का नियम है. बता दें कि भारत में असम के बाद अगर सबसे ज्यादा गैंडे कहीं हैं तो वो यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में ही हैं. असम के काजीरंगा, पवित्रा और मानस नेशनल पार्क के बाद तराई की यह धरती ही इस सबसे बड़े जीव से आबाद है.

गैंडों में न हो इनब्रीडिंग : दुधवा में गैंडों में इनब्रीडिंग न हो, इसको लेकर विशेषज्ञों ने दुधवा के गैंडों को नई जगह पर शिफ्ट करने की बड़ी कार्यवाई की है. एक ही मेल से मादाएं न प्रेग्नेंट हों, इसको लेकर नेपाल से कभी-कभी आने वाले गैंडों से मिलन के साथ बांके के वंशजों के अलावा दूसरी क्रॉस लाइन से भी नई संतानें आईं. बेलरायां रेंज में चार गैंडों को शिफ्ट किया गया. दरसल दुधवा के गैंडा परिवार में काफी दिनों से वाइल्डलाइफ के जानकर इन्ब्रीडिंग का खतरा महसूस कर रहे थे. आशंका इसलिए थी कि सिर्फ गैंडे बांके की ही यहां सत्ता चलती थी. वाइल्ड लाइफ के जानकार कहने लगे कि एक ही पिता की संताने होने से यहां इन्ब्रीडिंग का खतरा बढ़ रहा है और यही विशेषज्ञों के लिए चिंता का कारण भी था. विशेषज्ञों की ये चिंता दुधवा पार्क प्रशासन के लिए भी चिंता बन गई. इसी को लेकर दुधवा पार्क प्रसाशन ने डब्लूआईआई से गैंडों के डीएनए की जांच कराई. जिसमे सब कुछ ओके मिला. इन्ब्रीडिंग की कोई अलार्मिंग कंडीशन नहीं है. पर पार्क के अफ़सरों ने इसीलिए 'राइनो फेज 2' शुरू कर दिया. जिससे जीन को कोई खतरा न हो.

बढ़ रहा कुनबा : डब्लूडब्लूएफ के फील्ड कोआर्डिनेटर दबीर हसन कहते हैं कि सबसे अच्छी बात ये है कि नर गैंडों की एक नई पीढ़ी तैयार हो गई है, जो गैंडों के परिवार को बढ़ाने में सहायक हो रही है. दुधवा के ही भादी इलाके में नये गैंडों का एक फेज तैयार कर उसमें चार गैंडों को छोड़ा जा चुका है. फेज 2 में भी गैंडों का कुनबा बढ़ता जा रहा है.

कतर्नियाघाट में बनेगा अगला आशियाना : दुधवा टाइगर रिजर्व से जुड़े बहराइच जिले के कटानिया घाट में दूधों का नया आशियाना बनाए जाने को लेकर हरी झंडी मिल गई है. विशेषज्ञों ने कतर्नियाघाट में जगह चिन्हित कर ली है. पूरी तैयारी हो रही है. उत्तर प्रदेश का वन विभाग जल्द ही कतर्नियाघाट में गैंडों का नया कुनबा बसाएगा. दुधवा के फील्ड डायरेक्टर ललित वर्मा का कहना है कि गैंडों को बसाए जाने में तमाम प्रक्रियाएं होती हैं. तीन साल से काम चल रहा. हम उम्मीद कर रहे कि नवम्बर में हम कार्यवाई शुरू कर देंगे.

यह भी पढ़ें : लखीमपुर-खीरी में खुले में घूम रहा गैंडा, लोगों में खौफ

यह भी पढ़ें : देखें VIDEO; नेपाली घुमतूं जंगली हाथियों का दल पहुंचा दुधवा, शावक और टस्कर भी शामिल - Dudhwa Tiger Reserve

लखीमपुर खीरी: यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क में तीन गैंडों पर सबकी नजर है. वन्य जीवों की देखभाल करने और इनके व्यवहार पर नजर रखने वालों के लिए दुधवा के ये तीन गैंडे उत्सुकता का विषय बने हैं. पिछले करीब 25 साल तक एकछत्र राज करने वाले गैंडे बांके की मौत हो चुकी है. बांके की जगह पाने के लिए ये तीन गैंडे गाहे-बेगाहे एक-दूसरे से भिड़ते रहते हैं. दुधवा का सरताज कौन बनेगा, तीनों में इसके लिए जोर आजमाइश चल रही है. दुखद यह कि तीनों के लिए चुनौती बने चौथे गैंडे भीमसेन ने इसी वर्चस्व की लड़ाई में अपनी जान गंवा दी.

दुधवा में गैंडों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है.
दुधवा में गैंडों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. (Photo Credit; ETV Bharat)

पार्क में अभी 46 गैंडे : दुधवा में गैंडों का कुनबा फूलफूल रहा है. फिलहाल यहां 46 गैंडे हैं. करीब 40 साल पहले गैंडों के परिवार को अपने पुरखों की धरती पर 100 साल बाद बसाया गया था. तब से गैंडों के परिवार में कोई न कोई मुखिया होता है. हालांकि मुखिया बनने की राह कभी आसान नहीं रही. फिलहाल दुधवा में रघु, विजय और पवन में वर्चस्व के लिए अक्सर भिड़ंत होती रहती है. दुधवा में इन तीनों के बीच की लड़ाई चर्चा बनी है.

25 साल रहा यहां बांके का राज : करीब 25 साल तक यहां बांके गैंडे का राज रहा. बांके के जिंदा रहने तक किसी दूसरे गैंडे ने अपना राज कायम करने की हिमाकत नहीं की. अब बांके की मौत हो चुकी है. अब बांके की सत्ता पर रघु, विजय' और पवन नाम के युवा गैंडों में दबदबा बनाए रखने को लेकर द्वंद चल रहा है. गैंडों का सरदार बनने के लिए तीनों आमने-सामने हैं. जोश और ताकत से भरे इन तीनों गैंडों में आए दिन भिड़ंत हो जाती है.

लड़ाई में भीमसेन ने दम तोड़ा : दुधवा में बांके और राजू के बाद भीमसेन और सहदेव का नाम भी चर्चा में रहा. वर्चस्व के लिए रघू के साथ कई बार भीमसेन की लड़ाइयां हुईं. इसी लड़ाई में भीमसेन ने दम तोड़ दिया. फिर सहदेव ने रघु को चुनौती दी, लेकिन बाजी रघु के हाथ रही. अब रघु को विजय और पवन नाम के गैंडे चुनौती दे रहे हैं. इस तरह दुधवा में सरताज बनने की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है.

1984 में बसा था दुधवा में गैंडों का परिवार : दुधवा टाइगर रिजर्व में 1984 में गैंडों को उनकी खोई जमीन पर 'रिहेबिलिटेट' किया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसके लिए व्यक्तिगत रुचि ली. हवाई जहाज से असम से पांच मेल और फीमेल गैंडों को लाया गया. गैंडों को तराई की धरती की आबोहवा खूब भाई. कुनबा फलने-फूलने लगा. पहले राजू फिर बांके का बरसों तक गैंडों के कुनबे पर एकछत्र राज रहा. करीब 25 सालों तक बांके पूरे कुनबे पर अपने भारी भरकम डीलडौल और ताकत के बल पर राज करता रहा. दुधवा के सलूकापुर में चल रहे गैंडा पुनर्वासन केंद्र में बांके की मौत के बाद कुनबे का सरदार बनने को युवा गैंडे बराबर कोशिश में जुटे हैं.

भारी पड़ रहा रघु : नई पीढ़ी का रघू अपने आकर्षक गठीले शरीर, सूझबूझ और ताकत के बल पर पूरे गैंडा कुनबे पर भारी साबित हो रहा है. रघू दुधवा के मेल गैंडों में इस वक्त सबसे ताकतवर गैंडा माना जा रहा है. रघू की बादशाहत को भीमसेन और सहदेव की मौत के बाद अब विजय और पवन चुनौती दे रहे हैं.

मादा को सम्मोहित करने के लिए हो रहीं लड़ाइयां : वाइल्ड लाइफ के जानकार मोहम्मद शकील कहते हैं कि गैंडों में मादा को सम्मोहित करने और आधिपत्य दिखाने को लड़ाइयां होती हैं. ताकत और डीलडौल मायने रखता है. बांके की मौत के बाद कुनबे में सरदार बनने को नई पीढ़ी आगे आई है. 'सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट' तो प्रकृति का नियम है. बता दें कि भारत में असम के बाद अगर सबसे ज्यादा गैंडे कहीं हैं तो वो यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में ही हैं. असम के काजीरंगा, पवित्रा और मानस नेशनल पार्क के बाद तराई की यह धरती ही इस सबसे बड़े जीव से आबाद है.

गैंडों में न हो इनब्रीडिंग : दुधवा में गैंडों में इनब्रीडिंग न हो, इसको लेकर विशेषज्ञों ने दुधवा के गैंडों को नई जगह पर शिफ्ट करने की बड़ी कार्यवाई की है. एक ही मेल से मादाएं न प्रेग्नेंट हों, इसको लेकर नेपाल से कभी-कभी आने वाले गैंडों से मिलन के साथ बांके के वंशजों के अलावा दूसरी क्रॉस लाइन से भी नई संतानें आईं. बेलरायां रेंज में चार गैंडों को शिफ्ट किया गया. दरसल दुधवा के गैंडा परिवार में काफी दिनों से वाइल्डलाइफ के जानकर इन्ब्रीडिंग का खतरा महसूस कर रहे थे. आशंका इसलिए थी कि सिर्फ गैंडे बांके की ही यहां सत्ता चलती थी. वाइल्ड लाइफ के जानकार कहने लगे कि एक ही पिता की संताने होने से यहां इन्ब्रीडिंग का खतरा बढ़ रहा है और यही विशेषज्ञों के लिए चिंता का कारण भी था. विशेषज्ञों की ये चिंता दुधवा पार्क प्रशासन के लिए भी चिंता बन गई. इसी को लेकर दुधवा पार्क प्रसाशन ने डब्लूआईआई से गैंडों के डीएनए की जांच कराई. जिसमे सब कुछ ओके मिला. इन्ब्रीडिंग की कोई अलार्मिंग कंडीशन नहीं है. पर पार्क के अफ़सरों ने इसीलिए 'राइनो फेज 2' शुरू कर दिया. जिससे जीन को कोई खतरा न हो.

बढ़ रहा कुनबा : डब्लूडब्लूएफ के फील्ड कोआर्डिनेटर दबीर हसन कहते हैं कि सबसे अच्छी बात ये है कि नर गैंडों की एक नई पीढ़ी तैयार हो गई है, जो गैंडों के परिवार को बढ़ाने में सहायक हो रही है. दुधवा के ही भादी इलाके में नये गैंडों का एक फेज तैयार कर उसमें चार गैंडों को छोड़ा जा चुका है. फेज 2 में भी गैंडों का कुनबा बढ़ता जा रहा है.

कतर्नियाघाट में बनेगा अगला आशियाना : दुधवा टाइगर रिजर्व से जुड़े बहराइच जिले के कटानिया घाट में दूधों का नया आशियाना बनाए जाने को लेकर हरी झंडी मिल गई है. विशेषज्ञों ने कतर्नियाघाट में जगह चिन्हित कर ली है. पूरी तैयारी हो रही है. उत्तर प्रदेश का वन विभाग जल्द ही कतर्नियाघाट में गैंडों का नया कुनबा बसाएगा. दुधवा के फील्ड डायरेक्टर ललित वर्मा का कहना है कि गैंडों को बसाए जाने में तमाम प्रक्रियाएं होती हैं. तीन साल से काम चल रहा. हम उम्मीद कर रहे कि नवम्बर में हम कार्यवाई शुरू कर देंगे.

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Last Updated : Sep 22, 2024, 4:46 PM IST
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