ETV Bharat / state

उत्तराखंड में यहां है सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण का एकमात्र मंदिर, जानें इसकी अनकही कहानी - Karna Temple in Uttarakhand - KARNA TEMPLE IN UTTARAKHAND

Karna Temple in Karnaprayag Uttarakhand देवभूमि उत्तराखंड में मौजूद पंच प्रयागों में से एक कर्णप्रयाग का नाम महाभारत कालीन प्रतापी योद्धा और सूर्य पुत्र कर्ण के नाम पर रखा गया है. लेकिन ऐसा क्यों हुआ और इसके पीछे की क्या कुछ कहानी है, इसको बयां करती है कर्णप्रयाग में मौजूद कर्णशिला जो कि पूरे भारत में कर्ण के नाम का केवल एक मात्र मंदिर है.

Karna Temple in dehradun
उत्तराखंड में है कर्ण का एक मात्र मंदिर (Photo- ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 27, 2024, 4:47 PM IST

Updated : Aug 27, 2024, 7:12 PM IST

उत्तराखंड में यहां है सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण का एकमात्र मंदिर (video-ETV Bharat)

कर्णप्रयाग (उत्तराखंड): महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ने वाले कुंती के पुत्र और सूर्य पुत्र कर्ण महाभारत के एक प्रतापी पात्र थे. महाभारत युद्ध में कर्ण के किस्से और कर्ण के शौर्य की गाथा अनादि काल से महाभारत के पन्नों में मिलती है. साहसी और प्रतापी पात्र कर्ण की कहानी बेहद रोमांचक है और यह खत्म होती है देवभूमि उत्तराखंड के द्वापर युग में स्कंद प्रयाग के नाम से जाने जाने वाले कर्णप्रयाग में आकर. द्वापर युग में स्कंद प्रयाग को कर्ण की मृत्यु के बाद कर्णप्रयाग के नाम से जाना गया. कर्णप्रयाग में सूर्य पुत्र कर्ण का एक मात्र मंदिर है और यहीं पर कर्णशिला भी मौजूद है.

कर्णप्रयाग दानवीर कर्ण की तपोभूमि: उत्तराखंड के पांच प्रयागों में से एक कर्णप्रयाग दानवीर कर्ण की तपोभूमि रही है. कर्णप्रयाग में मौजूद कर्ण के मंदिर वाली जगह वही जगह है, जहां पर कर्ण ने भगवान सूर्य की उपासना की थी. मंदिर के बाहर मौजूद कर्णशिला वही शिला है, जिसके ऊपर भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार किया था.

श्री कृष्ण ने शिला पर कर्ण का किया था अंतिम संस्कार: कर्ण ने महाभारत में कौरवों का साथ दिया था, लेकिन कर्ण भगवान सूर्य के वरदानी पुत्र थे और विष्णु भगवान के अनन्य भक्त थे. कर्ण को वरदान प्राप्त था, इसलिए मोक्ष प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उस समय के स्कंदप्रयाग की एक शिला पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया और कर्ण का पिंडदान अलकनंदा से मिलने वाली पिंडर नदी में किया था. द्वापर युग की इस घटना के बाद से इस जगह को स्कंद प्रयाग से बदलकर कर्णप्रयाग कहा गया और आज भी पिंडर नदी और अलकनंदा नदी के इस संगम को बेहद पवित्र और मोक्ष का द्वार माना जाता है.

मंदिर में काफी संख्या में पहुंचते हैं भक्त: ईटीवी भारत ने यहां पर जाकर मंदिर प्रांगण और वहां पर मौजूद पूरे परिसर का जायजा लिया. मंदिर के बाहरी गेट पर पर्यटन विभाग द्वारा मंदिर को लेकर एक शिला पट्ट लगाया गया है. हालांकि उस पर लिखी गई जानकारी मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोगों की जानकारी से मेल नहीं खाती है. वहीं, मंदिर परिसर में पिछले कुछ सालों में काफी अच्छा काम हुआ है और इस ऐतिहासिक और पौराणिक जगह पर चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थ यात्री और खासतौर से सनातन धर्म में अपनी आस्था रखने वाले लोगों की काफी आवाजाही होती है.

जहां पर हुआ था कर्ण का अंतिम संस्कार वो जगह स्कंद प्रिया के नाम से प्रसिद्ध: स्थानीय मनवीर सिंह मनराल ने बताया कि जब कर्ण का अंतिम संस्कार यहां पर किया गया था, तो उस समय यह जगह स्कंद प्रिया के नाम से जानी जाती थी. उन्होंने कहा कि आज इस पौराणिक जगह पर चारधाम यात्रा के दौरान कई सनातन धर्म के अनुयायी और स्टूडेंट आते हैं, लेकिन उस तरह से इस स्थल को विकसित नहीं किया गया है कि लोगों को ज्यादा बेहतर सुविधा और मनोरम दृश्य मिल पाए.

ये भी पढ़ें-

उत्तराखंड में यहां है सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण का एकमात्र मंदिर (video-ETV Bharat)

कर्णप्रयाग (उत्तराखंड): महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ने वाले कुंती के पुत्र और सूर्य पुत्र कर्ण महाभारत के एक प्रतापी पात्र थे. महाभारत युद्ध में कर्ण के किस्से और कर्ण के शौर्य की गाथा अनादि काल से महाभारत के पन्नों में मिलती है. साहसी और प्रतापी पात्र कर्ण की कहानी बेहद रोमांचक है और यह खत्म होती है देवभूमि उत्तराखंड के द्वापर युग में स्कंद प्रयाग के नाम से जाने जाने वाले कर्णप्रयाग में आकर. द्वापर युग में स्कंद प्रयाग को कर्ण की मृत्यु के बाद कर्णप्रयाग के नाम से जाना गया. कर्णप्रयाग में सूर्य पुत्र कर्ण का एक मात्र मंदिर है और यहीं पर कर्णशिला भी मौजूद है.

कर्णप्रयाग दानवीर कर्ण की तपोभूमि: उत्तराखंड के पांच प्रयागों में से एक कर्णप्रयाग दानवीर कर्ण की तपोभूमि रही है. कर्णप्रयाग में मौजूद कर्ण के मंदिर वाली जगह वही जगह है, जहां पर कर्ण ने भगवान सूर्य की उपासना की थी. मंदिर के बाहर मौजूद कर्णशिला वही शिला है, जिसके ऊपर भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार किया था.

श्री कृष्ण ने शिला पर कर्ण का किया था अंतिम संस्कार: कर्ण ने महाभारत में कौरवों का साथ दिया था, लेकिन कर्ण भगवान सूर्य के वरदानी पुत्र थे और विष्णु भगवान के अनन्य भक्त थे. कर्ण को वरदान प्राप्त था, इसलिए मोक्ष प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उस समय के स्कंदप्रयाग की एक शिला पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया और कर्ण का पिंडदान अलकनंदा से मिलने वाली पिंडर नदी में किया था. द्वापर युग की इस घटना के बाद से इस जगह को स्कंद प्रयाग से बदलकर कर्णप्रयाग कहा गया और आज भी पिंडर नदी और अलकनंदा नदी के इस संगम को बेहद पवित्र और मोक्ष का द्वार माना जाता है.

मंदिर में काफी संख्या में पहुंचते हैं भक्त: ईटीवी भारत ने यहां पर जाकर मंदिर प्रांगण और वहां पर मौजूद पूरे परिसर का जायजा लिया. मंदिर के बाहरी गेट पर पर्यटन विभाग द्वारा मंदिर को लेकर एक शिला पट्ट लगाया गया है. हालांकि उस पर लिखी गई जानकारी मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोगों की जानकारी से मेल नहीं खाती है. वहीं, मंदिर परिसर में पिछले कुछ सालों में काफी अच्छा काम हुआ है और इस ऐतिहासिक और पौराणिक जगह पर चारधाम यात्रा के दौरान तीर्थ यात्री और खासतौर से सनातन धर्म में अपनी आस्था रखने वाले लोगों की काफी आवाजाही होती है.

जहां पर हुआ था कर्ण का अंतिम संस्कार वो जगह स्कंद प्रिया के नाम से प्रसिद्ध: स्थानीय मनवीर सिंह मनराल ने बताया कि जब कर्ण का अंतिम संस्कार यहां पर किया गया था, तो उस समय यह जगह स्कंद प्रिया के नाम से जानी जाती थी. उन्होंने कहा कि आज इस पौराणिक जगह पर चारधाम यात्रा के दौरान कई सनातन धर्म के अनुयायी और स्टूडेंट आते हैं, लेकिन उस तरह से इस स्थल को विकसित नहीं किया गया है कि लोगों को ज्यादा बेहतर सुविधा और मनोरम दृश्य मिल पाए.

ये भी पढ़ें-

Last Updated : Aug 27, 2024, 7:12 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.