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महाशिवरात्रि पर थारू महोत्सव शुरू, यहां भगवान शिव को चढ़ता है भुजा, आलू-बैगन का चोखा - Mahashivratri in Bagaha

Tharu Festival In Bagaha: 8 मार्च को महाशिवरात्रि का पावन पर्व है. इस मौके पर थरूहट की राजधानी हरनाटांड़ में चार दिवसीय थारू महोत्सव मेला का शुभारंभ धूमधाम से किया गया है.आदिवासी अपनी संस्कृति को जीवंत रखने के लिए इस मेला का आयोजन वर्षों से करते आ रहे हैं. पढ़ें पूरी खूबर

बगहा में थारू महोत्सव
बगहा में थारू महोत्सव
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 7, 2024, 4:25 PM IST

बगहा में थारू महोत्सव

बगहा: महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य में थरुहट की राजधानी कहे जाने वाले हरनाटांड़ में चार दिवसीय थारू महोत्सव का आयोजन किया गया है. हरनाटांड़ स्थित प्लस टू उच्च विद्यालय के खेल मैदान में लगने वाले थारू जनजाति मेले का उद्घाटन धूमधाम से आदिवासी संस्कृति और लोक परंपराओं के साथ किया गया. जिसमें झुमटा और झूमर लोकनृत्य का प्रदर्शन कर आदिवासी महिलाओं ने सबको मोह लिया.

बगहा में थारू महोत्सव: सदियों से थारू समाज के लोग महाशिवरात्रि पर्व के दिन मेला का आयोजन हो रहा है. आयोजन समिति की सदस्य मीता देवी ने बताया कि उनकी मान्यता है कि इस मेले के आयोजन से नाते-रिश्तेदारों से मिलने के परम्परा का निर्वाह होता है. आज के समय में हमारे संस्कृति में दिन-प्रतिदिन बदलाव हो रहा है. लेकिन थारू समुदाय इसे संजोए रखा है. वह निश्चित ही प्रशंसनीय और सराहनीय है.

हस्त निर्मित सामानों का स्टॉल
हस्त निर्मित सामानों का स्टॉल

'रिश्तेदारों से करते हैं मेल-मिलाप: उन्होंंने कहा कि, ''हरनाटांड़ में पहले इसको भुजहवा मेला के नाम से जाना जाता था.जहां आदिवासी समाज के लोग अनंदी का भुजा और आलू या बैगन का चोखा लेकर आते थे और भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के बाद इसी को खाते थे और आदिवासी समाज के लोग नाते-रिश्तेदारों से मुलाकात करते हैं.''

1996 में मेला लगने की हुई थी शुरुआत : उन्होंने कहा कि यह मेला थारू समाज के नाते-रिश्तेदारों से मिलने मिलाने का एक बहाना भी होता है. पहले यह मेला 10 दिनों तक लगता था, लेकिन 1996 के बाद इस मेला का नाम भुजहवा मेला से बदलकर थारू महोत्सव मेला कर दिया गया और लॉ एंड आर्डर को देखते हुए धीरे-धीरे सात दिनों का लगने लगा. अब कुछ सालों से इस मेला का आयोजन चार दिवसीय होता है.

बगहा में थारू महोत्सव
बगहा में थारू महोत्सव

दूरदराज से लोग आते हैं मेला देखने: बता दें कि इस पूजा को थारू जनजाति के लोग विशेष तौर पर थारू महोत्सव के रूप में मनाते हैं. आदिवासी अपनी संस्कृति को जीवंत रखने के लिए इस मेला का आयोजन वर्षों से करते आ रहे हैं. इसमें थरुहट क्षेत्र के लोगों द्वारा हस्त निर्मित सामानों का स्टॉल लगाया जाता है और इस सामान को खरीदने के लिए लोग दूरदराज के क्षेत्रों से पहुंचते हैं.

थारू संस्कृति से जुड़े व्यंजनों का लुफ्त: शिवरात्रि के दिन पूरे पश्चिम चंपारण जिले के तराई क्षेत्र में बसे थारू समुदाय के लोग यहां मेला घूमने पहुंचते हैं. जिसमें इस बार ब्रेक डांस, नाव, टावर झूला, ड्रेगन व बंबे बाजार लोगों का आकर्षित कर रहा है. इस मेले में थारू संस्कृति से जुड़े व्यंजनों का भी लोग लुफ्त उठाने पहुंचते हैं. जिसमें चेंची, बेंवा, पकली, व आनंदी के भुजा के साथ दही मुख्य है.

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बगहा में थारू महोत्सव

बगहा: महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य में थरुहट की राजधानी कहे जाने वाले हरनाटांड़ में चार दिवसीय थारू महोत्सव का आयोजन किया गया है. हरनाटांड़ स्थित प्लस टू उच्च विद्यालय के खेल मैदान में लगने वाले थारू जनजाति मेले का उद्घाटन धूमधाम से आदिवासी संस्कृति और लोक परंपराओं के साथ किया गया. जिसमें झुमटा और झूमर लोकनृत्य का प्रदर्शन कर आदिवासी महिलाओं ने सबको मोह लिया.

बगहा में थारू महोत्सव: सदियों से थारू समाज के लोग महाशिवरात्रि पर्व के दिन मेला का आयोजन हो रहा है. आयोजन समिति की सदस्य मीता देवी ने बताया कि उनकी मान्यता है कि इस मेले के आयोजन से नाते-रिश्तेदारों से मिलने के परम्परा का निर्वाह होता है. आज के समय में हमारे संस्कृति में दिन-प्रतिदिन बदलाव हो रहा है. लेकिन थारू समुदाय इसे संजोए रखा है. वह निश्चित ही प्रशंसनीय और सराहनीय है.

हस्त निर्मित सामानों का स्टॉल
हस्त निर्मित सामानों का स्टॉल

'रिश्तेदारों से करते हैं मेल-मिलाप: उन्होंंने कहा कि, ''हरनाटांड़ में पहले इसको भुजहवा मेला के नाम से जाना जाता था.जहां आदिवासी समाज के लोग अनंदी का भुजा और आलू या बैगन का चोखा लेकर आते थे और भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के बाद इसी को खाते थे और आदिवासी समाज के लोग नाते-रिश्तेदारों से मुलाकात करते हैं.''

1996 में मेला लगने की हुई थी शुरुआत : उन्होंने कहा कि यह मेला थारू समाज के नाते-रिश्तेदारों से मिलने मिलाने का एक बहाना भी होता है. पहले यह मेला 10 दिनों तक लगता था, लेकिन 1996 के बाद इस मेला का नाम भुजहवा मेला से बदलकर थारू महोत्सव मेला कर दिया गया और लॉ एंड आर्डर को देखते हुए धीरे-धीरे सात दिनों का लगने लगा. अब कुछ सालों से इस मेला का आयोजन चार दिवसीय होता है.

बगहा में थारू महोत्सव
बगहा में थारू महोत्सव

दूरदराज से लोग आते हैं मेला देखने: बता दें कि इस पूजा को थारू जनजाति के लोग विशेष तौर पर थारू महोत्सव के रूप में मनाते हैं. आदिवासी अपनी संस्कृति को जीवंत रखने के लिए इस मेला का आयोजन वर्षों से करते आ रहे हैं. इसमें थरुहट क्षेत्र के लोगों द्वारा हस्त निर्मित सामानों का स्टॉल लगाया जाता है और इस सामान को खरीदने के लिए लोग दूरदराज के क्षेत्रों से पहुंचते हैं.

थारू संस्कृति से जुड़े व्यंजनों का लुफ्त: शिवरात्रि के दिन पूरे पश्चिम चंपारण जिले के तराई क्षेत्र में बसे थारू समुदाय के लोग यहां मेला घूमने पहुंचते हैं. जिसमें इस बार ब्रेक डांस, नाव, टावर झूला, ड्रेगन व बंबे बाजार लोगों का आकर्षित कर रहा है. इस मेले में थारू संस्कृति से जुड़े व्यंजनों का भी लोग लुफ्त उठाने पहुंचते हैं. जिसमें चेंची, बेंवा, पकली, व आनंदी के भुजा के साथ दही मुख्य है.

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