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प्रकृति से छेड़छाड़ से हिमालय पर मंडराता खतरा, पर्यावरणविद जगत सिंह 'जंगली' ने उठाई ये मांग - environmental protection

Renowned Environmentalist Jagat Singh Jangli पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह 'जंगली' ने प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन खतरे की घंटी बताया है. साथ ही उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से हिमालय के लिए अलग से नीति बनाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण से पर्यावरण संरक्षण किया जा सकती है, जिससे मानसून सीजन में भूस्खलन और आपदाओं जैसी घटनाओं को कम किया जा सकता हैं.

Himalayas are in danger due to interference with nature
प्रकृति से छेड़छाड़ से खतरे में हिमालय (फोटो-ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 6, 2024, 5:08 PM IST

Updated : Jul 6, 2024, 7:08 PM IST

प्रकृति से छेड़छाड़ से हिमालय को खतरा (वीडियो-ईटीवी भारत)

रुद्रप्रयाग: पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह 'जंगली' ने सरकार पर सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार वन नीति और हिमालय नीति बनाने में विफल साबित हो रही है. जबकि हमारा हिमालय और वन दोनों ही खतरे में हैं. प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ किये जाने से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है. ऐसे में समय रहते सभी को एक मंच पर आने की जरूरत है.

मानवीय हस्तक्षेप से पर्यावरण को खतरा: पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह 'जंगली' ने बताया कि वे तीन दशक से अपने गांव स्थित कोट-मल्ला में मिश्रित वन को लेकर कार्य कर रहे हैं. मकसद पर्यावरण को सुरक्षित रखना है. जंगल को देखने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग पहुंच रहे हैं. मिश्रित वन में देवदार, बांज, चीड़ जैसे 70 तरह के पांच लाख से अधिक पेड़ हैं. यह क्षेत्र चारों ओर से हरियाली से घिरा है. ऐसे में यहां का वातावरण काफी मात्रा में शुद्ध रहता है.पर्यावरणविद जगत सिंह ने बताया कि हिमालय क्षेत्र में निर्माण कार्य चल रहे हैं. हेलीकाॅप्टर उड़ रहे हैं.

प्रकृति से हो रही छेड़छाड़: लाखों की संख्या में आ रहे लोग कूड़ा-कचरा फैला रहे हैं. ऐसे में हिमालय क्षेत्र का सुरक्षित रह पाना मुश्किल है. एक तरफ हिमालय में निर्माण कार्य, हेलीकॉप्टर सेवा के साथ लाखों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं, वहीं हिमालय को बचाने के लिए कोई भी कार्य नहीं हो रहे हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में निर्माण कार्य चल रहे हैं. हेली सेवाओं की गर्जना से ग्लेशियर टूट रहे हैं, वहीं जीव-जंतुओं पर भी असर पड़ रहा है. सबसे बड़ी बात हिमालय को खतरा पैदा हो गया है. हिमालय का पर्यावरण प्रदूषित हो गया है. केदारनाथ जा रहे लोग प्रदूषण फैला रहे हैं. उन्होंने कहा कि धाम स्वच्छ स्थान पर बसा है. मनुष्य ने अपनी सुविधाओं को लेकर धाम के ईको सिस्टम को बिगाड़ दिया है.

मौसम में आया परिवर्तन: पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने को लेकर एनजीटी, वन विभाग एवं पर्यटन विभाग की ओर से कोई भी ठोस नीति नहीं बनाई जा रही है. शहरों में गर्मी के कारण तापमान काफी बढ़ गया है और देश के विभिन्न राज्यों से लोग गर्मी से बचने के लिए देवभूमि उत्तराखंड की ओर आ रहे हैं. वे यहां आकर प्रकृति को बिगड़ते हुए देख रहे हैं. पिछले दस सालों से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जा रही है, जिसका परिणाम यह कि अब पहाड़ों में भी पहले जैसी ठंडक नहीं रही है. यहां के तापमान में भी काफी बढ़ोत्तरी हो गई है. नदी-नाले सूख रहे हैं. लम्बे समय तक बारिश नहीं हो रही है. मानसून सीजन में कहीं बारिश तेज हो रही है तो कहीं बारिश ही नहीं हो रही है.

वृक्षारोपण पर जोर देने की पहल: मौसम में आये बदलाव का मुख्य कारण प्रकृति के साथ बड़ी मात्रा में छेड़छाड़ है. आने वाले समय में समस्याएं और अधिक बढ़ने वाली हैं, जिसका अंदाजा अभी किसी को नहीं है.पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार को हिमालय को बचाने के लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत है. एनजीटी, वन और पर्यटन विभाग को एक साथ एक टीम की तरह कार्य करना होगा. पहाड़ी जिलों में हो रहे निर्माण कार्यों में बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान हुआ है. जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचा है. ऐसे में सरकार को पर्यावरण को बचाने के लिए भी अलग से धनराशि स्वीकृत करनी होगी.अधिकाधिक मात्रा में पेड़ों को लगाए जाने से भूस्खलन के साथ ही अन्य घटनाएं भी नहीं होंगी.उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार को वन और हिमालय नीति बनाने की जरूरत है.

जंगल किया विकसित: इन नीतियों के बनने से हिमालय के साथ ही पर्यावरण को भी बचाया जा सकेगा. इसमें स्थानीय लोगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित की जाए. कहा कि हिमालय की जरूरत पूरे देश को है. इसलिए इस कार्य में सभी की भागीदारी होनी चाहिए. इसके लिए विधिवत कानून भी बनना चाहिए. आज के समय में धरती को बचाने के लिए कानून बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है. पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह 'जंगली' ने बताया कि वे तीन दशक से अपने गांव स्थित कोट-मल्ला में मिश्रित वन को लेकर कार्य कर रहे हैं. मकसद पर्यावरण को सुरक्षित रखना है. इस जंगल को देखने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग पहुंच रहे हैं. मिश्रित वन में देवदार, बांज, चीड़ जैसे 70 तरह के पांच लाख से अधिक पेड़ हैं. यह क्षेत्र चारों ओर से हरियाली से घिरा है. ऐसे में यहां का वातावरण काफी मात्रा में शुद्ध रहता है.

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प्रकृति से छेड़छाड़ से हिमालय को खतरा (वीडियो-ईटीवी भारत)

रुद्रप्रयाग: पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह 'जंगली' ने सरकार पर सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार वन नीति और हिमालय नीति बनाने में विफल साबित हो रही है. जबकि हमारा हिमालय और वन दोनों ही खतरे में हैं. प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ किये जाने से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है. ऐसे में समय रहते सभी को एक मंच पर आने की जरूरत है.

मानवीय हस्तक्षेप से पर्यावरण को खतरा: पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह 'जंगली' ने बताया कि वे तीन दशक से अपने गांव स्थित कोट-मल्ला में मिश्रित वन को लेकर कार्य कर रहे हैं. मकसद पर्यावरण को सुरक्षित रखना है. जंगल को देखने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग पहुंच रहे हैं. मिश्रित वन में देवदार, बांज, चीड़ जैसे 70 तरह के पांच लाख से अधिक पेड़ हैं. यह क्षेत्र चारों ओर से हरियाली से घिरा है. ऐसे में यहां का वातावरण काफी मात्रा में शुद्ध रहता है.पर्यावरणविद जगत सिंह ने बताया कि हिमालय क्षेत्र में निर्माण कार्य चल रहे हैं. हेलीकाॅप्टर उड़ रहे हैं.

प्रकृति से हो रही छेड़छाड़: लाखों की संख्या में आ रहे लोग कूड़ा-कचरा फैला रहे हैं. ऐसे में हिमालय क्षेत्र का सुरक्षित रह पाना मुश्किल है. एक तरफ हिमालय में निर्माण कार्य, हेलीकॉप्टर सेवा के साथ लाखों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं, वहीं हिमालय को बचाने के लिए कोई भी कार्य नहीं हो रहे हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में निर्माण कार्य चल रहे हैं. हेली सेवाओं की गर्जना से ग्लेशियर टूट रहे हैं, वहीं जीव-जंतुओं पर भी असर पड़ रहा है. सबसे बड़ी बात हिमालय को खतरा पैदा हो गया है. हिमालय का पर्यावरण प्रदूषित हो गया है. केदारनाथ जा रहे लोग प्रदूषण फैला रहे हैं. उन्होंने कहा कि धाम स्वच्छ स्थान पर बसा है. मनुष्य ने अपनी सुविधाओं को लेकर धाम के ईको सिस्टम को बिगाड़ दिया है.

मौसम में आया परिवर्तन: पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने को लेकर एनजीटी, वन विभाग एवं पर्यटन विभाग की ओर से कोई भी ठोस नीति नहीं बनाई जा रही है. शहरों में गर्मी के कारण तापमान काफी बढ़ गया है और देश के विभिन्न राज्यों से लोग गर्मी से बचने के लिए देवभूमि उत्तराखंड की ओर आ रहे हैं. वे यहां आकर प्रकृति को बिगड़ते हुए देख रहे हैं. पिछले दस सालों से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जा रही है, जिसका परिणाम यह कि अब पहाड़ों में भी पहले जैसी ठंडक नहीं रही है. यहां के तापमान में भी काफी बढ़ोत्तरी हो गई है. नदी-नाले सूख रहे हैं. लम्बे समय तक बारिश नहीं हो रही है. मानसून सीजन में कहीं बारिश तेज हो रही है तो कहीं बारिश ही नहीं हो रही है.

वृक्षारोपण पर जोर देने की पहल: मौसम में आये बदलाव का मुख्य कारण प्रकृति के साथ बड़ी मात्रा में छेड़छाड़ है. आने वाले समय में समस्याएं और अधिक बढ़ने वाली हैं, जिसका अंदाजा अभी किसी को नहीं है.पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार को हिमालय को बचाने के लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत है. एनजीटी, वन और पर्यटन विभाग को एक साथ एक टीम की तरह कार्य करना होगा. पहाड़ी जिलों में हो रहे निर्माण कार्यों में बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान हुआ है. जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचा है. ऐसे में सरकार को पर्यावरण को बचाने के लिए भी अलग से धनराशि स्वीकृत करनी होगी.अधिकाधिक मात्रा में पेड़ों को लगाए जाने से भूस्खलन के साथ ही अन्य घटनाएं भी नहीं होंगी.उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार को वन और हिमालय नीति बनाने की जरूरत है.

जंगल किया विकसित: इन नीतियों के बनने से हिमालय के साथ ही पर्यावरण को भी बचाया जा सकेगा. इसमें स्थानीय लोगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित की जाए. कहा कि हिमालय की जरूरत पूरे देश को है. इसलिए इस कार्य में सभी की भागीदारी होनी चाहिए. इसके लिए विधिवत कानून भी बनना चाहिए. आज के समय में धरती को बचाने के लिए कानून बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है. पर्यावरण श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध पर्यावरणविद जगत सिंह 'जंगली' ने बताया कि वे तीन दशक से अपने गांव स्थित कोट-मल्ला में मिश्रित वन को लेकर कार्य कर रहे हैं. मकसद पर्यावरण को सुरक्षित रखना है. इस जंगल को देखने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग पहुंच रहे हैं. मिश्रित वन में देवदार, बांज, चीड़ जैसे 70 तरह के पांच लाख से अधिक पेड़ हैं. यह क्षेत्र चारों ओर से हरियाली से घिरा है. ऐसे में यहां का वातावरण काफी मात्रा में शुद्ध रहता है.

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Last Updated : Jul 6, 2024, 7:08 PM IST
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