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क्या है सिफलिस बीमारी, पति-पत्नी को कैसे चपेट में लेती, जानिए लक्षण और उपचार - SYPHILIS UNSAFE INTERCOURSE

डॉक्टर्स का कहना है कि असुरक्षित-अप्राकृतिक इंटरकोर्स से यह बीमारी घातक बन रही है.

Syphilize disease
Syphilize disease (Photo Credit: Social Media)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 4, 2025, 1:30 PM IST

Updated : Feb 4, 2025, 2:07 PM IST

लखनऊ: प्रदेश में सिफलिस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. इसकी मुख्य वजह अनसेफ और अप्राकृतिक इंटरकोर्स है. जानकारों का कहना है कि सिफलिस बेहद घातक यौन संचारित बीमारी है. यह ट्रीपोनीमा पैलिडम नामक वायरस के कारण फैलता है.

सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज (एसटीडी) काउंसलर मीना कुमारी ने बताया कि इस यौन संचारित रोग का मुख्य कारण संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना है. जानकारी के अभाव में ज्यादातर लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं.

भारत में सालाना 1 लाख सिफलिश के शिकार: काउंसलर बताती हैं कि एक सर्वे के अनुसार भारत में सलाना एक लाख लोग सिफलिस की चपेट में आ रहे हैं. यह बीमारी सिफिलिस से संक्रमित महिला या पुरुष के साथ संबंध बनाने से फैलती है.

ज्यादातर लोग जो एक से अधिक महिलाओं या पुरुषों से शारीरिक संबंध बनाते हैं, वे स्वस्थ होते हुए भी इसकी चपेट में आ जाते हैं. 'किस' करने से भी यह बीमारी एक-दूसरे में ट्रांसमिट हो जाती है. डॉक्टर्स का मानना है कि सिफलिश जब तक पूरी तरह से ठीक न हो जाए, तब तक किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से बचना चाहिए. वेश्याएं, कॉलगर्ल्स जल्दी इसकी शिकार बनती हैं. उनके संपर्क में आने वाले पुरुषों को यह रोगा होता है.


यह बैक्टिरियल इंफेक्शन, सावधानी जरूरी: लखनऊ के झलकारीबाई महिला अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ निवेदिता कर ने बताया कि सिफलिस एक खतरनाक यौन संचारित रोग है, जो असुरक्षित शारीरिक संबंध बनाने से फैलता है. पहले से इस बीमारी से जूझ रहे पार्टनर से यह फैल सकता है.

डॉ. निवेदिता बताती हैं कि यह बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन है. यह संक्रमण योनि, गुदा या फिर मौखिक तौर बीमार से संपर्क बनाने पर फैल सकता है. सिफलिस रोग की जांच ब्लड टेस्ट के माध्यम से होती है. इसका प्रॉपर इलाज किया जाए तो यह ठीक हो जाता है। जो लोग इलाज नहीं कराते या बचने की कोशिश करते हैं, उनकी हालत गंभीर हो सकती है.


शरीर पर चकत्ते सिफलिश के लक्षण: डॉक्टर ने बताया कि सिफिलिस से संक्रमित होने के लगभग एक महीने बाद इस रोग के लक्षण दिखने लगते हैं. सिफलिस होते हैं लिंक पर लाल रंग के चकत्ते दिखाई देने लगते हैं. यह धीरे-धीरे बढ़ता ही जाता है.

छूने पर यह कड़ा हो जाता है, जिसकी वजह से इसे हार्ड सेंकर कहा जाता है. इसमें दर्द नहीं होता है. पुरुषों में यह चकत्ते लिंग के भीतर या बाहर होते हैं. जबकि महिलाओं में यह बीमारी है, तो उनके योनि द्वार और गर्भाशय के मुंह पर चकत्ते दिखने लगते हैं. यह चकत्ते घर्षण की वजह से घाव बन जाते हैं.


एचआईवी से बिलकुल अलग है यह बीमारी: डॉक्टर ने बताया कि सिफलिस रोग एचआईवी से बिल्कुल अलग है. सिफलिस के लक्षण 3 से 6 सप्ताह बाद दिखना शुरू होते हैं, जिसमें जीवाणु और उसका विष सारे शरीर में पहुंच जाता है. इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल चकत्तों का उभरना, उसमें जख्म बनना, जख्मों में दर्द या खुजली न होना, सिरदर्द, गले में दर्द, भूख न लगना, पाचन तंत्र की गड़बड़ी, हीमोग्लोबिन की समस्या, जोड़ की ग्रंथियों में सूजन, बुखार आना, मुंह, होंठ, जननांग और मल द्वार के आस-पास घाव होना जैसी तकलीफें होने लगती हैं.

सिफलिस में जो घाव होते हैं, उसे गम्मा नाम से भी जाना जाता हैं. त्वचा, मांसपेशियों, अंडकोष, हड्डियां तक इससे प्रभावित होती हैं। इसकी वजह से ये बहुत घातक हो जाता है। शरीर के अंग इन घावों के कारण बदरंग होने लगते हैं. आंखों की रोशनी भी जा सकती है. यहां तक कि बच्चे विकलांग या दृष्टिहीन पैदा होते हैं.


इलाज न होने पर खतरनाक हो जाती है बीमारी: काउंसलर मीना कुमारी बतातीं है कि अगर समय रहते बीमारी का पता चल जाए तो इलाज संभव है. इसका इलाज दबाव से भी हो जाता है. ब्लड टेस्ट द्वारा सिफलिस बीमारी का पता लगाया जाता है.

अस्पताल में आ रही सभी गर्भवती महिलाओं की सिफलिस जांच जरूर होती है, ताकि डिलीवरी के समय कोई समस्या न हो. समय पर पूरा इलाज करवाने से बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है. किसी भी व्यक्ति को महिला हो या पुरुष इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर इलाज करवाने में देर नहीं करनी चाहिए. यह बीमारी अत्यधिक बढ़ जाने पर लकवा, स्नायु दुर्बलता, मेरू मज्जा का क्षय, नपुंसकता, कैंसर और मिर्गी जैसी बीमारियों की संभावना रहती है.


युवाओं में जागरूकता है जरुरी: काउंसलर ने बताया कि अधिक से अधिक संख्या में हमें युवाओं को जागृत करने की जरूरत है, ताकि अनसेफ और प्राकृतिक संबंध से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. संक्रमित महिला या पुरुष से संबंध बनाने पर यह बीमारी हो जाती है और तकलीफ बढ़ती है.

इंटरनेट की दुनिया में बहुत सारी चीजें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, लेकिन यह बहुत बुरी तरह से युवाओं को अपना शिकार बना रही है. युवाओं में ज्यादातर देखा गया है कि वह एक्सपेरिमेंट करने के बड़े इच्छुक होते हैं. लेकिन, उन्हें यह भी समझना होगा कि उनकी पार्टनर कोई खिलौना नहीं है.

यह भी पढ़ें: गर्भवती और गर्भ में पल रहे शिशु के लिए योग फायदेमंद, प्रशिक्षित योगाचार्य की निगरानी जरूरी - Mother and Child Referral Hospital Luckno

लखनऊ: प्रदेश में सिफलिस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. इसकी मुख्य वजह अनसेफ और अप्राकृतिक इंटरकोर्स है. जानकारों का कहना है कि सिफलिस बेहद घातक यौन संचारित बीमारी है. यह ट्रीपोनीमा पैलिडम नामक वायरस के कारण फैलता है.

सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज (एसटीडी) काउंसलर मीना कुमारी ने बताया कि इस यौन संचारित रोग का मुख्य कारण संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना है. जानकारी के अभाव में ज्यादातर लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं.

भारत में सालाना 1 लाख सिफलिश के शिकार: काउंसलर बताती हैं कि एक सर्वे के अनुसार भारत में सलाना एक लाख लोग सिफलिस की चपेट में आ रहे हैं. यह बीमारी सिफिलिस से संक्रमित महिला या पुरुष के साथ संबंध बनाने से फैलती है.

ज्यादातर लोग जो एक से अधिक महिलाओं या पुरुषों से शारीरिक संबंध बनाते हैं, वे स्वस्थ होते हुए भी इसकी चपेट में आ जाते हैं. 'किस' करने से भी यह बीमारी एक-दूसरे में ट्रांसमिट हो जाती है. डॉक्टर्स का मानना है कि सिफलिश जब तक पूरी तरह से ठीक न हो जाए, तब तक किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से बचना चाहिए. वेश्याएं, कॉलगर्ल्स जल्दी इसकी शिकार बनती हैं. उनके संपर्क में आने वाले पुरुषों को यह रोगा होता है.


यह बैक्टिरियल इंफेक्शन, सावधानी जरूरी: लखनऊ के झलकारीबाई महिला अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ निवेदिता कर ने बताया कि सिफलिस एक खतरनाक यौन संचारित रोग है, जो असुरक्षित शारीरिक संबंध बनाने से फैलता है. पहले से इस बीमारी से जूझ रहे पार्टनर से यह फैल सकता है.

डॉ. निवेदिता बताती हैं कि यह बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन है. यह संक्रमण योनि, गुदा या फिर मौखिक तौर बीमार से संपर्क बनाने पर फैल सकता है. सिफलिस रोग की जांच ब्लड टेस्ट के माध्यम से होती है. इसका प्रॉपर इलाज किया जाए तो यह ठीक हो जाता है। जो लोग इलाज नहीं कराते या बचने की कोशिश करते हैं, उनकी हालत गंभीर हो सकती है.


शरीर पर चकत्ते सिफलिश के लक्षण: डॉक्टर ने बताया कि सिफिलिस से संक्रमित होने के लगभग एक महीने बाद इस रोग के लक्षण दिखने लगते हैं. सिफलिस होते हैं लिंक पर लाल रंग के चकत्ते दिखाई देने लगते हैं. यह धीरे-धीरे बढ़ता ही जाता है.

छूने पर यह कड़ा हो जाता है, जिसकी वजह से इसे हार्ड सेंकर कहा जाता है. इसमें दर्द नहीं होता है. पुरुषों में यह चकत्ते लिंग के भीतर या बाहर होते हैं. जबकि महिलाओं में यह बीमारी है, तो उनके योनि द्वार और गर्भाशय के मुंह पर चकत्ते दिखने लगते हैं. यह चकत्ते घर्षण की वजह से घाव बन जाते हैं.


एचआईवी से बिलकुल अलग है यह बीमारी: डॉक्टर ने बताया कि सिफलिस रोग एचआईवी से बिल्कुल अलग है. सिफलिस के लक्षण 3 से 6 सप्ताह बाद दिखना शुरू होते हैं, जिसमें जीवाणु और उसका विष सारे शरीर में पहुंच जाता है. इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल चकत्तों का उभरना, उसमें जख्म बनना, जख्मों में दर्द या खुजली न होना, सिरदर्द, गले में दर्द, भूख न लगना, पाचन तंत्र की गड़बड़ी, हीमोग्लोबिन की समस्या, जोड़ की ग्रंथियों में सूजन, बुखार आना, मुंह, होंठ, जननांग और मल द्वार के आस-पास घाव होना जैसी तकलीफें होने लगती हैं.

सिफलिस में जो घाव होते हैं, उसे गम्मा नाम से भी जाना जाता हैं. त्वचा, मांसपेशियों, अंडकोष, हड्डियां तक इससे प्रभावित होती हैं। इसकी वजह से ये बहुत घातक हो जाता है। शरीर के अंग इन घावों के कारण बदरंग होने लगते हैं. आंखों की रोशनी भी जा सकती है. यहां तक कि बच्चे विकलांग या दृष्टिहीन पैदा होते हैं.


इलाज न होने पर खतरनाक हो जाती है बीमारी: काउंसलर मीना कुमारी बतातीं है कि अगर समय रहते बीमारी का पता चल जाए तो इलाज संभव है. इसका इलाज दबाव से भी हो जाता है. ब्लड टेस्ट द्वारा सिफलिस बीमारी का पता लगाया जाता है.

अस्पताल में आ रही सभी गर्भवती महिलाओं की सिफलिस जांच जरूर होती है, ताकि डिलीवरी के समय कोई समस्या न हो. समय पर पूरा इलाज करवाने से बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है. किसी भी व्यक्ति को महिला हो या पुरुष इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर इलाज करवाने में देर नहीं करनी चाहिए. यह बीमारी अत्यधिक बढ़ जाने पर लकवा, स्नायु दुर्बलता, मेरू मज्जा का क्षय, नपुंसकता, कैंसर और मिर्गी जैसी बीमारियों की संभावना रहती है.


युवाओं में जागरूकता है जरुरी: काउंसलर ने बताया कि अधिक से अधिक संख्या में हमें युवाओं को जागृत करने की जरूरत है, ताकि अनसेफ और प्राकृतिक संबंध से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. संक्रमित महिला या पुरुष से संबंध बनाने पर यह बीमारी हो जाती है और तकलीफ बढ़ती है.

इंटरनेट की दुनिया में बहुत सारी चीजें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, लेकिन यह बहुत बुरी तरह से युवाओं को अपना शिकार बना रही है. युवाओं में ज्यादातर देखा गया है कि वह एक्सपेरिमेंट करने के बड़े इच्छुक होते हैं. लेकिन, उन्हें यह भी समझना होगा कि उनकी पार्टनर कोई खिलौना नहीं है.

यह भी पढ़ें: गर्भवती और गर्भ में पल रहे शिशु के लिए योग फायदेमंद, प्रशिक्षित योगाचार्य की निगरानी जरूरी - Mother and Child Referral Hospital Luckno

Last Updated : Feb 4, 2025, 2:07 PM IST
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