ETV Bharat / state

स्वामी विवेकानंद को काशी से था विशेष लगाव, अंतिम समय में किया था 39 दिन का प्रवास - swami vivekananda death anniversary

author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 4, 2024, 1:45 PM IST

स्वामी विवेकानंद ने देश के साथ युवाओं को भी नई दिशा और सोच दी है. आज उनकी पुण्यतिथि (Swami Vivekananda Death Anniversary) पर काशी से कनेक्शन की बात लाजमी है. हालांकि काशी में स्वामीजी से जुड़ी विरासतें बदहाली की शिकार हैं.

स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद (Photo Credit-Etv Bharat)

स्वामी विवेकानंद का काशी ने नाता. (Video Credit-Etv Bharat)

वाराणसी : स्वामी विवेकानंद का जिक्र आते ही युवा भारत और युवा सोच की तस्वीर मानस पटल पर उभरती है. आज (4 जुलाई) स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर काशी से जुड़ी उनके जीवन के अभूतपूर्व और अहम पहलूओं की जिक्र जरूरी है. दरअसल स्वामी विवेकानंद के जीवन में काशी विशेष रहा है, क्योंकि काशी वह स्थान है जहां पर उनके जन्म से लेकर के मृत्यु तक की कहानी जुड़ी हुई है. काशी में स्वामी विवेकानंद से जुड़ीं ऐतिहासिक विरासतें हैं जो उनके विशेश्वर बनने से लेकर के स्वामी जी बनने तक की कहानी बयां करती हैं.

वाराणसी के अर्दली बाजार स्थित आईटी कॉलेज परिसर में मौजूद गोपाल विला स्वामी विवेकानंद के जीवन के अंतिम समय का साक्षी रहा है. अंतिम समय में स्वामी विवेकानंद ने यहां 39 दिन प्रवास किया था. बड़ी बात यह है कि आज यहां स्वामी जी की कोई विरासत नहीं बची. यहां चारों तरफ खंडहर, जंगल और बदहाली नजर आती है. उस समय यह विला बनारस के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक था. यहां स्वामी जी के शिष्यों का जमावड़ा लगता था. अब यहां शराबियों, जुआरियों का जमावड़ा होता है. हैरानी की बात यह है कि 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने संरक्षण के नाम पर शिलापट्ट लगा दिया गया, लेकिन आज तक उसका जीर्णोद्धार नहीं कराया गया.



गोपाल विला के संरक्षण की मांग कर रहे एडवोकेट नित्यानंद राय बताते हैं कि हमारे सहयोगियों ने 1996 में इस विला को संरक्षित रखने की मुहिम उठाई थी. लगभग 29 साल बीतने को हैं, लेकिन आज तक किसी ने इसकी सुधि नहीं ली है. स्थानीय से लेकर के प्रदेश तक के सभी जनप्रतिनिधिओं, मंत्रियों को पत्र लिखकर संरक्षण की मांग की जा चुकी है. सीएम योगी से भी मुलाकात की गई, लेकिन आज तक कोई पहल नहीं की. गई. हमारी यह मांग है कि इस जगह पर स्वामी विवेकानंद की स्मृतियों को संग्रहालय के रूप में संरक्षित किया जाए.




नाम के लिए लगा शिलापट्ट : संरक्षण के मुहिम की शुरुआत करने वाले गोविंद 'भैया जी' कहते हैं कि काशी से स्वामी विवेकानंद का एक अलग और गहरा लगाव रहा है. उन्होंने अपने जीवन में पांच बार काशी की यात्रा की और उस यात्रा के पड़ाव में अंतिम समय में वह गोपाल विला आकर के रुके थे. जहां उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी हुआ. जिसके बाद वह बैलूर मठ रवाना हो गए. स्वामी जी ने यहीं से साl चिट्ठियां अपने अनुयायियों और शिष्यों को लिखी थीं. जिसमें उन्होंने गोपाल विला की खूबसूरती का जिक्र भी किया था.

स्वामी जी की चिट्ठियों में बताया है कि यहां पर अमरूद व कई अन्य फलों के बगीचे हैं. कमल का पुष्कर तालाब है और विला भी बेहद भव्य और खूबसूरत है. यहां रहकर उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी हुआ. यहीं से स्वामी जी ने राम कृष्ण मिशन की शुरुआत की थी. हमें उम्मीद थी कि पीएम मोदी अपने प्रेरणा स्रोत की विरासत को सहेजने की पहल करेंगे, लेकिन अभी तक ऐसी कोई पहल नहीं हुई. नाम के लिए शिलापट्ट लगा दिया गया है.




नित्यानंद राय के अनुसार अपने पहले पत्र में उन्होंने काशी प्रवास के दौरान बौद्ध धर्म के ज्ञान के बारे में शिष्यों को बताया है. उन्होंने लिखा कि मैं काशी में अच्छा हूं, इसी तरह मेरा स्वास्थ्य सुधरता रहा तो मुझे बड़ा स्वास्थ्य लाभ होगा. इसी पत्र में उन्होंने गोपाल विला की भव्यता का भी जिक्र किया है. दूसरे पत्र में उन्होंने काशी के कलाकारों के प्रशंसा की है. तीसरे पत्र में उन्होंने अपनी भगिनी निवेदिता को आशीर्वाद देते हुए श्री रामकृष्ण सत्य को अपने जीवन का मार्गदर्शन मानकर आगे बढ़ने का निर्देश दिया है. चौथे पत्र में ब्रह्मानंद को प्रभु के निर्देशानुसार कार्य करने का निर्देश दिया है. साथ ही उन्होंने लिखा है कि कोलकाता और इलाहाबाद में प्लेग फैल चुका है, काशी में फैलेगा की नहीं मैं नहीं जानता. अपने 7वें और अंतिम पत्र में उन्होंने ब्रह्मानंद को पत्र का जवाब ना लिखने पर नाराजगी ज़ाहिर की और लिखा कि एक मामूली सी चिट्ठी लिखने में इतना कष्ट और विलंब! तो मैं चैन की सांस लूंगा, कौन जानता है कि उसके मिलने में कितने महीने लगते हैं. इसके बाद वह बेलूर मठ चले गए जहां 4 जुलाई को स्वामी जी का देहावसान हो गया.



नित्यानंद राय बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद जी के पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी को काफी समय तक कोई संतति नहीं हुई थी. इसको लेकर के वह लोग परेशान थे और काशी आए, जहां उन्हें किसी ने आत्म विशेश्वर मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने की सलाह दी. इसके बाद उनकी माता ने सिंधिया घाट पर गंगा किनारे आत्म विश्वेश्वर महादेव की पूजा अर्चना तप किया. जिसके बाद उन्हें 12 जनवरी 1863 को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने विशेश्वर रखा जो बाद में नरेंद्र और उसके बाद स्वामी विवेकानंद हो गया.


यह भी पढ़ें : जानें, कैसे नरेंद्रनाथ दत्त वैश्विक पटल पर स्वामी विवेकानंद बनकर उभरे - SWAMI VIVEKANANDA DEATH ANNIVERSARY

यह भी पढ़ें : स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर सीएम योगी सहित इन नेताओं ने किया नमन

स्वामी विवेकानंद का काशी ने नाता. (Video Credit-Etv Bharat)

वाराणसी : स्वामी विवेकानंद का जिक्र आते ही युवा भारत और युवा सोच की तस्वीर मानस पटल पर उभरती है. आज (4 जुलाई) स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर काशी से जुड़ी उनके जीवन के अभूतपूर्व और अहम पहलूओं की जिक्र जरूरी है. दरअसल स्वामी विवेकानंद के जीवन में काशी विशेष रहा है, क्योंकि काशी वह स्थान है जहां पर उनके जन्म से लेकर के मृत्यु तक की कहानी जुड़ी हुई है. काशी में स्वामी विवेकानंद से जुड़ीं ऐतिहासिक विरासतें हैं जो उनके विशेश्वर बनने से लेकर के स्वामी जी बनने तक की कहानी बयां करती हैं.

वाराणसी के अर्दली बाजार स्थित आईटी कॉलेज परिसर में मौजूद गोपाल विला स्वामी विवेकानंद के जीवन के अंतिम समय का साक्षी रहा है. अंतिम समय में स्वामी विवेकानंद ने यहां 39 दिन प्रवास किया था. बड़ी बात यह है कि आज यहां स्वामी जी की कोई विरासत नहीं बची. यहां चारों तरफ खंडहर, जंगल और बदहाली नजर आती है. उस समय यह विला बनारस के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक था. यहां स्वामी जी के शिष्यों का जमावड़ा लगता था. अब यहां शराबियों, जुआरियों का जमावड़ा होता है. हैरानी की बात यह है कि 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने संरक्षण के नाम पर शिलापट्ट लगा दिया गया, लेकिन आज तक उसका जीर्णोद्धार नहीं कराया गया.



गोपाल विला के संरक्षण की मांग कर रहे एडवोकेट नित्यानंद राय बताते हैं कि हमारे सहयोगियों ने 1996 में इस विला को संरक्षित रखने की मुहिम उठाई थी. लगभग 29 साल बीतने को हैं, लेकिन आज तक किसी ने इसकी सुधि नहीं ली है. स्थानीय से लेकर के प्रदेश तक के सभी जनप्रतिनिधिओं, मंत्रियों को पत्र लिखकर संरक्षण की मांग की जा चुकी है. सीएम योगी से भी मुलाकात की गई, लेकिन आज तक कोई पहल नहीं की. गई. हमारी यह मांग है कि इस जगह पर स्वामी विवेकानंद की स्मृतियों को संग्रहालय के रूप में संरक्षित किया जाए.




नाम के लिए लगा शिलापट्ट : संरक्षण के मुहिम की शुरुआत करने वाले गोविंद 'भैया जी' कहते हैं कि काशी से स्वामी विवेकानंद का एक अलग और गहरा लगाव रहा है. उन्होंने अपने जीवन में पांच बार काशी की यात्रा की और उस यात्रा के पड़ाव में अंतिम समय में वह गोपाल विला आकर के रुके थे. जहां उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी हुआ. जिसके बाद वह बैलूर मठ रवाना हो गए. स्वामी जी ने यहीं से साl चिट्ठियां अपने अनुयायियों और शिष्यों को लिखी थीं. जिसमें उन्होंने गोपाल विला की खूबसूरती का जिक्र भी किया था.

स्वामी जी की चिट्ठियों में बताया है कि यहां पर अमरूद व कई अन्य फलों के बगीचे हैं. कमल का पुष्कर तालाब है और विला भी बेहद भव्य और खूबसूरत है. यहां रहकर उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी हुआ. यहीं से स्वामी जी ने राम कृष्ण मिशन की शुरुआत की थी. हमें उम्मीद थी कि पीएम मोदी अपने प्रेरणा स्रोत की विरासत को सहेजने की पहल करेंगे, लेकिन अभी तक ऐसी कोई पहल नहीं हुई. नाम के लिए शिलापट्ट लगा दिया गया है.




नित्यानंद राय के अनुसार अपने पहले पत्र में उन्होंने काशी प्रवास के दौरान बौद्ध धर्म के ज्ञान के बारे में शिष्यों को बताया है. उन्होंने लिखा कि मैं काशी में अच्छा हूं, इसी तरह मेरा स्वास्थ्य सुधरता रहा तो मुझे बड़ा स्वास्थ्य लाभ होगा. इसी पत्र में उन्होंने गोपाल विला की भव्यता का भी जिक्र किया है. दूसरे पत्र में उन्होंने काशी के कलाकारों के प्रशंसा की है. तीसरे पत्र में उन्होंने अपनी भगिनी निवेदिता को आशीर्वाद देते हुए श्री रामकृष्ण सत्य को अपने जीवन का मार्गदर्शन मानकर आगे बढ़ने का निर्देश दिया है. चौथे पत्र में ब्रह्मानंद को प्रभु के निर्देशानुसार कार्य करने का निर्देश दिया है. साथ ही उन्होंने लिखा है कि कोलकाता और इलाहाबाद में प्लेग फैल चुका है, काशी में फैलेगा की नहीं मैं नहीं जानता. अपने 7वें और अंतिम पत्र में उन्होंने ब्रह्मानंद को पत्र का जवाब ना लिखने पर नाराजगी ज़ाहिर की और लिखा कि एक मामूली सी चिट्ठी लिखने में इतना कष्ट और विलंब! तो मैं चैन की सांस लूंगा, कौन जानता है कि उसके मिलने में कितने महीने लगते हैं. इसके बाद वह बेलूर मठ चले गए जहां 4 जुलाई को स्वामी जी का देहावसान हो गया.



नित्यानंद राय बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद जी के पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी को काफी समय तक कोई संतति नहीं हुई थी. इसको लेकर के वह लोग परेशान थे और काशी आए, जहां उन्हें किसी ने आत्म विशेश्वर मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने की सलाह दी. इसके बाद उनकी माता ने सिंधिया घाट पर गंगा किनारे आत्म विश्वेश्वर महादेव की पूजा अर्चना तप किया. जिसके बाद उन्हें 12 जनवरी 1863 को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने विशेश्वर रखा जो बाद में नरेंद्र और उसके बाद स्वामी विवेकानंद हो गया.


यह भी पढ़ें : जानें, कैसे नरेंद्रनाथ दत्त वैश्विक पटल पर स्वामी विवेकानंद बनकर उभरे - SWAMI VIVEKANANDA DEATH ANNIVERSARY

यह भी पढ़ें : स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर सीएम योगी सहित इन नेताओं ने किया नमन

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.