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UP में बिजली के निजीकरण के पीछे घोटाले की आशंका; संघर्ष समिति ने UPPCL से पूछे गंभीर सवाल

निजीकरण का विरोध कर रहे बिजलीकर्मियों को पंजाब, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर के अभियंताओं ने दिया समर्थन.

UP में बिजली के निजीकरण का विरोध.
UP में बिजली के निजीकरण का विरोध. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 18 hours ago

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में इन दिनों पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के निजीकरण की तैयारी पर जमकर विरोध दर्ज कराया जा रहा है. ऊर्जा विभाग से जुड़े संगठन निजीकरण को लेकर प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं. अब तक जिन स्थानों पर प्राइवेटाइजेशन किया गया, उससे विभाग को कितना नुकसान हुआ, ये तर्क भी प्रस्तुत किया जा रहा है. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पावर कारपोरेशन प्रबंधन पर कर्मचारियों को बीच में बर्खास्तगी और दमन का भय पैदा करके ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण करने का आरोप लगाया है. पहले कदम में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के नाम का खुलासा कर दिया गया है, लेकिन उद्देश्य पूरे ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण का है. समिति का कहना है कि प्रबंधन का झूठ बेनकाब हो चुका है, इसीलिए बर्खास्तगी की धमकी देकर डर का वातावरण बना रहा है. समिति के नेताओं का कहना है कि ऐसा भी पता चला है कि निजीकरण के पीछे भारी घोटाला है.

समिति ने यूपीपीसीएल प्रबंधन से पूछे कई गंभीर सवाल : संघर्ष समिति की तरफ से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि प्रबंधन को यह बताना चाहिए कि आगरा में फ्रेंचाइजी के साढ़े 14 साल के प्रयोग का क्या परिणाम निकला है? यह भी बताना चाहिए कि 31 मार्च 2010 तक का लगभग 2200 करोड़ रुपए का बकाया टोरेंट पावर कंपनी ने आज 14 साल से भी अधिक समय गुजर जाने के बाद पावर कारपोरेशन को क्यों नहीं दिया? प्रबंधन यह भी बताए कि टोरेंट पावर कंपनी और ग्रेटर नोएडा पावर कंपनी ने राज्य विद्युत परिषद के कितने कर्मचारियों को अपने यहां नौकरी में रखा? प्रबंधन यह कह रहा है कि टांडा और ऊंचाहार बिजली घर एनटीपीसी को पूरी तरह बेच दिए गए थे, जबकि ज्वाइंट वेंचर में एनटीपीसी में 50 प्रतिशत कर्मचारी रखे जाएंगे तो प्रबंधन यह भी बताए कि ज्वाइंट वेंचर कंपनी मेजा में भी है, ज्वाइंट वेंचर कंपनी घाटमपुर में भी है, ज्वाइंट वेंचर कंपनी बिल्हौर में भी है, इन कंपनियों में उत्पादन निगम के एक भी कर्मचारी को क्यों नहीं रखा गया है? पूछा है कि जब इन्हीं कर्मचारियों ने उत्पादन निगम और ट्रांसमिशन निगम को मुनाफे में ला दिया है तो यही कर्मचारी रहते हुए विद्युत वितरण निगम मुनाफे में क्यों नहीं लाया जा सकते? विद्युत वितरण निगम में घाटा लगातार बढ़ रहा है. घाटे की जिम्मेदारी क्या प्रबंधन की नहीं है. संघर्ष समिति ने कहा कि घाटे का जिम्मेदार प्रबंधन हटा दिया जाए तो एक साल में संघर्ष समिति वितरण निगमों को मुनाफे लाकर दिखा सकती है.

दो निगमों में 66 हजार करोड़ रुपए बकाया : समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में बिजली राजस्व का बकाया लगभग 66,000 करोड़ रुपए है. निजी कंपनियों की इसी पर नजर लगी हुई है. देश के अन्य प्रांतों में जहां पर भी फ्रेंचाइजी या निजीकरण हुआ है, निजी कंपनियों ने कहीं पर भी बिजली राजस्व के पुराने बकाया को पावर कारपोरेशन को वापस नहीं किया है. यह सब रिकॉर्ड पर है. उत्तर प्रदेश में भी टोरेंट पावर कंपनी ने 2200 करोड़ रुपए राजस्व बकाए का वापस नहीं किया. अब जो नई कंपनियां आएंगी, इसी बिजली राजस्व के 66,000 करोड़ रुपए के बकाए की बंदरबांट की लूट होने वाली है. कहा कि यह भी पता चला है कि जुलाई के महीने में बिजली क्षेत्र की एक बड़ी निजी कंपनी ने पावर कारपोरेशन के सामने पीपीपी मॉडल का प्रेजेंटेशन किया था. अब निजीकरण की योजनाओं की हर रोज जो घोषणा की जा रही है, वह निजी कंपनी की तरफ से दिए गए उसी प्रेजेंटेशन का हिस्सा है. इससे साफ है कि प्रबंधन की निजी कंपनियों से सांठगांठ है और निजीकरण के बाद आने वाले मालिक पहले ही तय कर लिए गए हैं. संघर्ष समिति ने इस संबंध में उपभोक्ता परिषद के खुलासे का समर्थन करते हुए मांग की है कि निजीकरण पर आमादा प्रबंधन को तत्काल हटाया जाए.

संविदा कर्मियों को हटाए जाने की निंदा: संघर्ष समिति के पदाधिकारियों राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, पीके दीक्षित, सुहैल आबिद, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो. इलियास, श्रीचन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, एके श्रीवास्तव, केएस रावत, रफीक अहमद, पीएस बाजपेई, जीपी सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय और विशम्भर सिंह ने कहा कि अभी कोई आंदोलन का नोटिस नहीं दिया गया है. निजीकरण के बारे में कर्मचारी और उपभोक्ताओं को जनसंपर्क कर अवगत कराया जा रहा है, लेकिन वाराणसी में संविदा कर्मियों की सेवा केवल मीटिंग में हिस्सा लेने के कारण बर्खास्त की गई है, जो निंदनीय है.

इन संगठनों ने दिया समर्थन : सोमवार को पंजाब राज्य बिजली बोर्ड इंजीनियर्स एसोसिएशन, जम्मू कश्मीर इलेक्ट्रिकल इंजीनियर ग्रेजुएट एसोसिएशन और उत्तरांचल पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर निजीकरण के निर्णय को वापस लेने की मांग की है और निजीकरण के विरुद्ध संघर्ष में उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी और अभियंताओं को पुरजोर समर्थन दिया है.

यह भी पढ़ें : UP की बिजली 20% तक होगी महंगी; प्रस्ताव बनकर तैयार, घाटे को दूर करने की कवायद

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में इन दिनों पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के निजीकरण की तैयारी पर जमकर विरोध दर्ज कराया जा रहा है. ऊर्जा विभाग से जुड़े संगठन निजीकरण को लेकर प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं. अब तक जिन स्थानों पर प्राइवेटाइजेशन किया गया, उससे विभाग को कितना नुकसान हुआ, ये तर्क भी प्रस्तुत किया जा रहा है. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पावर कारपोरेशन प्रबंधन पर कर्मचारियों को बीच में बर्खास्तगी और दमन का भय पैदा करके ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण करने का आरोप लगाया है. पहले कदम में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के नाम का खुलासा कर दिया गया है, लेकिन उद्देश्य पूरे ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण का है. समिति का कहना है कि प्रबंधन का झूठ बेनकाब हो चुका है, इसीलिए बर्खास्तगी की धमकी देकर डर का वातावरण बना रहा है. समिति के नेताओं का कहना है कि ऐसा भी पता चला है कि निजीकरण के पीछे भारी घोटाला है.

समिति ने यूपीपीसीएल प्रबंधन से पूछे कई गंभीर सवाल : संघर्ष समिति की तरफ से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि प्रबंधन को यह बताना चाहिए कि आगरा में फ्रेंचाइजी के साढ़े 14 साल के प्रयोग का क्या परिणाम निकला है? यह भी बताना चाहिए कि 31 मार्च 2010 तक का लगभग 2200 करोड़ रुपए का बकाया टोरेंट पावर कंपनी ने आज 14 साल से भी अधिक समय गुजर जाने के बाद पावर कारपोरेशन को क्यों नहीं दिया? प्रबंधन यह भी बताए कि टोरेंट पावर कंपनी और ग्रेटर नोएडा पावर कंपनी ने राज्य विद्युत परिषद के कितने कर्मचारियों को अपने यहां नौकरी में रखा? प्रबंधन यह कह रहा है कि टांडा और ऊंचाहार बिजली घर एनटीपीसी को पूरी तरह बेच दिए गए थे, जबकि ज्वाइंट वेंचर में एनटीपीसी में 50 प्रतिशत कर्मचारी रखे जाएंगे तो प्रबंधन यह भी बताए कि ज्वाइंट वेंचर कंपनी मेजा में भी है, ज्वाइंट वेंचर कंपनी घाटमपुर में भी है, ज्वाइंट वेंचर कंपनी बिल्हौर में भी है, इन कंपनियों में उत्पादन निगम के एक भी कर्मचारी को क्यों नहीं रखा गया है? पूछा है कि जब इन्हीं कर्मचारियों ने उत्पादन निगम और ट्रांसमिशन निगम को मुनाफे में ला दिया है तो यही कर्मचारी रहते हुए विद्युत वितरण निगम मुनाफे में क्यों नहीं लाया जा सकते? विद्युत वितरण निगम में घाटा लगातार बढ़ रहा है. घाटे की जिम्मेदारी क्या प्रबंधन की नहीं है. संघर्ष समिति ने कहा कि घाटे का जिम्मेदार प्रबंधन हटा दिया जाए तो एक साल में संघर्ष समिति वितरण निगमों को मुनाफे लाकर दिखा सकती है.

दो निगमों में 66 हजार करोड़ रुपए बकाया : समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में बिजली राजस्व का बकाया लगभग 66,000 करोड़ रुपए है. निजी कंपनियों की इसी पर नजर लगी हुई है. देश के अन्य प्रांतों में जहां पर भी फ्रेंचाइजी या निजीकरण हुआ है, निजी कंपनियों ने कहीं पर भी बिजली राजस्व के पुराने बकाया को पावर कारपोरेशन को वापस नहीं किया है. यह सब रिकॉर्ड पर है. उत्तर प्रदेश में भी टोरेंट पावर कंपनी ने 2200 करोड़ रुपए राजस्व बकाए का वापस नहीं किया. अब जो नई कंपनियां आएंगी, इसी बिजली राजस्व के 66,000 करोड़ रुपए के बकाए की बंदरबांट की लूट होने वाली है. कहा कि यह भी पता चला है कि जुलाई के महीने में बिजली क्षेत्र की एक बड़ी निजी कंपनी ने पावर कारपोरेशन के सामने पीपीपी मॉडल का प्रेजेंटेशन किया था. अब निजीकरण की योजनाओं की हर रोज जो घोषणा की जा रही है, वह निजी कंपनी की तरफ से दिए गए उसी प्रेजेंटेशन का हिस्सा है. इससे साफ है कि प्रबंधन की निजी कंपनियों से सांठगांठ है और निजीकरण के बाद आने वाले मालिक पहले ही तय कर लिए गए हैं. संघर्ष समिति ने इस संबंध में उपभोक्ता परिषद के खुलासे का समर्थन करते हुए मांग की है कि निजीकरण पर आमादा प्रबंधन को तत्काल हटाया जाए.

संविदा कर्मियों को हटाए जाने की निंदा: संघर्ष समिति के पदाधिकारियों राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, पीके दीक्षित, सुहैल आबिद, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो. इलियास, श्रीचन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, एके श्रीवास्तव, केएस रावत, रफीक अहमद, पीएस बाजपेई, जीपी सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय और विशम्भर सिंह ने कहा कि अभी कोई आंदोलन का नोटिस नहीं दिया गया है. निजीकरण के बारे में कर्मचारी और उपभोक्ताओं को जनसंपर्क कर अवगत कराया जा रहा है, लेकिन वाराणसी में संविदा कर्मियों की सेवा केवल मीटिंग में हिस्सा लेने के कारण बर्खास्त की गई है, जो निंदनीय है.

इन संगठनों ने दिया समर्थन : सोमवार को पंजाब राज्य बिजली बोर्ड इंजीनियर्स एसोसिएशन, जम्मू कश्मीर इलेक्ट्रिकल इंजीनियर ग्रेजुएट एसोसिएशन और उत्तरांचल पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर निजीकरण के निर्णय को वापस लेने की मांग की है और निजीकरण के विरुद्ध संघर्ष में उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी और अभियंताओं को पुरजोर समर्थन दिया है.

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