सरगुजा: छत्तीसगढ़ में कुपोषण के आंकड़ों पर नजर डालें तो 0 से 5 साल की उम्र के बच्चों में 19.38 फीसद बच्चे बौनेपन के कुपोषण से ग्रसित हैं. वहीं, 8.74 फीसद बच्चे दुर्बलता से ग्रसित हैं. 12.49 फीसद बच्चे कम वजन की समस्या से ग्रसित हैं. यानी कि ये भी कुपोषण की श्रेणी में हैं. ऐसे में कुपोषण मिटाने के लिए हर साल पोषण सप्ताह का आयोजन किया जाता है.
कुपोषण के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास: 1 सितंबर से पोषण सप्ताह शुरू होने जा रहा है. इस दौरान तमाम प्रयास किए जाते हैं ताकि कुपोषण खत्म करने को लेकर जागरूकता लाई जा सके. पहले कुपोषण आभाव के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में दिखता था, लेकिन अब ओवर ईटिंग के कारण कुपोषण का शिकार शहरी क्षेत्रों में देखने को मिलता है. सरगुजा जैसे आदिवासी अंचल में कुपोषण और एनीमिया का फैलाव हमेशा से अधिक रहा है.
क्या कहती हैं शिशु रोग विशेषज्ञ: इसे लेकर ईटीवी भारत ने मेडिकल कॉलेज विभाग के शिशु रोग विभाग के प्रमुख डॉ. सुमन से बातचीत की. उन्होंने बताया, "सरगुजा में आदिवासी समाज की संख्या अधिक है. इनमें कुछ लोग जंगल, पहाड़ों पर रहते हैं. जैसे पंडो, पहाड़ी कोरवा इनका डाइट सीमित होता है. ये आहार तो लेते हैं, लेकिन कई बार ऐसी चीजें नहीं खा पाते जिनमें से आयरन की कमी दूर हो और उनमें एनीमिया देखा जाता है. ये हेल्थ को लेकर अवेयर नहीं होते. इस कारण कुपोषण और एनीमिया देखने को ज्यादा मिलता है."
"पोषक तत्वों की कमी से भी एनीमिया होता है. जैसे बच्चियों में माहवारी की समस्या है. अगर ब्लड अधिक जा रहा है या कम जा रहा है तो इसमें अवेयरनेस की कमी है. वो जाकर इलाज नहीं कराते हैं. बाद में जाकर वो बच्ची कुपोषण का शिकार तो होती ही है. साथ ही प्रेग्नेंसी के बाद उसका बच्चा भी कुपोषित होता है. अगर शुरू में ही इसका ध्यान रखा जाए तो एक प्रकार के कुपोषण से बचा जा सकता है." -डॉ सुमन, एचओडी, शिशु रोग विभाग
शहरी क्षेत्रों में हो रहा कुपोषण: डॉ. सुमन ने बताया, "पोषित होना मतलब सही डाइट. अगर कुछ भी आपने गलत खाया तो वो कुपोषण की श्रेणी में आयेगा. सिर्फ दुबला पतला होना ही कुपोषण नहीं है. मोटा होना भी कुपोषण है. गांव में कुपोषण से लोग दुर्बल होते थे, लेकिन आजकल अर्बन सिटी में भी कुपोषण देखा जा रहा है. ये कुपोषण बैठे-बैठे, जंक फूड खाने से और अधिक खाने से हो रहा है. कुपोषण को लेकर अवेयरनेस ग्रामीणों क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी जरूरी है. ये जानना जरूरी है कि जो हम खा रहे हैं, वो सही है या नही."
इन चीजों का करें सेवन: डॉ. सुमन ने आगे कहा, "नेक्स्ट जनरेशन के लिए भी हमे सोचना चाहिए, क्योंकि एक सुपोषित माता ही सुपोषित बच्चा पैदा कर सकती है. अगर मां कुपोषित होगी तो बच्चा भी कुपोषित होगा. इसलिए जरूरी है कि माताएं अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें, लड़कियां कम उम्र से ही अपना स्वास्थ्य सही रखें. हर उम्र में हर प्रकार के न्यूट्रिशन के लिए बैलेंस डाइट जरूरी है. सही मात्रा में खाये, सही चीज खायें, सामान्य खान पान से हम अपने एनीमिया को सही रख सकते हैं, जिसमे गुड़, मूंगफली, चना, और हरी साग सब्जी खा सकते हैं."
इन लक्षणों के बाद डॉक्टर से करें संपर्क: चिकित्सक की मानें तो जो 6 महीने से कम उम्र के नवजात बच्चे हैं, जो मां का दूध या किसी अन्य दूध के सहारे रहते हैं, उनमें 4 हफ्ते बाद एनीमिया होने के चांसेज बढ़ जाते हैं, क्योंकि मां के दूध में आयरन का सोर्स नहीं होता है. 4 हफ्ते बाद आप बच्चे को आयरन का ड्रॉप दे सकते हैं. जैसे ही बच्चा 6 माह का हो जाए आप उसे खाना खिलाएं, जिससे उसकी न्यूट्रिशन वेल्यू पूरी हो जाएगी. इसे पहचानने के लिए देखें कि कभी-कभी बच्चे खाना नहीं खाते हैं. कई बार चॉक मिट्टी खाने की आदत होती है, ये एनीमिया के लक्षण हैं. इन सबको हम गौर करें और 6 महीने के अंदर हॉस्पिटल का विजिट करें और डॉक्टर की सलाह जरूर लें तो बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सकता है.
नोटः यहां प्रकाशित सारी बातें चिकित्सक की ओर से कही गई बातें है. ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता.