जोधपुर: राजस्थान के जोधपुर को सन सिटी के साथ साथ ब्ल्यू सिटी भी कहा जाता है. इसकी वजह भीतरी शहर का ब्रह्मपुरी का क्षेत्र जहां गलियों में बने मकान नीले रंग से पोते हुए हैं. इसका दायरा यूं तो घटा है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में इसे वापस बढ़ाया जा रहा है. इसी कड़ी में भीतरी शहर के सिटी पुलिस से पचेतिया हिल तक की गलियों को नीला किया जा रहा है. जिसके चलते यह क्षेत्र पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है. क्षेत्रीय पार्षद धीरज चौहान ने इन गलियों में जगह-जगह पर राजस्थानी संस्कृति से जुड़े मांडने भी मंडवाए हैं. इन दिनों चल रही टूरिस्ट सीजन में यह क्षेत्र पसंद बनता जा रहा है.
हर तरफ पेंटिंग से हर कोई अभिभूत : धीरज चौहान बताते हैं कि नगर निगम के सहयोग से दिवारों पर नीले रंग के साथ आकर्षक पेंटिंग को देख पर्यटक काफी आकर्षित होते हैं. हमने राजस्थानी संस्कृति को बनाए रखने का प्रयास किया है. पेंटिंग का काम भी चल रहा है. यहां घूमने आने वाले पर्यटक भी पेंट करने से खुद को नहीं रोक पाते हैं. चौहान ने बताया कि हमने गलियों के खाली कोनों को भी आकर्षक बनाया किया हैं. हम हेरिटेज बना रहे हैं, इसके लिए लोगों का सहयोग लिया है. डेकोरेट कर सेल्फी प्वाइंट बनाए हैं.
कैसे पहुंचे इस इलाके में : जोधपुर आने वाले पर्यटक यहां की पुरानी बावड़ियों को जरूर देखते हैं, जिन्हें स्टेप वेल कहा जाता है. तूरजी के झालरे से पचेटिया हिल का इलाका शुरू होता है. ऑटो के माध्यम से यहां आसान से पहुंचा जा सकता है. कारें यहां नहीं जाती हैं. इसके बाद ब्ल्यू सिटी का एहसास होने लगता है. इसके अलावा पचेटिया हिल के उपर जाकर शहर की प्राचीन ब्रह्मपुरी बस्ती नजर आती है, जिसके अधिकांश मकान आज भी नीले हैं, जो मेहरानगढ की तलहटी में बसी है. यह विदेशी पर्यटकों के लिए पसंदीदा जगह है.
इसलिए शुरू हुआ नीला रंग : बताया जाता है कि जोधपुर रेगिस्तान के बीच में बसा शहर था. मेहरानगढ़ की पहाड़ी की तलहटी के लोगों ने घरों को ठंडा रखने के लिए यह जतन किया था. चूने में नील मिलाकर घरों की पुताई शुरू की गई. कहा जाता है कि पहले यह चलन ब्रह्मपुरी में था, जहां श्रीमाली ब्रह्मपुरी निवास करते हैं. इसके बाद यह परंपरा सभी लोगों ने अपना ली. किसी समय में परकोटे के भीतर सभी घर नीले होते थे, लेकिन समय के साथ इसमें कमी आई है, लेकिन फिर उन इलाकों में लोग घरों को नीला ही करते जहां पर्यटकों की आवाजाही ज्यादा होती है.
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि किसी समय में मिट्टी के घर बनते थे. मिट्टी में कीड़ा लगने से घर गिर जाते थे. इसे रोकने के लिए मोर थोथा का उपयोग किया गया, जिसका रंग नीला होता है. उससे चलन हुआ जो बाद में पक्के घरों पर भी होने लगा. दरअसल, मोर थोथा एक तरह का केमिकल होता है जो पत्थर से निकलता है. इसे पानी में घोलने से नीला रंग आता है.