इंदौर। मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में घटते मतदान प्रतिशत के बीच पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा है कि 'इंदौर में ये उम्मीदवार जीते जिताए हैं, ये सोचकर मतदाता को बैठ नहीं जाना है. ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण चुनाव है. सुमित्रा महाजन ने इस बेबाक बातचीत में बीजेपी में कांग्रेस के संक्रमण पर बेबाकी से जवाब दिया. उन्होंने कहा कि किनारे बैठे लोग इस बात की चिंता करते हैं, नदी में मिल रहे गंदे नालों की सफाई कैसे होगी. उन्होंने पार्टी में इंटस्ट सफलता पाने वालों को बुलबुला बताया और कहा कि टिकते वही हैं, जो विचारधारा के साथ संघर्ष करते हैं. सुमित्रा महाजन ने साफगोई से उन कार्यकर्ताओं का दर्द भी बयां किया. जिन्होंने केवल संघर्ष किया और उन्हें कुछ नहीं मिल पाया.
जब ताई से कहा गया, चुनाव के लिए हमसे पैसा मत मांगना
इंदौर लोकसभा सीट पर आठ बार की सांसद रहीं देश की पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और वरिष्ठ नेत्री सुमित्रा महाजन बताती हैं अपनों को भी जो कार्यकर्ता हैं उनसे कहना पड़ता है कि मैं ये नहीं कर सकती, वो भी कभी नाराज होता है, लेकिन मैं जो नहीं कर सकती, नहीं कर सकती. मेरे तरफ से मदद कर दूंगी, जो मैं नहीं काम कर सकती वो नहीं करती. वे बताती हैं एक बार ऐसा हुआ कि लगा कुछ कार्यकर्ता टूट रहे हैं, लेकिन बाद में ये अनुभव हुआ मैं अडिग रही मेरे विचारों से. पार्टी के विचारों से काम करूंगी, ये उनको भी बाद में समझ आ गया.
सुमित्रा महाजन बताती हैं कि मेरे घरवालों ने कह दिया था कि तुम्हारा राजनीति का एक भी पैसा हमें नहीं चाहिए. हमसे कभी राजनीति के लिए पैसा नहीं मांगना. ना राजनीति का पैसा घर में लाना. हम मिडिल क्लास लोग हैं. हम तुम्हारी वैसी कोई मदद नहीं कर सकते. मेरी सास कहती थी तू घर में दो काम कम कर कोई दुख नहीं, लेकिन पैसे से कोई मदद नहीं. सुमित्रा महाजन कहती हैं, कार्यकर्ता को कभी बुरा लगता था, लेकिन कुछ ही थोड़े से वक्त जाने के बाद कार्यकर्ता वापिस आता था कि आप सही है. फिर ये भावना बन गई कि इंदौर में ताई के पास गलत काम के लिए नहीं जाना.
तब हारने के लिए चुनाव लड़ीं
आठ बार की सांसद सुमित्रा महाजन उस वाकये का जिक्र करती हैं कि जब उन्हें विधानसभा का चुनाव हारने के लिए लड़ाया गया. कहा गया कौन अच्छा लड़ सकता है. सुमित्रा महाजन लड़ सकती हैं, आव्हान स्वीकार करते हैं. मध्य प्रदेश के उस समय के गृह मंत्री के खिलाफ यह मुकाबला था. पैसा भी नहीं था, लेकिन कार्यकर्ता एक जुट हो गए, लेकिन उस चुनाव में मेरी हार भी ऐसी हो गई कि सामने खड़े उम्मीदवार को कहना पड़ा कि इस महिला ने मेरी जीत को भी दो तीन हजार के मार्जिन पर ला दिया. यानि मैं हार कर भी चुनाव जीत गई. फिर 1989 में प्रकाश चंद्र सेठी के सामने टिकट दिया. 1989 से जीतना शुरु हो गया. तो आठ बार लगातार चुनाव जीता.
राजनीति में तुरंत कुछ नहीं होता
सुमित्रा महाजन राजनीति के शार्ट कट पर कहती हैं तुरंत का दान महापुण्य है. ऐसा कहते हैं, लेकिन तुरंत कुछ नहीं मिलता. हम कोशिश करते हैं लगता है उस समय हमें मिल गया. एक बार टिकट मिला कुछ करें होंगे, इधर उधर करके मिल गया टिकट. लेकिन क्या जीत को कंटीन्यू रख पाए. मैंने आठ बार चुनाव जीता . आज भी इंदौर के लोग कहते हैं कि ताई को जिताएंगे.
जब सुमित्रा बोली मेरी पार्टी को क्या हो गया
सुमित्रा महाजन कहती हैं ऐसे कई कार्यकर्ता हैं. जिन्होंने पूरी जिंदगी खपा दी. पार्टी में कुछ नहीं मिला. इधर से उधर चले गए. चार जगह घूम कर वापिस आ गए उन्हें महत्व मिल गया, पर इससे असंतोष नहीं होता, दुख होता है कि मेरी पार्टी को क्या हो गया. ऐसा क्यों हो रहा है, लेकिन जो संघर्ष करते हैं, उनको बढ़ाया भी जाता है. मेरे समय बहुत से सीनियर थे. उन्होंने कहा कि इसे लोकसभा लड़ाना चाहिए ये नी कि मेरे आगे चली गई, ऐसा कभी नहीं कहा. वो समझते थे कि काम तो हम सभी कर रहे हैं, ये दो कदम आगे बढ़ गई.
तुरंत सफलता पानी का बुलबुला
सुमित्रा महाजन पार्टी में अचानक नेताओं को दिए जा रहे मौके पर कहती हैं, आपने पानी में बुलबुले उठते देखे होंगे कई बार दबुलबुले बड़े हो जाते हैं. कई बुलबुले बनके बड़ा बुलबुला बन जाता है, लेकिन बुलबुले टिकते दिखे क्या कोई नया आ भी जाता है. जो विचारधारा समझता है, उसके अनुरुप काम करता है. वही टिक पाता है.
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नदी में आ रहे गंदे नालों का प्रवाह रोकना हमारी जिम्मेदारी
सुमित्रा महाजन बीजेपी में थोक के भाव आ रहे कांग्रेसियों को लेकर टिप्पणी में कहती हैं हमारी जिम्मेदारी है अगर मैं चाहती हूं, मेरी पार्टी सही पार्टी बनी रहे ये प्रयास मुझे ही करना पड़ेगा ना. वे कहती हैं कि जब नदी का प्रवाह बढ़ता है. कुछ गंदे नाले आकर मिलते हैं. प्रवाह गलत हो जाता है तब किनारे बैठ के तपस्या कर रहे उन्ही को सोचना पड़ता है कि साफ करूं.