गया: बिहार के गया के रानीगंज की सैंकड़ों महिलाएं सेनेटरी पैड बनाकर प्रति माह हजारों रूपये कमा रही हैं. क्षेत्र के भौगोलिक और सामाजिक परिवेश में सेनेटरी पैड बनाना बड़ी बात है. आज भी यहां की महिलाएं सेनेटरी पैड लेने में संकोच ही नहीं बल्कि वह इस पर बात करना भी पसंद नहीं करती हैं. रानीगंज का क्षेत्र पिछड़ा और नक्सल प्रभावित है लेकिन पिछले कुछ सालों से महिला सशक्तिकरण को लेकर इसने तेजी से उन्नति की है.
हर दिन बनता है 7 हजार सेनेटरी पैड: रानीगंज में महिलाएं सेनेटरी पैड बनाकर पैसे कमा रही हैं. यहां हर रोज 7 हजार से अधिक सेनेटरी पैड बनाएं जाते हैं. इस काम से सिर्फ इमामगंज, रानीगंज क्षेत्र की 100 से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं. इस काम में समन्वय तीर्थ संस्था ने भी सहयोग किया है. वहीं यहां बनने वाले सेनेटरी पैड की खपत ग्रामीण क्षेत्र में अधिक होती है.
बनाया गया 'आरोग्य सखी' समूह: जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर इमामगंज प्रखंड में रानीगंज बाजार है. यहां समन्वय तीर्थ संस्था ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक कार्य भी करती है. संस्था ने ही सेनेटरी पैड बनाने की शुरुआत इस क्षेत्र में की थी. समन्वय तीर्थ संस्था पैड बनाने में सहयोग करती है लेकिन इस काम को संस्था ने स्थानीय महिलाओं को ही सौंप दिया है. इसके लिए महिलाओं का एक समूह 'आरोग्य सखी' बनाया है. जो सेनेटरी पैड बनाकर ग्रामीण महिलाओं को देती हैं और वह उसे गांव-गांव जाकर बेचती हैं.
300 गांव में फैला है काम: महिलाएं रिलैक्स सेनेटरी पैड के नाम से पैड बनाती हैं. इसे बनाने से लेकर बेचने में 150 महिलाएं जुड़ी हैं. एक महिला पर दो गांव में पैड बेचने की जिम्मेदारी होती है, इस तरह से 300 गांव में पैड की सप्लाई की जाती है. हर रोज लगभग 7000 पैड बनते हैं, एक पैड की कीमत 7 रुपये है, एक पैकेट में 6 पिस पैड होता है. वहीं पूरा पैकट 35 से 42 रूपये में बिकता है.
कितनी होती है एक महिला की कमाई?: एक महिला हर रोज 300 से 500 रुपये का पैड बेचती है. वहीं एक महीने में एक महिला की आय 4 हजार से 7 हजार रुपये तक होती है. प्रिया कुमारी ने बताया कि प्रति माह 4 हजार रुपये से अधिक आमदनी करती हैं. जिससे उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन कराया है. पिछले एक साल से वो काम कर रही हैं. इसी की आमदनी से वो आगे अपनी पढ़ाई कर रही हैं.
"समाज में सेनेटरी पैड को लेकर जागरूकता नहीं है, देहात की महिलाएं बात करने से हिचकिचाती है लेकिन काउंसलिंग के बाद मेरी बातों को समझती हैं. अब तो जिन क्षेत्रों में मेहनत की थी वहां की महिलाओं को समझाने में समस्या नहीं होती है."-प्रिया कुमारी, आरोग्य सखी
सेनेटरी पैड खरीदने में होती है कई समस्या: प्रिया कुमारी ने कहा कि महिलाएं घर के पुरुषों से सेनेटरी पैड लाने के लिए कहने में संकोच करती हैं. वह गांव देहात में जाकर दुकानों से खरीद नहीं पाती हैं. हालांकि अब भी गांव देहात की अधिकतर दुकानों में सेनेटरी पैड नहीं बिकते हैं. गांव के बाजार में कहीं अगर मेडिकल शॉप है भी तो वहां तक महिलाएं पहुंच नहीं पाती हैं.
पैड बनाने के लिए लगी लाखों की मशीन: संस्था के सचिव ओम सत्यम त्रिवेदी ने बताया कि मैनुअल और इलेक्ट्रिक की तीन मशीनें लगी हैं. एक मशीन 6 लाख की है. जिससे प्रोडक्शन भी 7 हजार से अधिक होता है. संस्था को इससे कोई फायदा नहीं है. इस कार्य को महिलाएं ही करती हैं, उनका मकसद सिर्फ यह है कि महिलाएं संगीन बीमारियों की जद में नहीं आएं. उधर गांव की महिलाओं को जागरूक करना मुख्य उद्देश्य है.
"इसे बनाने से लेकर बेचने में 150 महिलाएं जुड़ी हैं. एक महिला पर दो गांव में पैड बेचने की जिम्मेदारी होती है, इस तरह से 300 गांव में पैड की सप्लाई की जाती है. हर रोज लगभग 7000 पैड बनते हैं. गांव में जागरूकता अभियान की जरूरत है, सेनेटरी पैड को सरकारी संस्थानों के माध्यम से बाजार भी उबलब्ध कराई जाए."-ओम सत्यम त्रिवेदी, संस्था के सचिव
स्वरोजगार से जोड़ना है उद्देश्य: बता दें कि मुख्य उद्देश्य यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं खासकर किशोरियों को पर्सनल हाइजीन से अवगत कराया जा रहा है. वहीं अर्चना कुमारी ने बताया की अच्छे क्वालिटी का सेनेटरी पैड का निर्माण किया जा रहा है. जिससे साइड इफेक्ट का खतरा न के बराबर होगा, इस में एलोवेरा का उपयोग होता है, एलोवेरा से कई बीमारियों को रोकने में मदद मिलती है.
"हम लोग इस पैड को बनाते हैं. इस में कॉटन का उपयोग नहीं करते हैं. हमारे यहां से कई महिलाएं खरीद कर ले जाती हैं. इस कार्य में मेरे पति का भी सहयोग होता है. वहीं घर बैठे अगर कमाई हो तो किस को बुरा लगेगा." -अर्चना कुमारी, आरोग्य सखी
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