पटना: सोमवार को बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 1239 दारोगा को नियुक्ति पत्र दिया. इसमें तीन ट्रांसजेंडर भी शामिल रहे. इसमें दो ट्रांसमैन हैं और एक ट्रांस वुमेन है. कार्यक्रम में मंच पर पहले ट्रांसमैन रोनित झा को उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने नियुक्ति पत्र सौंपा. रोनित ने बचपन से लड़की का जीवन जिया है और लड़कियों के बीच में रहे हैं.
ट्रांसमैन रोनित बने दारोगा: रोनित झा का सफर छात्र संघ की राजनीति से बिहार दारोगा तक का रहा है. छात्र संघ की राजनीति में उन्होंने अध्यक्ष पद का भी चुनाव लड़ा है. रोनित ने मास्टर्स तक की पढ़ाई बतौर लड़की की है. मगध महिला कॉलेज से उन्होंने स्नातक किया है और इस दौरान वह कॉलेज में काउंसलर भी रही हैं.
मास्टर्स तक बतौर लड़की पढ़ाई: इसके बाद पटना विश्वविद्यालय के ही दरभंगा हाउस से हिस्ट्री में मास्टर्स की है. इस दौरान उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा. पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान रोनित झा का नाम मानसी झा हुआ करता था. एनएसयूआई छात्र संघ से राजनीति शुरू की और जब अध्यक्ष पद के लिए मानसी का नाम नहीं गया तो मानसी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और अच्छी खासी वोट हासिल की.
परिवार का पूरा सपोर्ट: रोनित झा मूल रूप से सीतामढ़ी जिले के रहने वाले हैं और अपने माता-पिता के इकलौते संतान हैं. स्कूली शिक्षा सीतामढ़ी से ही हुई है और फिर बाद में वह आगे के अध्ययन के लिए पटना आ गये. रोनित ने बताया कि उनके जीवन में बहुत सारी प्रॉब्लम आई. लेकिन उनके मम्मी पापा ने उन्हें पूरा सपोर्ट किया.
"मैं एक लड़की थी, लेकिन मुझे यह पता था कि मैं लड़की नहीं हूं और यह मैं बताना चाहता थे. मैंने अपने परिवार को बताया और परिवार ने सपोर्ट किया जिसके बाद मैंने खुलकर अपनी पहचान एक ट्रांसमैन के तौर पर बताई."- रोनित झा, ट्रांसमैन दारोगा
"फाइनेंशली एंपावर्ड होना महत्वपूर्ण': रोनित झा ने बताया कि वह मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं और जब उन्होंने अपनी पहचान सार्वजनिक की तो उनके लिए फाइनेंशली एंपावर्ड होना जरूरी हो गया. फाइनेंशली एंपावर्ड होने के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी की तैयारी करने का निर्णय लिया और इसमें परिवार ने पूरा सपोर्ट किया. उन्होंने खुद से ही रूटिंग तैयार किया और सिलेबस के अनुसार तैयारी शुरू की.
"नियुक्ति पत्र मिलने से मैं बहुत ज्यादा खुश हूं. इसके लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद देना चाहता हूं. मुझे गर्व होता है कि मैं उस प्रदेश में रहता हूं जहां ट्रांसजेंडर को भी सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी मिलती है."- रोनित झा, ट्रांसमैन दारोगा
'शुरू में लोगों ने किया अजीब व्यवहार': रोनित ने बताया कि वह अपने माता-पिता के इकलौते संतान हैं और जब उन्होंने अपनी पहचान एक ट्रांसमैन के तौर पर सार्वजनिक की तो लोग उन्हें अजीब नजर से देखने लगे. उन्होंने कहा कि वह जिन भी लोगों को अपने बारे में बताता थे, लोग बहुत ही अलग तरीके से उन्हें देखते और व्यवहार किया करते थे. लोगों के बीच में खड़े होते थे तो लोग उन्हें इस कदर से देखते थे कि जैसे कोई अजूबा या एलियन उनके बीच खड़ा है.
"जब मैंने अपनी पहचान सार्वजनिक की तो इसका नुकसान मेरे पेरेंट्स को हुआ. लोगों ने मेरे पेरेंट्स को बहुत टॉर्चर किया. लोगों को यह बात पता चली तो लोग कहने लगे कि सरकारी नौकरी करने के लिए ट्रांसजेंडर बन गई. लेकिन पेरेंट्स मेरे लिए काफी सपोर्टिव रहे हैं. मेरी आइडेंटिटी रिवील होने के बाद भी उन्होंने मेरा सपोर्ट नहीं छोड़ा. मुझ जैसे लोगों को एक फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बहुत ज्यादा जरूरी है जो इस नौकरी से मुझे मिली है."- रोनित झा, ट्रांसमैन दारोगा
'परिवार को होती है प्रताड़ना': रोनित ने बताया कि उनकी मां सीतामढ़ी में ही नौकरी करती है. वहां पर गांव के लोगों ने उन्हें बहुत ज्यादा परेशान किया. उनको बोला जाता था कि आपका बच्चा किन्नर है, लालच के लिए नौकरी ले लिया. उन्होंने बताया कि उन लोगों की सर्जरी काफी ज्यादा कॉस्टली होती है.
सर्जरी के बाद कैसा महसूस होता है?: मानसी से रोनित बने दारोगा ने बताया कि सर्जरी के बाद ऐसा फील होता है कि हम एक ऐसी बॉडी में थे जो हमारा है ही नहीं. सर्जरी के बाद अब उन्हें जो शरीर मिला है, लगता है कि यह उनका अपना शरीर है जैसे वह हैं. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार के जैसे अन्य राज्यों को भी पहल करनी चाहिए. सभी राज्यों को अपने यहां नौकरियों में ट्रांसजेंडर के लिए सीटें आरक्षित करनी चाहिए.
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