पटना : पैसे के लिए सपने देखना या सपने पूरे करने के लिए पैसे का होना कितना जरूरी है? यह अहम सवाल है. इस सवाल का जवाब हर किसी के पास नहीं हो सकता है. लेकिन जिन्होंने सपना देखा और उस सपने को पूरा करने के लिए पैसे की जरूरत को बिल्कुल नकार दिया, ऐसे एक शख्स से हैं फर्नीचर की लीडिंग ब्रांड सटनर के मालिक चंदन कुमार झा.
चंदन कुमार झा ने जब अपना स्टार्टअप शुरू करने की सोची थी तो उनके सपने बहुत बड़े थे लेकिन, उनके जेब में एक फूटी कौड़ी नहीं थी. अपनी उद्यमिता और मेहनत के बदौलत उन्होंने आज 100 करोड़ रुपए की कंपनी खड़ी कर ली है. उनके साथ सैकड़ों लोग अब काम कर रहे हैं.
चंदन कुमार बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले हैं. शुरुआती पढ़ाई उनकी बिहार में हुई. फिर वह दिल्ली चले गए और फिर ऊंची पढ़ाई के लिए विदेश भी गए. अब आप यह सोच रहे होंगे कि इतना सब कुछ इन्होंने कैसे कर लिया? तो, उसके पीछे एक बड़ी सोच और लगन थी. स्कॉलरशिप लेकर उन्होंने अपनी ऊंची पढ़ाई पूरी की.
देश की मिट्टी से जुड़े रहे : चंदन झा चाहते तो विदेश में रहकर लाखों के पैकेज पर काम करते और विदेश में ही बस जाते. लेकिन इन्होंने एक फैसला किया कि मुझे अपना कुछ करना है और अपनों के बीच में रहकर करना है. तब स्वदेश लौटे और भारत में इन्होंने सटनर की नींव रखी. अब बिहार में भी अपने प्रोडक्ट की नींव रख रहे हैं. बिहार बिजनेस कनेक्ट में इन्होंने बिहार सरकार के साथ 20 करोड़ के एमओयू पर साइन किया है.
'बड़े सपने देखना जरूरी है?' : ईटीवी भारत से बात करते हुए चंदन कुमार बताते हैं पैसा एक मीडियम है ग्रो करने का, पैसा ही एक मीडियम नहीं है ग्रो करने का. बहुत लोग ऐसे होते हैं जिनके पास बहुत पैसे हैं लेकिन, उनको क्या करना है, उसके बारे में उनको नहीं पता है. मेरा खुद का मानना है कि पैसा पूरे ग्रो का एक पार्ट है. आपका विजन अच्छा है, आपको ड्रीम देखना अच्छा आता है तो पैसा उसमें आपको हेल्प करेगा. ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ.
मैं बिहार से हूं, बिहार के जो लोग होते हैं वो एक छोटी सी दुनिया से बाहर निकलते हैं. मैं भी एक ऐसे ही छोटी सी दुनिया से बाहर निकला. हमारे पास सबसे बड़ी चीज हमारे विजन होते हैं, हमारा ड्रीम होता है. देखिए, आईएएस ऑफिसर क्यों बड़ा बन पाते हैं. उन्हें पता होता है कि ड्रीम के बदौलत ही वह आगे बढ़ पाएंगे. वह मेहनत करते हैं, और आगे पढ़ते हैं. हमारे साथ भी वही हुआ.
मैंने काफी सपने देखे, मेरी नानी चाहती थी मैं आईएएस बनूं, लेकिन मुझे एंटरप्रेन्योर बनना था. अच्छी पढ़ाई की वजह से उस विजन को पूरा करने में मुझे हेल्प मिला. मेरा यह मानना है और मैं उन तमाम बच्चों को बोलना चाहूंगा, जो बड़े सपने देखते हैं, आजकल फैशन है ड्रॉप आउट का, कॉलेज नहीं जाकर काम करने का.
''मेरा मानना है कि मैं ओल्ड बुक स्टाइल का व्यक्ति हूं, एक अच्छी पढ़ाई बहुत जरूरी है. अच्छी जगह से पढ़ते हैं, आपके विजन को, आपके सपनों को एक आयाम मिलता है और लोग आपको कैपेबल मानते हैं.''- चंदन कुमार झा, उद्योगपति
'चाहता तो विदेश में बस जाता' : ईटीवी भारत ने पूछा कि आप एक मिडिल क्लास फैमिली से हैं, आपके पिता बैंकर थे, जो व्यवस्था थी वह मिडिल क्लास की ही थी. उसमें से आपने कैसे सपने देखने शुरू कर दिए. चंदन कुमार बताते हैं कि आप जैसे जैसे बड़े होते हैं बाकी लोगों को देखते हैं, कुछ लोगों से आप इंस्पायर होते हैं, पहले सोर्स ऑफ इंप्रेशन वह लोग होते हैं, जो आपके अगल-बगल होते हैं.
मेरी फैमिली में सिखाया गया है कि आप हमेशा आगे बढ़ो, अच्छा करो, समाज के लिए अच्छा करो, मेरी कहानी बहुत सिंपल है. मैं नानी के साथ सीतामढ़ी में रहा हूं. नानी नाना ने, सब लोगों ने सिखाया कि एक अच्छी पढ़ाई करो, ग्राउंडेड रहो, बड़े सपने देखो, उन्होंने पढ़ाई कराने में कोई कसर नहीं छोड़ा.
मैंने दसवीं तक सीतामढ़ी में पढ़ाई की. मैं 11वीं और 12वीं के लिए दिल्ली चला गया. इंजीनियरिंग करने के लिए मैं बेंगलुरु चला गया. वहां से मैकेनिकल इंजीनियरिंग किया. उसके बाद मैं इंग्लैंड चला गया, वहां से मैने मास्टर्स किया. वहां ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में मास्टर किया था.
मैं चाहता तो वहां एक अच्छी कार कंपनी में जॉइन कर सकता था और छह डिजिट की सैलरी ले सकता था. लेकिन, जब मैं यूके में पढ़ाई कर रहा था तो कुछ अच्छे एंटरप्रेन्योर के मॉडल थे. मुझे अपनी एबिलिटी को दिखाने का मौका मिला. मुझे लगा कि मैं एक अच्छा लीडर बन सकता हूं. मैं एक जॉब क्रिएटर बन सकता हूं.
मेरे अच्छे ग्रेड थे तो, मैं स्कॉलरशिप में बैंकोवर चला गया. वहां से मैंने एमबीए किया. एमबीए खत्म करने के बाद मेरे अंदर जो कीड़ा थी, एंटरप्रेन्योर बनने की वो और बढ़ गयी. डबल मास्टर करने के बाद मुझे लगा कि मैं अपनी फैमिली के साथ इंडिया में रहूं. और यही मैं काम करूं. उनके दुख सुख में मैं साथ रहूं. ऐसा नहीं हो कि मैं सिर्फ दिवाली में आऊं, 10 दिन रहकर चला जाऊं. फिर मैं इंडिया आ गया और इंडिया आकर मैंने अपनी कंपनी शुरू की.
ईटीवी भारत ने पूछा कि ठीक है, यह कहानी तो आपकी है कि आपने अपनी पढ़ाई स्कॉलरशिप से पूरी कर ली लेकिन, बिजनेस शुरू करने के लिए पैसे की जरूरत होती है वह कैसे जुगाड़ हो पाया? चंदन कुमार बताते हैं कि देखिए, एंटरप्रेन्योरशिप में पहली चीज जरूरी है पैशन. पैशन को कैसे आप सामने वाले को कन्वेंस कर पाते हैं.
'मैंने लो बजट पर काम शुरू किया' : जब मैं अपना काम करना शुरू किया, मैंने लो प्राइस मॉडल पर काम शुरू किया. मुझे याद है कि पहले 3 साल मेरे फैक्ट्री में वॉशरूम भी नहीं था. जो मेरे क्लाइंट मुझसे मिलने आते थे, उसमें विदेशी भी होते थे तो मैं उनको मीटिंग से पहले मैकडोनाल्ड लेकर जाता था कि वॉशरूम वगैरा वहां यूज कर सकें.
शुरू के 3 साल मैंने बहुत ही लो सैलरी, लो बजट पर काम किया. मैंने अपने कॉस्ट को बहुत लो रखा. खुद मैंने सब कुछ किया, डिलीवरी किया, पैकिंग करता था, क्लाइंट का आर्डर लेना, मैंने मल्टी टास्किंग काम किया. देखिए, जब आप अपनी वेंडर के सामने अपने सपनों को बताते हैं तो, वह आपकी रियल स्टेकहोल्डर होते हैं. जो क्लाइंट हैं उनके रिक्वायरमेंट के मुताबिक आप सामान बनाते हो और वह अच्छा बिकता है वह आपको अच्छे पेमेंट में सपोर्ट करते हैं.
''कहते हैं जो दिखता है वह बिकता है. जो बड़े-बड़े लोग हैं उसके यहां जब आपका सेल अच्छा होगा तो सब कुछ अच्छा होगा, पेमेंट जल्दी आएगा, एक साइकिल बन जाएगा. उसके बाद एक एंटरप्रेन्योर होने की वजह से कोई भी गलत स्टेप ना लें, आप कोई ऐसा गलत कदम न उठाएं जिससे आपके क्लाइंट को दुख पहुंचे. मैंने डिसिप्लिन से तीन-चार साल काम किया. उसके बाद बैंक आने शुरू हो गए, क्लाइंट आने शुरू हो गए, यह सब कुछ मैं बेंगलुरु में किया.''- चंदन कुमार झा, उद्योगपति
ईटीवी भारत ने पूछा कि आखिर बेंगलुरु क्यों चुना, आपने बिहार क्यों नहीं चुना? तो चंदन कुमार ने बताया कि बिहार में मैं कोविड के समय आया था. बिहार का एंट्री क्या होगा? यही मुझे पता नहीं था. मैं पहले जब दरभंगा गया था तो बहुत कुछ नहीं बदला था. जैसा था वैसा का वैसा ही है.
2019 के आसपास गोह के पूर्व विधायक मनोज शर्मा जी से मिला. मनोज जी अच्छे मित्र हैं. उन्होंने मुझे बहुत ही सपोर्ट किया. मुझे बहुत इंस्पायर किया. उन्होंने मुझे बहुत मोटिवेट किया कि चंदन जी बिहार आना है. बिहार को आप जैसे लोग चाहिए, फिर मनोज जी ने मुझे केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जी से मिलवाया.
गिरिराज दादा ने भी मुझे बहुत मोटिवेट किया. गिरिराज दादा तो मेरे बेंगलुरु वाले नए फैक्ट्री पर आए, वह उसके उद्घाटन में गए थे. वहां के कर्मचारियों को उन्होंने संबोधित भी किया था. मैं बिहार तो मनोज जी के कारण ही वापस आ पाया.
यहां वापस आने के बाद मुझे अच्छे लोग मिले. मुझे लगा कि बिहार वाकई बदल रहा है. बिहार गवर्नमेंट भी सपोर्ट कर रही है. अच्छी पॉलिसी के साथ बिहार गवर्नमेंट काम कर रही है. गवर्नमेंट की जो करंट पॉलिसी है वह बेहतर है. नीतीश मिश्रा जी अच्छा काम कर रहे हैं.
ईटीवी भारत ने पूछा कि बिहार में सेटअप लगाने को लेकर कितने उत्साहित हैं. तो चंदन कुमार ने कहा कि एक बिहारी को बिहार से निकाल सकते हैं लेकिन बिहार को बिहारी से नहीं निकाल सकते. देखिये, पहली बात तो यह है कि बिजनेस इमोशन से नहीं चलता है. एक लंबी यात्रा के लिए वह प्रॉफिटेबल होना चाहिए.
'बिहार का मार्केट बहुत अच्छा है' : बिहार एक बहुत ही अच्छा कंजूमिंग स्टेट है. बिहार के लोगों का जो डिस्पोजल इनकम बहुत बड़ा है. बिहार में बहुत बड़ा मार्केट है. एक तो बिहार में प्रोडक्ट बनाकर बिहार में सेल किया जा सकता है. बिहार का कनेक्टिविटी पूरे नॉर्थ ईस्ट से है. बहुत कम कंपनी है जो इस अपॉर्चुनिटी पर काम कर रही है. मुझे लगता है कि जब हम अपनी यहां शुरुआत करेंगे तो यहां एक कंजूमिंग मार्केट भी देखेंगे.
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