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कहानी श्री राम चरित मानस जन्म भूमि की, जहां बाबा तुलसी ने की थी मानस की शुरुआत

शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि भगवान के आशीर्वाद से ही संत तुलसीदास ने रामचरित मानस (Tulsidas compose Ramcharit manas) की रचना करना प्रारंभ कर दिया था.आज जब रामलला अपने महल में विराजमान हो चुके हैं, तब श्रीरामचरित मानस का पाठ कई घरों में कराया जा रहा है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 21, 2024, 6:10 PM IST

पंचानन महाराज से बातचीत

अयोध्या: जब रामलला अपने महल में विराज चुके हैं तो हर ओर बस राम नाम की धुन सुनाई दे रही है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उत्साह दिखाई पड़ रहा है. वहीं, जब बात अयोध्या के राजा राम की हो रही होती है, तो सहज की मन में श्री श्रीरामचरितमानस की बात याद आ जाती है. रामलला का जन्म अयोध्या में हुआ था और श्रीरामचरितमानस का भी जन्म अयोध्या में ही हुआ था. यहीं पर गोस्वामी तुलसीदास ने बाल काण्ड लिखना शुरू किया था. जिस जगह पर इसको लिखना शुरू किया गया आज वह स्थान तुलसी चौरा के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां पर सभी देवों ने आकर परिक्रमा की है.

'भगवान शिव ने यह ग्रंथ पूरा करने के लिए गोस्वामी तुलसीदास को काशी भेज दिया था. इससे पहले उन्होंने बालकाण्ड की शुरुआत अयोध्या से ही कर दी थी. तुलसी चौरा वह स्थान है जहां पर यह शुरुआत हुई थी. अयोध्या स्थित तुलसी चौरा में तुलसीदास का मंदिर हैं. जहां पर देशभर के बड़े संत दर्शन के लिए आते रहते हैं. शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि भगवान के आशीर्वाद से ही संत तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना करना प्रारंभ कर दिया था. आज जब रामलला अपने महल में विराजमान हो चुके हैं, तब श्रीरामचरित मानस का पाठ कई घरों में कराया जा रहा है. ऐसे में आज हम आपको इस ग्रंथ के रचनाकार और रचना के बारे में बता रहे हैं.

इसे भी पढ़े-अयोध्या जाने के लिए दूसरे की पत्नी को बताया था अपनी, जानिए कारसेवक राजू पाठक की कहानी

गोस्वामी बाबा पर भगवान की कृपा हुई: पंचानन महाराज बताते हैं, '1631 में गोस्वामी बाबा पर भगवान की बड़ी कृपा हुई. यहीं से ही बालकाण्ड लिखा जाना शुरू किया गया था. यह स्थान तुलसी चौरा के नाम से जाना जाता है. यहां पर बाबा ने श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां लिखना शुरू किया. यह ग्रंथ लिखना बाबा का मूल कर्तव्य था और वे इसी के लिए इस स्थान पर थे. जब तक भगवान चाहे तब तक वे इस स्थान पर रहे. भगवान ने उन्हें किसी न किसी रूप में काशी भेज दिया कि अब आप शिव जी की शरण में जाइए. आपको आगे और लिखना है, जिसे शिवजी की कृपा से ही प्राप्त कर सकते हैं.

भगवान भोलेनाथ की हृदय की वस्तु है मानस: पंचानन जी महाराज कहते हैं कि बाबा तुलसीदास ने लिखा, शंभु किन्ह यह चरित सुहावा, बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा. श्रीरामचरितमानस भगवान भोलेनाथ की हृदय की वस्तु है. जो भगवान ने भोलेनाथ ने बड़ी कृपा करके गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखवाया, जिससे कि जनमानस में सभी में आपस में प्रेम उत्पन्न हो. तुलसी चौरा रामचरितमानस जन्मभूमि है क्योंकि गोस्वामी जी ने यहीं से लिखना शुरू किया था. बालकाण्ड यहीं से ही लिखना शुरू किया गया. आज रामचरितमानस से धर्म की स्थापना हो रही है. करोड़ों परिवार चल रहे हैं और बस रहे हैं.'

कैसे पहुंचें तुलसी चौरा के स्थान पर: अयोध्या बस अड्डा से लगभग 15 किलोमीटर और हनुमानगढ़ी से करीब 3 किलोमीटर स्थित है तुलसी चौरा. यहां तक पहुंचने के लिए आपको अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन से ई-रिक्शा मिल जाएगा. आप वहां से हनुमानगढ़ी तक जाकर भी रिक्शा बदल सकते हैं. इसके साथ ही बस अड्डा से भी ई-रिक्शा के माध्यम से आप हनुमान गढ़ी आ सकते हैं. इसके बाद यहां से तुलसी स्मारक भवन जाना होगा. ठीक इसी भवन के पास में ही स्थित है तुलसी चौरा. यहां पर अब निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है. यहां पर बड़ा सा हॉल है जहां कथावाचन होता है और ढोल-मंजरा, हारमोनियम की धुन पर रामकथा कही जाती है.

यह भी पढ़े-अयोध्या में राम भक्तों के लिए बन रहा 13 लाख लड्डू, प्रसाद के रूप में किया जाएगा वितरित

पंचानन महाराज से बातचीत

अयोध्या: जब रामलला अपने महल में विराज चुके हैं तो हर ओर बस राम नाम की धुन सुनाई दे रही है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उत्साह दिखाई पड़ रहा है. वहीं, जब बात अयोध्या के राजा राम की हो रही होती है, तो सहज की मन में श्री श्रीरामचरितमानस की बात याद आ जाती है. रामलला का जन्म अयोध्या में हुआ था और श्रीरामचरितमानस का भी जन्म अयोध्या में ही हुआ था. यहीं पर गोस्वामी तुलसीदास ने बाल काण्ड लिखना शुरू किया था. जिस जगह पर इसको लिखना शुरू किया गया आज वह स्थान तुलसी चौरा के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां पर सभी देवों ने आकर परिक्रमा की है.

'भगवान शिव ने यह ग्रंथ पूरा करने के लिए गोस्वामी तुलसीदास को काशी भेज दिया था. इससे पहले उन्होंने बालकाण्ड की शुरुआत अयोध्या से ही कर दी थी. तुलसी चौरा वह स्थान है जहां पर यह शुरुआत हुई थी. अयोध्या स्थित तुलसी चौरा में तुलसीदास का मंदिर हैं. जहां पर देशभर के बड़े संत दर्शन के लिए आते रहते हैं. शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि भगवान के आशीर्वाद से ही संत तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना करना प्रारंभ कर दिया था. आज जब रामलला अपने महल में विराजमान हो चुके हैं, तब श्रीरामचरित मानस का पाठ कई घरों में कराया जा रहा है. ऐसे में आज हम आपको इस ग्रंथ के रचनाकार और रचना के बारे में बता रहे हैं.

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गोस्वामी बाबा पर भगवान की कृपा हुई: पंचानन महाराज बताते हैं, '1631 में गोस्वामी बाबा पर भगवान की बड़ी कृपा हुई. यहीं से ही बालकाण्ड लिखा जाना शुरू किया गया था. यह स्थान तुलसी चौरा के नाम से जाना जाता है. यहां पर बाबा ने श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां लिखना शुरू किया. यह ग्रंथ लिखना बाबा का मूल कर्तव्य था और वे इसी के लिए इस स्थान पर थे. जब तक भगवान चाहे तब तक वे इस स्थान पर रहे. भगवान ने उन्हें किसी न किसी रूप में काशी भेज दिया कि अब आप शिव जी की शरण में जाइए. आपको आगे और लिखना है, जिसे शिवजी की कृपा से ही प्राप्त कर सकते हैं.

भगवान भोलेनाथ की हृदय की वस्तु है मानस: पंचानन जी महाराज कहते हैं कि बाबा तुलसीदास ने लिखा, शंभु किन्ह यह चरित सुहावा, बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा. श्रीरामचरितमानस भगवान भोलेनाथ की हृदय की वस्तु है. जो भगवान ने भोलेनाथ ने बड़ी कृपा करके गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखवाया, जिससे कि जनमानस में सभी में आपस में प्रेम उत्पन्न हो. तुलसी चौरा रामचरितमानस जन्मभूमि है क्योंकि गोस्वामी जी ने यहीं से लिखना शुरू किया था. बालकाण्ड यहीं से ही लिखना शुरू किया गया. आज रामचरितमानस से धर्म की स्थापना हो रही है. करोड़ों परिवार चल रहे हैं और बस रहे हैं.'

कैसे पहुंचें तुलसी चौरा के स्थान पर: अयोध्या बस अड्डा से लगभग 15 किलोमीटर और हनुमानगढ़ी से करीब 3 किलोमीटर स्थित है तुलसी चौरा. यहां तक पहुंचने के लिए आपको अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन से ई-रिक्शा मिल जाएगा. आप वहां से हनुमानगढ़ी तक जाकर भी रिक्शा बदल सकते हैं. इसके साथ ही बस अड्डा से भी ई-रिक्शा के माध्यम से आप हनुमान गढ़ी आ सकते हैं. इसके बाद यहां से तुलसी स्मारक भवन जाना होगा. ठीक इसी भवन के पास में ही स्थित है तुलसी चौरा. यहां पर अब निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है. यहां पर बड़ा सा हॉल है जहां कथावाचन होता है और ढोल-मंजरा, हारमोनियम की धुन पर रामकथा कही जाती है.

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