अजमेर. दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर लोग धन, समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं वहीं धार्मिक पर्यटन नगरी अजमेर में एक धार्मिक स्थल ऐसा भी है जहां दीपावली पर कुवारें युवक-युवतियों का मेला लगता है. जी हाँ अजमेर के आनासागर झील से सटी पहाड़ी पर स्थित मंदिर में बिराजे खोबरा नाथ भैरव के दर पर कुवारों को शादी का आशीर्वाद मिलता है. इसलिए भक्त खोबरा भैरवनाथ को 'शादी देव' के नाम से भी पुकारते हैं.
अजमेर के प्राचीन मंदिरों में से एक खोबरा भैरवनाथ मंदिर भी है. अजमेर की स्थापना चौहान वंश के राजा अजय पाल ने की थी. बताया जाता है कि खोबरा भैरवनाथ तब से मंदिर में बिराजते है. यानी खोबरा भैरवनाथ का इतिहास अजमेर के स्थापत्य के समय से भी पहले का है. बताया जाता है कि चौहान वंश की आराध्य देवी चामुंडा माता मंदिर और खोबरानाथ भैरव की पूजा अर्चना चौहान वंश के राजा किया करते थे.
इनके बाद में जीर्णशीर्ण मंदिर की मरम्मत करवाकर कर पुनः मंदिर की स्थापना मराठा काल में हुई. हिन्दू धर्म मे विभिन्न जातियों के लिए खोबरा नाथ भैरव आराध्य देव हैं. वर्ष भर यहां विभिन्न जाति धर्म के लोगों का दर्शनों के लिए आना जाना लगा रहता है. लेकिन दीपावली के दिन कायस्थ समाज के लोग विशेषकर मंदिर में आशीर्वाद लेने के लिए जुटते हैं. दीपावली के दिन खोबरा भैरव नाथ का मेला भरता है. सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. श्रद्धालु भैरवनाथ के दर्शन करने के बाद ही अपने घरों में दीपावली की पूजा अर्जना कर खुशियां मनाते हैं.
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7 दिन तक कुंवारे जलाते है मंदिर में दीपक : खोबरा नाथ मंदिर के पुजारी पंडित ललित मोहन शर्मा ने बताया कि खोबरा नाथ भैरव मंदिर में वर्षों से लोगों की गहरी आस्था रही है. पुजारी पंडित शर्मा बताते हैं कि दीपावली पर मंदिर में मेले का आयोजन होता है. शुक्रवार को सुबह 11 से 4 बजे तक मेले की व्यवस्था कायस्थ समाज की ओर से की जा रही है. बड़ी संख्या में कायस्थ समाज के लोग दीपावली के दिन दर्शनों के लिए मंदिर आते हैं. इनके अलावा अन्य समाज के लोगों का भी आना जाना मंदिर में लगा रहता है.
श्रद्धालुओं की भीड़ में ज्यादा कुंवारों की संख्या अधिक रहती है. उन्होंने बताया कि मान्यता है कि खोबरा नाथ के दर पर 7 दिन तक शाम के वक़्त दीपक जलाने से कुवारों की जल्द ही शादी हो जाती है. दीपावली से पहले कुंवारे मंदिर में दीपक जलाने आते हैं. दीपावली के दिन मंदिर में दीपक जलाने का अंतिम दिन होता है. ऐसे में कुंवारे युवक युवतियां मंदिर में दीपक जलाकर खोबरा भैरवनाथ से शादी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. जिन कुवारों की शादी हो जाती है ऐसे नव दंपति भी यहां मन्नत उतारने के लिए आते हैं. जो कुंवारे दूरी के कारण मंदिर नही आ पाते है उनके परिजन या रिश्तेदार बाबा खोबरा नाथ भैरव के मंदिर में अर्जी को मोली से बांध देते है. मन्नत पूरी होने के बाद बाबा खोबरा नाथ मंदिर के दर्शनों के लिए नव दंपति को श्रद्धा अनुसार भोग लगाकर अपनी मन्नत उतारने आना होता है.
बड़ी चट्टान में बनी गुफा में है गर्भ गृह : पंडित ललित मोहन शर्मा बताते हैं कि राजस्थान के अन्य जिलों के अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, मुंबई तक से श्रद्धालु मंदिर में दर्शनों के लिए आते हैं. वहीं कई एनआरआई भी मंदिर से शादी का आशीर्वाद पा चुके हैं. यहां पहाड़ी पर स्थित मंदिर में गर्भ गृह एक बड़ी सी चट्टान में बनी गुफा के अंदर है. ऊंची पहाड़ी पर स्थित मंदिर से आनासागर झील का विहंगम दृश्य और अजमेर का नैसर्गिक सौंदर्य भी नजर आता है. लिहाजा देसी पर्यटक भी मंदिर में आते हैं और यहां का इतिहास जानकर अभिभूत हो जाते हैं.
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काशी से आए थे खोबरा नाथ भैरू : पंडित ललित मोहन शर्मा बताते हैं कि खोबरा नाथ भैरव भगवान शिव के धाम काशी से पुष्कर तीर्थ के लिए आए थे. इस स्थान पर खोबरा भैरव नाथ ने रात्रि विश्राम किया था. तब से ही यह स्थान पूजित है. यहां गोल आकार में भगवान खोबरा नाथ की प्रतिमा है, जिसकी नित्य पूजा अर्चना होती है.