नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) द्वारा सेंट स्टीफंस कॉलेज में प्रोविजनल एडमिशन पाने वाले 6 विद्यार्थियों को मामले में अंतिम निर्णय होने तक कॉलेज में क्लासेज अटेंड करने से रोक दिया है. इन विद्यार्थियों ने गुरुवार को 2024-25 शैक्षणिक सत्र में स्नातक कक्षाओं के पहले दिन भाग लिया, लेकिन अन्य छात्रों की तरह, वे उतने उत्साहित नहीं दिखे जितने अन्य छात्र उत्साहित थे. इसका मुख्य कारण यह था कि वे अपने दाखिले के बारे में अंतिम निर्णय को लेकर चिंतित थे.
दिल्ली हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कॉलेज द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई की, जिसमें एकल न्यायाधीश के अंतरिम आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें निर्देश दिया गया था कि छह छात्रों को विश्वविद्यालय के सीट आवंटन के अनुसार प्रोविजनल एडमिशन दिया जाए.
- 24 अगस्त को जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने कॉलेज को इन विद्यार्थियों को दिया था प्रोविजनल दाखिला देने का आदेश
- इस आदेश के खिलाफ सेंट स्टीफेंस कॉलेज ने जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली डबल बेंच के सामने की थी अपील
अभिभावक बोले बिना गलती के मानसिक तनाव से गुजर रहे बच्चे
अदालत के आदेश ने छात्रों और उनके अभिभावकों की परेशानी बढ़ा दी है. सभी छह बच्चों के अभिभावकों ने कॉलेज और विश्वविद्यालय के बीच चल रहे इस विवाद के कारण अपने बच्चों को हो रहे मानसिक तनाव को लेकर चिंता व्यक्त की. इन्हीं विद्यार्थियों में से एक प्रिशा तायल के पिता मयंक तायल ने बताया कि वे अपनी बेटी को सेशन के पहले दिन कॉलेज पहुंचाने के लिए बेंगलुरु से यात्रा करके आए हैं. उन्होंने वर्तमान स्थिति पर निराशा व्यक्त की. उन्होंने बताया कि मैंने काफी खोज के बाद उसके लिए पीजी लिया था. लेकिन, अब कोर्ट द्वारा अगले आदेश तक कक्षाओं से रोकने के बाद अब हम असहाय हो गए हैं. मेरी बेटी बिना किसी गलती के पीड़ित है. वह पिछले कुछ दिनों से ठीक से खाना नहीं खा रही है और हम मानसिक आघात और अनावश्यक उत्पीड़न से गुजर रहे हैं. छात्रों को सीटें आवंटित करने के बाद डीयू प्रशासन और कॉलेज को दाखिला देना चाहिए था. इस झगड़े के कारण हमारा बच्चा प्रवेश प्रक्रिया से बाहर हो गया है और किसी अन्य कॉलेज में दाखिला नहीं ले सकता है.
अभिभावकों का छलका दर्द
अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले बच्चों में से एक निशिका साहू के पिता प्रभाकर साहू ने बताया कि मेरी पत्नी गुरुवार को कॉलेज के पहले दिन मेरी बेटी के साथ कॉलेज गई थी, जबकि मैं आगे की कार्यवाही के लिए अदालत में हूं. वहीं, एक अन्य चिंतित अभिभावक चर्मेंद्र सिंह ने बताया कि यह मेरे बेटे के लिए सामान्य शुरुआत नहीं थी, जो आज कॉलेज के पहले दिन क्लास करने आया था. उत्साहित होने के बजाय, वह इस बात से घबराया हुआ था कि हमें प्रवेश कैसे मिले. हमें लगता है कि हमारा भविष्य खतरे में है. ये छात्र भारत में रहना चाहते हैं और देश के लिए योगदान देना चाहते हैं, लेकिन सिस्टम उनके साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है, अब जब अदालत ने हमारे बच्चों को अगली सूचना तक कक्षाओं में भाग लेने से रोक दिया है, तो हम असहाय महसूस कर रहे हैं. जब उनसे पूछा गया कि अगर उन्हें कोई दूसरा कॉलेज ऑफर किया जाता है तो क्या वे उसे स्वीकार करेंगे, तो सिंह ने कहा कि वे संतुष्ट नहीं होंगे क्योंकि सेंट स्टीफंस उनके बेटे का ड्रीम कॉलेज था.
ये है पूरा मामला
बता दें कि डीयू द्वारा सेंट स्टीफेंस कॉलेज में सीट आवंटित होने के बाद कॉलेज ने उनके प्रवेश आवेदनों को कर खारिज दिया था. जिसके बाद 24 अगस्त को छह छात्रों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें अनारक्षित श्रेणी और सिंगल गर्ल चाइल्ड कोटा के तहत प्रवेश चाहने वाले छात्र भी शामिल हैं. कॉलेज ने 22 विद्यार्थियों के आवेदन खारिज किए गए थे, उनमें से एक छात्र की मां वंदना श्रीवास्तव ने अपनी नाखुशी व्यक्त की. उन्होंने कहा कि इस विवाद के कारण उनके बच्चे को आज क्लासेज शुरू होने के पहले दिन घर पर रहना पड़ा. जबकि उसके सभी दोस्त कॉलेज की कक्षाओं में शामिल होने गए थे.
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