कुचामनसिटी : हमारे देश के गांवों में ऐसी कई अनोखी परंपराएं हैं, जो न केवल आश्चर्यचकित करती हैं, बल्कि वहां की सांस्कृतिक धरोहर को भी उजागर करती हैं. इसी तरह की एक विशेष परंपरा के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जो कुचामन जिले के जसराणा गांव में देखने को मिलती है.
जसराणा गांव की यह खासियत है कि यहां के लोग अपने घरों को केवल एक मंजिल तक ही सीमित रखते हैं. इस अनूठी परंपरा का पालन सदियों से किया जा रहा है. गांववासियों का मानना है कि लोक देवता अल्लू बाप जी के प्रति आस्था के कारण यह परंपरा निभाई जाती है. अल्लू बाप जी के मंदिर की ऊंचाई से कोई मकान ऊंचा नहीं होना चाहिए. यही वजह है कि यहां घरों की छतों के ऊपर दूसरी मंजिल बनाने की सख्त मनाही है और गांव के लोग इस परंपरा को सदियों से निभा रहे हैं. गांव के अल्लू बाप जी मंदिर समिति के सचिव रामेश्वर गावड़िया का कहना है कि जसराणा के लोग इस परंपरा को पूरी श्रद्धा से निभाते हैं. उनका कहना है कि किसी ने भी इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की तो उसे कुछ न कुछ दुष्परिणाम का सामना करना पड़ा है.
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लोक देवता अल्लू बाप जी की कहानी : मंदिर में पुजारी मोडूदान कविया ने बताया कि अल्लू बाप जी का जन्म 1538 में जोधपुर जिले की शेरगढ़ तहसील में हुआ था. उनके पिता का नाम हेमराज और माता का नाम आशा देवी था. संत प्रवृत्ति के अल्लू बाप जी ने जसराणा में आकर तपस्या की. उस वक्त इनके साथ तीन और समुदाय से जुड़े भक्त भी जसराणा आए थे. 1638 में उन्होंने जीवित समाधि ली, जिसके बाद से इस क्षेत्र में उनकी आस्था और भक्ति की परंपरा शुरू हुई.
स्थानीय निवासी भागूराम चौधरी ने बताया कि अल्लू बाप जी के दरबार में मन्नत मांगने के कुछ चमत्कारिक किस्से भी प्रसिद्ध हैं. उनका कहना है कि यदि कोई व्यक्ति चर्म रोग से पीड़ित होता है तो वह मंदिर में जाकर भभूति का प्रयोग करता है, जिससे उसका रोग ठीक हो जाता है.
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परंपरा का पालन, एक मंजिल, एक नियम : जसराणा गांव में चाहे व्यक्ति कितना भी धनाढ्य क्यों न हो, वह अपने घर को बहुमंजिला बनाने के बारे में कभी सोचता भी नहीं है. यह परंपरा एक अनुशासन का हिस्सा बन चुकी है, जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं. जसराणा के पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी इस परंपरा का सम्मान करती हैं और इसे पूरी श्रद्धा से मानती हैं. यहां तक कि परंपरा के अनुसार गांव वालों को छत पर चारपाई डालकर सोने की भी मनाही है.