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Special : मजबूरी में अनाथालय में रहकर बने सक्षम, मेहनत के दम पर खड़ा किया मेडिकल उपकरण निर्माण का कारखाना

कोटा का एक शख्स अमर जगदार, जो संभवत: राजस्थान में पहले शख्स है जो एनेस्थीसिया मशीन बनाते हैं और उनकी बिक्री करते हैं. वे एक छोटा कारखाना चला रहे हैं. जिसके वह एनेस्थीसिया मशीन से लेकर कई मेडिकल इक्विपमेंट बना रहे हैं. वे देश के कई हिस्सों में मेडिकल उपकरण भेज चुके हैं.

Anesthesia Machine In Rajasthan
कोटा के अमर जगदार की कहानी
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 27, 2024, 11:06 AM IST

कोटा के अमर जगदार की कहानी

कोटा. कहते हैं मजबूरी सब करा लेती है, लेकिन इस मजबूरी में मेहनत का त्याग न कर और आगे बढ़ाने की ललक हो तो आदमी काफी कुछ कर गुजरता है. ऐसा ही मामला कोटा के अमर जगदार का है. बचपन में उनके हालातों ने मदद नहीं कि ऐसे में पढ़ाई छोड़नी पड़ गई और बीच में ही दुकान पर नौकरी भी करनी पड़ी, लेकिन पढ़ने की ललक थी तो दोबारा स्कूल गए. परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं थी तो अनाथालय में रहकर पढ़ाई करना मंजूर समझा. बाद में हालात बदले और सफलताएं भी उनको मिलती रही.

पढ़ाई के बूते पर ही उन्होंने बायो मेडिकल इंजीनियरिंग की और आज एक सक्षम एमएसएमई उद्योगपति है. इसके साथ ही खुद का एक छोटा कारखाना चला रहे हैं. जिसके वह एनेस्थीसिया मशीन से लेकर कई मेडिकल इक्विपमेंट बना रहे हैं. बता दें कि एनेस्थीसिया मशीन का उपयोग आमतौर पर एक यांत्रिक वेंटिलेटर, श्वास प्रणाली, सक्शन उपकरण और रोगी निगरानी उपकरणों के साथ किया जाता है.

Anesthesia Machine In Rajasthan
प्रदेश में एकमात्र जो बना रहे एनेस्थीसिया मशीन

प्रदेश में एकमात्र जो बना रहे एनेस्थीसिया मशीन : अमर जगदार दावा करते हैं कि राजस्थान में ऑपरेशन थिएटर में काम आने वाली एनेस्थीसिया मशीन को तैयार कर बेचने वाले वो एकमात्र व्यक्ति हैं. कई कंपनीयां या लोग एनेस्थीसिया मशीन बेच तो रहे हैं, लेकिन वे केवल ट्रेडिंग कर रहे हैं, जबकि वे अपने कारखाने में खुद पूरी एनेस्थीसिया मशीन को बनाते हैं. कंपनी को एमएसएमई में रजिस्टर्ड भी करवाया हुआ है, जिसमें 35 हजार से लेकर 3.5 लाख तक की एनेस्थीसिया मशीन है, हालांकि जिन मशीनों में वेंटिलेटर लगता है, वह महंगी होती है. ऐसे में वेंटिलेटर का निर्माण वो नहीं करते है. उन्हें बाहर से मंगवाकर मशीन में एसेंबल कर जोड़ते हैं.

पिता की मौत के बाद बदली घर की स्थिति : अमर जगदर का कहना है कि उनके शुरुआती जीवन और बचपन संघर्ष में ही बीता है. उनका परिवार मूल रूप से पश्चिम बंगाल का है. पिता सुधांशु जगदार मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज में कोटा आ गए. उनका जन्म भी कोटा में ही हुआ. परिवार में चार बहन और दो भाई थे. पिता नौकरी से रिटायर्ड हुए, फिर वो बारां जिले के परनियां में उन्हें ले गए, जहां कुछ समय में ही बीमारी के चलते पिता ने दम तोड़ दिया. इसके बाद घर खर्च चलाने का पैसा भी नहीं था. उनकी मां पारुल देवी बच्चों को लेकर कोटा आ गई और छोटी-मोटी मजदूरी करने लगी. पैसा नहीं होने के चलते उन्होंने भी एक रेडियो रिपेयरिंग शॉप पर काम सीखना शुरू कर दिया. पढ़ाई छूट गई थी.

इसे भी पढ़ें- Special : ब्यावर में 162 साल पहले बना था राजस्थान का पहला शुलब्रेड चर्च, अजमेर के कई चर्चों में स्कॉटिश स्थापत्य कला का रहा प्रभाव

पढ़ने की ललक के चलते अनाथालय में हुए शिफ्ट : अमर का कहना है कि वह पेंटिंग व सिंगिंग में काफी अच्छी रुचि रखते थे. ऐसे में रिपेयरिंग शॉप में नौकरी के साथ उन्होंने पढ़ाई के लिए स्कूल में एडमिशन ले लिया, लेकिन काम और पढ़ाई दोनों साथ नहीं चल रहे पा रहे थे. किसी ने उन्हें सलाह दी कि अनाथालय में तुम्हें रख देंगे, तब काम हो जाएगा. वे तैयार हो गए और श्री करणी नगर विकास समिति के अनाथालय में 1989 में पहुंच गए, जहां 3 साल आठवीं, नवीं व दसवीं की पढ़ाई उन्होंने की. इस दौरान एयर एनसीसी के कैडेट भी बन गए थे, लेकिन अनाथालय से स्कूल के अलावा बाहर जाने की अनुमति नहीं होती थी. इसीलिए उन्हें अनाथालय भी छोड़ना पड़ा.

Anesthesia Machine In Rajasthan
अस्पताल की नौकरी छोड़ खुद की दुकान खोली

एयरफोर्स में भी हुआ था चयन : अमर का संघर्ष लगातार जारी था. अनाथालय से बाहर आने के बाद पढ़ाई के साथ और छोटे-मोटे काम करना उन्होंने शुरू कर दिया. कभी पंख सही करना तो कभी किसी की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को दुरुस्त करना. इसी दौरान 12वीं की पढ़ाई की और आईटीआई भी कर ली, बाद में उन्होंने 2 साल की पॉलिटेक्निकल 1995 में पूरी की. इसी दौरान एयर एनसीसी में उनका अच्छा होल्ड होने चलते एयरफोर्स में एयरमैन के पद पर उनका चयन हो गया, लेकिन मेडिकल अनफिट होने के चलते वे नियुक्त नहीं हो पाए. उनके हृदय से जुड़ी (कार्डियक) की कोई प्रॉब्लम थी.

इसे भी पढ़ें- Special : राजस्थान का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा ERCP, जिसमें हाड़ौती बनेगा भागीरथी...जानिए क्या है पूरा प्रोजेक्ट

अस्पताल की नौकरी छोड़ खुद की दुकान खोली : अमर का कहना है कि एयर फोर्स की नौकरी में नियुक्ति नहीं मिलने के बाद उन्होंने कोटा के ही अस्पताल में टेक्नीशियन के रूप में नौकरी स्टार्ट की. जहां पर उपकरणों को रिपेयर करने का काम था. इसी दौरान उन्हें सोचा कि क्यों न बायोमेडिकल इंजीनियरिंग कर ली जाए. इसीलिए उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर्नाटक के बेलगांव से किया और इसके बाद अस्पताल में नौकरी जारी रखी. फिर खुद ने ही अस्पताल में 1996 में नौकरी छोड़ दी और 1997 में मेडिकल इक्विपमेंट रिपेयर की शॉप डाली, तब काम धीरे-धीरे चलने लगा.

अनाथालय संचालक ने दिलाया लोन : दुकान में कभी मुनाफा तो कभी नुकसान होने लगा था. ऐसे में उन्हें राशि की जरूरत पड़ी. बैंक लोन के लिए आवेदन किया, लेकिन मिल नहीं पाया. उनके अनाथालय के संचालक महावीर भंडारी ने बैंक को लोन गारंटी दी, तब उन्हें लोन दिलाया. बाद में उन्होंने दुकान को कोटडी रोड गुमानपुरा पर शिफ्ट किया. मेडिकल इक्विपमेंट को खोलना और डिजाइन को समझने लगे. इसके बाद उन्होंने एनेस्थीसिया मशीन बनाने का काम साल 2000 में शुरू किया, मैन्युफैक्चरिंग के काम में जुटे हुए हैं. वे बेबी वार्मर, एनेस्थीसिया मशीन, एलईडी फोटोथेरेपी सहित कई मेडिकल उपकरणों को बना रहे हैं. साथ ही सेल्स और सर्विस का काम भी कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- नाहरगढ़ की पहाड़ी पर बने गढ़ गणेश मंदिर में हर बुधवार को उमड़ता है भक्तों का जन सैलाब, वजह जान चौंक जाएंगे आप

देश के कई हिस्सों में भेज चुके हैं मेडिकल उपकरण : अमर जगदार का कहना है कि अब तक वे राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, कोटा, अलवर के अलावा महाराष्ट्र में औरंगाबाद, पुणे, मिरज, कोल्हापुर, मध्य प्रदेश में इंदौर, कर्नाटक में सांगली सहित कई जगहों पर अपने इक्विपमेंट को भेज चुके हैं. उन्होंने इसके लिए खुद कारखाना स्थापित किया हुआ है. अभी तक वह खुद के बने हुए 200 से ज्यादा एनेस्थीसिया मशीन देशभर में भेज चुके हैं, लेकिन आज तक कोई शिकायत नहीं आई. एनेस्थीसिया मशीन में लगने वाले अन्य उपकरण भी अलग-अलग जगह से मांगते हैं, लेकिन खुद उसे असेंबल करते हैं. अमर जगदर का कहना है कि हर साल करीब 50 लाख से ज्यादा टर्नओवर पहुंच रहा है.

कोटा के अमर जगदार की कहानी

कोटा. कहते हैं मजबूरी सब करा लेती है, लेकिन इस मजबूरी में मेहनत का त्याग न कर और आगे बढ़ाने की ललक हो तो आदमी काफी कुछ कर गुजरता है. ऐसा ही मामला कोटा के अमर जगदार का है. बचपन में उनके हालातों ने मदद नहीं कि ऐसे में पढ़ाई छोड़नी पड़ गई और बीच में ही दुकान पर नौकरी भी करनी पड़ी, लेकिन पढ़ने की ललक थी तो दोबारा स्कूल गए. परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं थी तो अनाथालय में रहकर पढ़ाई करना मंजूर समझा. बाद में हालात बदले और सफलताएं भी उनको मिलती रही.

पढ़ाई के बूते पर ही उन्होंने बायो मेडिकल इंजीनियरिंग की और आज एक सक्षम एमएसएमई उद्योगपति है. इसके साथ ही खुद का एक छोटा कारखाना चला रहे हैं. जिसके वह एनेस्थीसिया मशीन से लेकर कई मेडिकल इक्विपमेंट बना रहे हैं. बता दें कि एनेस्थीसिया मशीन का उपयोग आमतौर पर एक यांत्रिक वेंटिलेटर, श्वास प्रणाली, सक्शन उपकरण और रोगी निगरानी उपकरणों के साथ किया जाता है.

Anesthesia Machine In Rajasthan
प्रदेश में एकमात्र जो बना रहे एनेस्थीसिया मशीन

प्रदेश में एकमात्र जो बना रहे एनेस्थीसिया मशीन : अमर जगदार दावा करते हैं कि राजस्थान में ऑपरेशन थिएटर में काम आने वाली एनेस्थीसिया मशीन को तैयार कर बेचने वाले वो एकमात्र व्यक्ति हैं. कई कंपनीयां या लोग एनेस्थीसिया मशीन बेच तो रहे हैं, लेकिन वे केवल ट्रेडिंग कर रहे हैं, जबकि वे अपने कारखाने में खुद पूरी एनेस्थीसिया मशीन को बनाते हैं. कंपनी को एमएसएमई में रजिस्टर्ड भी करवाया हुआ है, जिसमें 35 हजार से लेकर 3.5 लाख तक की एनेस्थीसिया मशीन है, हालांकि जिन मशीनों में वेंटिलेटर लगता है, वह महंगी होती है. ऐसे में वेंटिलेटर का निर्माण वो नहीं करते है. उन्हें बाहर से मंगवाकर मशीन में एसेंबल कर जोड़ते हैं.

पिता की मौत के बाद बदली घर की स्थिति : अमर जगदर का कहना है कि उनके शुरुआती जीवन और बचपन संघर्ष में ही बीता है. उनका परिवार मूल रूप से पश्चिम बंगाल का है. पिता सुधांशु जगदार मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज में कोटा आ गए. उनका जन्म भी कोटा में ही हुआ. परिवार में चार बहन और दो भाई थे. पिता नौकरी से रिटायर्ड हुए, फिर वो बारां जिले के परनियां में उन्हें ले गए, जहां कुछ समय में ही बीमारी के चलते पिता ने दम तोड़ दिया. इसके बाद घर खर्च चलाने का पैसा भी नहीं था. उनकी मां पारुल देवी बच्चों को लेकर कोटा आ गई और छोटी-मोटी मजदूरी करने लगी. पैसा नहीं होने के चलते उन्होंने भी एक रेडियो रिपेयरिंग शॉप पर काम सीखना शुरू कर दिया. पढ़ाई छूट गई थी.

इसे भी पढ़ें- Special : ब्यावर में 162 साल पहले बना था राजस्थान का पहला शुलब्रेड चर्च, अजमेर के कई चर्चों में स्कॉटिश स्थापत्य कला का रहा प्रभाव

पढ़ने की ललक के चलते अनाथालय में हुए शिफ्ट : अमर का कहना है कि वह पेंटिंग व सिंगिंग में काफी अच्छी रुचि रखते थे. ऐसे में रिपेयरिंग शॉप में नौकरी के साथ उन्होंने पढ़ाई के लिए स्कूल में एडमिशन ले लिया, लेकिन काम और पढ़ाई दोनों साथ नहीं चल रहे पा रहे थे. किसी ने उन्हें सलाह दी कि अनाथालय में तुम्हें रख देंगे, तब काम हो जाएगा. वे तैयार हो गए और श्री करणी नगर विकास समिति के अनाथालय में 1989 में पहुंच गए, जहां 3 साल आठवीं, नवीं व दसवीं की पढ़ाई उन्होंने की. इस दौरान एयर एनसीसी के कैडेट भी बन गए थे, लेकिन अनाथालय से स्कूल के अलावा बाहर जाने की अनुमति नहीं होती थी. इसीलिए उन्हें अनाथालय भी छोड़ना पड़ा.

Anesthesia Machine In Rajasthan
अस्पताल की नौकरी छोड़ खुद की दुकान खोली

एयरफोर्स में भी हुआ था चयन : अमर का संघर्ष लगातार जारी था. अनाथालय से बाहर आने के बाद पढ़ाई के साथ और छोटे-मोटे काम करना उन्होंने शुरू कर दिया. कभी पंख सही करना तो कभी किसी की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को दुरुस्त करना. इसी दौरान 12वीं की पढ़ाई की और आईटीआई भी कर ली, बाद में उन्होंने 2 साल की पॉलिटेक्निकल 1995 में पूरी की. इसी दौरान एयर एनसीसी में उनका अच्छा होल्ड होने चलते एयरफोर्स में एयरमैन के पद पर उनका चयन हो गया, लेकिन मेडिकल अनफिट होने के चलते वे नियुक्त नहीं हो पाए. उनके हृदय से जुड़ी (कार्डियक) की कोई प्रॉब्लम थी.

इसे भी पढ़ें- Special : राजस्थान का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा ERCP, जिसमें हाड़ौती बनेगा भागीरथी...जानिए क्या है पूरा प्रोजेक्ट

अस्पताल की नौकरी छोड़ खुद की दुकान खोली : अमर का कहना है कि एयर फोर्स की नौकरी में नियुक्ति नहीं मिलने के बाद उन्होंने कोटा के ही अस्पताल में टेक्नीशियन के रूप में नौकरी स्टार्ट की. जहां पर उपकरणों को रिपेयर करने का काम था. इसी दौरान उन्हें सोचा कि क्यों न बायोमेडिकल इंजीनियरिंग कर ली जाए. इसीलिए उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर्नाटक के बेलगांव से किया और इसके बाद अस्पताल में नौकरी जारी रखी. फिर खुद ने ही अस्पताल में 1996 में नौकरी छोड़ दी और 1997 में मेडिकल इक्विपमेंट रिपेयर की शॉप डाली, तब काम धीरे-धीरे चलने लगा.

अनाथालय संचालक ने दिलाया लोन : दुकान में कभी मुनाफा तो कभी नुकसान होने लगा था. ऐसे में उन्हें राशि की जरूरत पड़ी. बैंक लोन के लिए आवेदन किया, लेकिन मिल नहीं पाया. उनके अनाथालय के संचालक महावीर भंडारी ने बैंक को लोन गारंटी दी, तब उन्हें लोन दिलाया. बाद में उन्होंने दुकान को कोटडी रोड गुमानपुरा पर शिफ्ट किया. मेडिकल इक्विपमेंट को खोलना और डिजाइन को समझने लगे. इसके बाद उन्होंने एनेस्थीसिया मशीन बनाने का काम साल 2000 में शुरू किया, मैन्युफैक्चरिंग के काम में जुटे हुए हैं. वे बेबी वार्मर, एनेस्थीसिया मशीन, एलईडी फोटोथेरेपी सहित कई मेडिकल उपकरणों को बना रहे हैं. साथ ही सेल्स और सर्विस का काम भी कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- नाहरगढ़ की पहाड़ी पर बने गढ़ गणेश मंदिर में हर बुधवार को उमड़ता है भक्तों का जन सैलाब, वजह जान चौंक जाएंगे आप

देश के कई हिस्सों में भेज चुके हैं मेडिकल उपकरण : अमर जगदार का कहना है कि अब तक वे राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, कोटा, अलवर के अलावा महाराष्ट्र में औरंगाबाद, पुणे, मिरज, कोल्हापुर, मध्य प्रदेश में इंदौर, कर्नाटक में सांगली सहित कई जगहों पर अपने इक्विपमेंट को भेज चुके हैं. उन्होंने इसके लिए खुद कारखाना स्थापित किया हुआ है. अभी तक वह खुद के बने हुए 200 से ज्यादा एनेस्थीसिया मशीन देशभर में भेज चुके हैं, लेकिन आज तक कोई शिकायत नहीं आई. एनेस्थीसिया मशीन में लगने वाले अन्य उपकरण भी अलग-अलग जगह से मांगते हैं, लेकिन खुद उसे असेंबल करते हैं. अमर जगदर का कहना है कि हर साल करीब 50 लाख से ज्यादा टर्नओवर पहुंच रहा है.

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