हजारीबाग: जिले की सोहराय कला विश्व भर में पहचान बना रही है. अमेरिका से लेकर पेरिस और फ्रांस तक सोहराय कला की चर्चा हो चुकी है. 5 हजार वर्षों से भी पुरानी सोहराय कला हजारीबाग की अपनी कला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को सोहराय पेंटिंग भेंट की. अब वह दिन दूर नहीं है कि रामगढ़ निवासी सोनी कुमारी की कला की पहचान भी दूर तलक तक पहुंचने वाली है. जिन्होंने अपनी सोच को कलाकृति का रूप दिया है.
हजारीबाग की पहचान पूरे विश्व में सोहराय कला को लेकर है. यह कला लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी है, जो बड़कागांव के बादाम से निकालकर पूरे विश्व भर में अपनी सुंदरता बिखेर रही है. इन दिनों इस क्षेत्र में एक और कलाकार की भी चर्चा हो रही हैं. यह कला सोनी कुमारी का अपना अविष्कार है. गेहूं जो सभी धर्म में विशेष स्थान रखता है, गेहूं जो विकास का प्रतीक है, गेहूं जिसने मानव सभ्यता को नया आयाम दिया. सोनी कुमारी की कला भी उसी गेहूं पर आधारित है.
सोनी देवी ने गेहूं के डंठल का उपयोग कर कला को जीवंत किया है. यह कला सोनी कुमारी की अपनी सोच है. उन्होंने कड़ी मेहनत और शिद्दत के साथ इस कला को प्रस्तुत किया है. यही वजह है कि यह कला दूर तलक तक पहचान बना रही है. उन्होंने अपनी कला को व्हीट स्ट्रॉ आर्ट का नाम दिया है, अर्थात गेहूं के डंठल की कला. धीरे-धीरे यह कारवां कुछ इस कदर बढ़ता चला गया कि आज बड़े-बड़े शहरों में उनके बनाए हुए स्टॉल लग रहे हैं. ऑनलाइन मार्केट में भी उनकी कलाकृति धूम मचा रही है.
सोनी कुमारी ने 2009 में इंटर पास किया और इसके बाद पढ़ाई छोड़ दी. उसे पढ़ाई के बदले कला के क्षेत्र में करियर बनाने की चाहत थी. 2010 से कुछ नया करना शुरू किया. गेहूं की डंठल से कलाकृति बनाने का कारवां धीरे-धीरे बढ़ता चला गया. 2022 में उसने अपनी कलाकृति को आम जनता के सामने प्रस्तुत किया. जब लोगों ने उसकी कल देखा तो दंग रह गए. कला की चर्चा चारों तरफ होने लगी. साल में 50 से अधिक ऑर्डर उसे मिल जाते हैं. वहीं 4 से 5 स्टॉल साल भर में वह लगाती हैं. जहां उनकी कलाकृति हाथों-हाथ बिक रही है. सरकारी कार्यक्रम में उनकी कलाकृति को लोग एक दूसरे को उपहार स्वरूप भी दे रहे हैं.
सोनी कुमारी बताती हैं कि यह कलाकृति बेहद महीन काम है. गेहूं के डंठल और गेहूं से कलाकृति की जाती है. एक कलाकृति बनाने में सप्ताह भर से अधिक का समय लग जाता है. जैसे-जैसे कलाकृति पुरानी होती है वैसे-वैसे उसमें चमक भी बढ़ते जाता है. फ्रेम में जगह देने के बाद सालों साल यह दीवार की खूबसूरती को बढ़ाती है. झारखंड आंदोलन से जुड़े नेता शाहिद और खूबसूरत वादियों को कलाकृति के जरिए दिखाने की कोशिश की जाती है.
गेहूं के डंठल को पहले महीन-महीन काटा जाता है. फिर अपनी सोच के अनुसार गेंहू के डंठल को लगाया जाता है. यह एक नई कला है जो पूरी तरह से अपनी सोच पर ही निर्भर करती है. वे बताती हैं कि अपने घर के अन्य लोगों को भी इस कला से जोड़ने का काम कर रही हैं. तीन बहन, दो भतीजा और मां गंगो देवी उसे मदद करती है. पिता स्वर्गीय छोटू लाल नायक भी चाहते थे कि उनकी बेटी कुछ ऐसा करें कि पूरे देश-दुनिया में उसकी अलग पहचान हो. आज वह अपने पिता के भी सपना को पूरा कर रही है.
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