पलामू: नवरात्रि के दौरान पूरे जिले में उत्सव का माहौल रहता है. जगह-जगह दुर्गा पूजा के पंडाल बनाए जाते हैं. लेकिन इन सब के बावजूद मेदिनीनगर स्थित बंगीय दुर्गाबाड़ी में अलग ही नजारा देखने मिलता है. श्रद्धालु पूरा शहर घूमने के बाद भी दुर्गा बाड़ी घूमना नहीं भूलते. इसके पीछे कारण भी है. इस मंदिर की अपनी मान्यता है.
पलामू के मेदिनीनगर स्थित बंगीय दुर्गाबाड़ी का इतिहास 110 सालों पुराना है. यहां मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा है, जिनके दर्शन से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मनोकामना पूर्ण होने पर भक्तगण श्रद्धा व खुशी के साथ आभूषण दान करते हैं. इन्हीं दान किए गए आभूषणों का उपयोग मां दुर्गा के भव्य शृंगार में किया जाता है. सभी आभूषण शुद्ध सोने व चांदी से बने होते हैं.
बंगीय दुर्गाबाड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा काफी भव्य होती है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. महाषष्ठी को मेदिनीनगर स्थित बंगीय दुर्गाबाड़ी में मां दुर्गा का भव्य शृंगार होता है. समिति से जुड़े लोग पूजा के साथ ही मां का शृंगार भी करते हैं, जिसमें करीब तीन से चार घंटे का समय लगता है. इस दौरान मां दुर्गा को सोने व चांदी के आभूषण पहनाए जाते हैं. शृंगार के बाद मां दुर्गा का भव्य स्वरूप सामने आता है और दर्शन के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है.
बंगीय दुर्गाबाड़ी संचलन समिति के सचिव बिपेंदु गुप्ता बताते हैं कि पूजा का इतिहास 110 वर्षों का है. मां का शृंगार सोने-चांदी के आभूषणों से किया जाता है, यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. उन्होंने बताया कि मां अपने घर आई हैं, जिस तरह से घर की महिलाएं किसी भी अनुष्ठान में पारंपरिक शृंगार करती हैं, उसी तरह मां दुर्गा का भी शृंगार किया जाता है. श्रद्धालुओं द्वारा दान किए गए आभूषण से ही मां का शृंगार होता है. पलामू के बंगीय दुर्गाबाड़ी में मां के दर्शन के लिए लोगों की सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ती है. मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा सभी को आकर्षित करती है.
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