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छत्तीसगढ़ में ब्लूटूथ डिवाइस युवाओं को बना रहा बहरा, सामान्य श्रवण क्षमता हो रही कम - SIDE EFFECT OF BLUETOOTH DEVICE

हाईटेक दुनिया में एक चीज का इस्तेमाल हम सब करने लगे हैं.ये चीज है ब्लूटूथ डिवाइस.लेकिन ये कितनी खतरनाक है आईए जानते हैं.

Side Effect of Bluetooth device
छत्तीसगढ़ में ब्लूटूथ डिवाइस युवाओं को बना रहा बहरा (ETV BHARAT CHATTISGARH)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 20, 2025, 4:20 PM IST

रायपुर : आजकल लोग हाईटेक होते जा रहे हैं. मोबाइल के बिना हर किसी की दिनचर्या अधूरी है. इसी के साथ इन दिनों ब्लूटूथ ईयरबड,नेकबैंड और हेडफोन का चलन जोरों पर है. क्योंकि लोगों को फोन या म्यूजिक सुनने के लिए इन आधुनिक चीजों की जरुरत महसूस हुई.कंपनियां भी लोगों के जरुरत के हिसाब के हाई बेस पर ब्लूटूथ डिवाइस बनाने लगी.लेकिन इस आधुनिकता का खामियाजा अब इंसानों को चुकाना पड़ रहा है.आईए जानते हैं आखिर ब्लूटूथ हियरिंग डिवाइस से इंसानों को कितना खतरा है.

ब्लूटूथ डिवाइस क्यों बने खतरा ? : ब्लूटूथ नेकबैंड और ईयरबड्स का ज्यादा इस्तेमाल अब इंसानों के लिए नया खतरा पैदा कर रहा है.लोग अब ब्लूटूथ के इतने आदी हो चुके हैं कि वो जब तक जागते हैं तब तक इसका इस्तेमाल करते हैं.जिसके कारण कान की सुनने की क्षमता गिर रही है. यही नहीं कान में कई तरह की परेशानी पैदा हो रही है. ब्लूटूथ ईयरबड्स और नेकबैंड का ज्यादा इस्तेमाल प्रोफेशनल और युवा वर्ग कर रहा है. लेकिन युवाओं को ये टेक्नोलॉजी बहरा बना रही है. डॉक्टर्स की माने तो आमतौर पर 50 से 65 डेसीबल तक आवाज कानों के लिए सुरक्षित मानी गई है. लेकिन 70 डेसीबल से अधिक आवाज होने पर कानों में कई तरह की परेशानी शुरु हो जाती है. तेज आवाज में संगीत या दूसरी चीजें सुनने के कारण लोग बहरेपन का शिकार हो रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में ब्लूटूथ डिवाइस युवाओं को बना रहा बहरा (ETV BHARAT CHATTISGARH)


हाई फ्रेक्वेंसी के कारण कानों को पहुंच रही क्षति : रायपुर के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर राकेश गुप्ता ने बताया कि हेडफोन और ब्लूटूथ डिवाइसेस जो लोग लगाते हैं. वो हाई फ्रेक्वेंसी में आवाज सुनते हैं.लगातार इस्तेमाल करते रहने से हाई फ्रेक्वेंसी की आवाज भी धीमी सुनाई देने लगती है. कई लोग रात भर ब्लूटूथ लगाकर सोते हैं. ऐसे लोगों को सुनने की क्षमता कम होने की आशंका ज्यादा रहती है.

शुरुआती दिनों में सुनने की क्षमता कम होने के कारण कानों में सीटी बजने की आवाज के साथ ही कुछ आवाज सुनाई देती है, जो आसपास भी नहीं होती. अधिकांश युवा वर्ग जब ब्लूटूथ नेकबैंड या ईयरबड्स का इस्तेमाल करते हैं उस समय एक कान में आवाज ज्यादा सुनाई देती है और दूसरे कान में आवाज कम सुनाई देती है. तब उन्हें पता चलता है कि सुनने की क्षमता कान में कम हो गई है- राकेश गुप्ता, ईएनटी स्पेशलिस्ट

किन मरीजों को ईयरबड्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए : ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर राकेश गुप्ता ने बताया कि "ब्लूटूथ का अधिकांश इस्तेमाल करना आज के जमाने का अभिशाप है. ऐसे में लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि बिना ब्लूटूथ या हेडफोन के काम करें या फिर एक निश्चित डेसीबल में इसका इस्तेमाल करना चाहिए. ईयरबड्स का बार-बार इस्तेमाल करने से कान में बार-बार इंफेक्शन होने की संभावना भी बढ़ जाती है. ऐसे में जो डायबिटीज के मरीज हैं उनको बिल्कुल भी ईयरबड्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. आजकल के युवा वर्ग और जो प्रोफेशनल लोग हैं जिनको अपने काम में ज्यादा ऑनलाइन मीटिंग करनी पड़ती है. अनजाने में इसका वॉल्यूम बहुत ज्यादा रख लेते हैं या फिर लगातार सुनते हैं जिसकी वजह से कानों में नमी आ जाती हैं खुजली होती है और खुजलाहट बढ़ जाती है.


समाज की छिपी हुई बीमारी : हाई फ्रीक्वेंसी में सुनाई देने में कमी होने पर लोग बहरेपन का भी शिकार हो सकते हैं. ऐसे लोग डॉक्टर के पास पहुंचकर अपनी समस्या ब्लूटूथ और ईयरबडस को लेकर बताते हैं. यह समाज में छुपी हुई बीमारी है. इसकी पहचान बहुत लोग कम लोग कर पाते हैं. जब धीरे-धीरे सुनने की क्षमता कम होने लगती है तब पता चलता है कि वह बहरेपन के शिकार हो गए. इसको ठीक करना भी मुश्किल हो जाता है. सामान्य रूप से 50 से 55 डेसीबल तक की आवाज कानों को प्रभावित नहीं करती, लेकिन 70 डेसीबल से अधिक होने पर यह बहरेपन का कारण बन सकता है.

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ब्लूटूथ डिवाइस क्यों बने खतरा ? : ब्लूटूथ नेकबैंड और ईयरबड्स का ज्यादा इस्तेमाल अब इंसानों के लिए नया खतरा पैदा कर रहा है.लोग अब ब्लूटूथ के इतने आदी हो चुके हैं कि वो जब तक जागते हैं तब तक इसका इस्तेमाल करते हैं.जिसके कारण कान की सुनने की क्षमता गिर रही है. यही नहीं कान में कई तरह की परेशानी पैदा हो रही है. ब्लूटूथ ईयरबड्स और नेकबैंड का ज्यादा इस्तेमाल प्रोफेशनल और युवा वर्ग कर रहा है. लेकिन युवाओं को ये टेक्नोलॉजी बहरा बना रही है. डॉक्टर्स की माने तो आमतौर पर 50 से 65 डेसीबल तक आवाज कानों के लिए सुरक्षित मानी गई है. लेकिन 70 डेसीबल से अधिक आवाज होने पर कानों में कई तरह की परेशानी शुरु हो जाती है. तेज आवाज में संगीत या दूसरी चीजें सुनने के कारण लोग बहरेपन का शिकार हो रहे हैं.

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हाई फ्रेक्वेंसी के कारण कानों को पहुंच रही क्षति : रायपुर के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर राकेश गुप्ता ने बताया कि हेडफोन और ब्लूटूथ डिवाइसेस जो लोग लगाते हैं. वो हाई फ्रेक्वेंसी में आवाज सुनते हैं.लगातार इस्तेमाल करते रहने से हाई फ्रेक्वेंसी की आवाज भी धीमी सुनाई देने लगती है. कई लोग रात भर ब्लूटूथ लगाकर सोते हैं. ऐसे लोगों को सुनने की क्षमता कम होने की आशंका ज्यादा रहती है.

शुरुआती दिनों में सुनने की क्षमता कम होने के कारण कानों में सीटी बजने की आवाज के साथ ही कुछ आवाज सुनाई देती है, जो आसपास भी नहीं होती. अधिकांश युवा वर्ग जब ब्लूटूथ नेकबैंड या ईयरबड्स का इस्तेमाल करते हैं उस समय एक कान में आवाज ज्यादा सुनाई देती है और दूसरे कान में आवाज कम सुनाई देती है. तब उन्हें पता चलता है कि सुनने की क्षमता कान में कम हो गई है- राकेश गुप्ता, ईएनटी स्पेशलिस्ट

किन मरीजों को ईयरबड्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए : ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर राकेश गुप्ता ने बताया कि "ब्लूटूथ का अधिकांश इस्तेमाल करना आज के जमाने का अभिशाप है. ऐसे में लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि बिना ब्लूटूथ या हेडफोन के काम करें या फिर एक निश्चित डेसीबल में इसका इस्तेमाल करना चाहिए. ईयरबड्स का बार-बार इस्तेमाल करने से कान में बार-बार इंफेक्शन होने की संभावना भी बढ़ जाती है. ऐसे में जो डायबिटीज के मरीज हैं उनको बिल्कुल भी ईयरबड्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. आजकल के युवा वर्ग और जो प्रोफेशनल लोग हैं जिनको अपने काम में ज्यादा ऑनलाइन मीटिंग करनी पड़ती है. अनजाने में इसका वॉल्यूम बहुत ज्यादा रख लेते हैं या फिर लगातार सुनते हैं जिसकी वजह से कानों में नमी आ जाती हैं खुजली होती है और खुजलाहट बढ़ जाती है.


समाज की छिपी हुई बीमारी : हाई फ्रीक्वेंसी में सुनाई देने में कमी होने पर लोग बहरेपन का भी शिकार हो सकते हैं. ऐसे लोग डॉक्टर के पास पहुंचकर अपनी समस्या ब्लूटूथ और ईयरबडस को लेकर बताते हैं. यह समाज में छुपी हुई बीमारी है. इसकी पहचान बहुत लोग कम लोग कर पाते हैं. जब धीरे-धीरे सुनने की क्षमता कम होने लगती है तब पता चलता है कि वह बहरेपन के शिकार हो गए. इसको ठीक करना भी मुश्किल हो जाता है. सामान्य रूप से 50 से 55 डेसीबल तक की आवाज कानों को प्रभावित नहीं करती, लेकिन 70 डेसीबल से अधिक होने पर यह बहरेपन का कारण बन सकता है.

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