आगरा: श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनाम जामा मस्जिद मामले के दो केस की सुनवाई मंगलवार की दोपहर दीवानी स्थित लघुवाद न्यायालय में हुई. जिसमें जामा मस्जिद के जीपीआर सर्वे प्रार्थना पत्र पर आज से बहस शुरू हो गई.
वादी पक्ष योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट के प्रभु श्रीकृष्ण विग्रह केस में अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने पक्ष रखा कि जिला जज वाराणसी ने ज्ञानवापी केस में वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दिया और श्रीराम मंदिर केस में भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई ने सर्वे किया था.
एएसआई ने एक आरटीआई के जबाव ये जानकादी दी है कि जामा मस्जिद का अभी तक किसी भी प्रकार का उत्खनन व अन्वेषण नहीं किया गया है. अभिलेखों के अनुसार श्रीकृष्ण विग्रह जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे हैं. जामा मस्जिद का कितना भाग जमीन के नीचे दबा है यह सिर्फ जामा मस्जिद के जीपीआर सर्वे व अन्य वैज्ञानिक विधि के सर्वे से ही सम्भव है.
बहस के बाद कोर्ट ने अब मामले में अगली तारीख 30 नवंबर की लगाई है. बता दें कि योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट के श्रीकृष्ण विग्रह वाद बनाम सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड समेत अन्य में भारत संघ को विपक्षी बनाने का आदेश हुआ है.
श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट और जामा मस्जिद प्रबंधन समेत अन्य और योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट के श्रीकृष्ण विग्रह वाद बनाम सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड समेत अन्य में अभी एएसआई से जामा मस्जिद के जीपीआर सर्वे का प्रार्थना पत्र विचाराधीन है.
दूसरे मामले में वादी योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट और प्रतिवादी इंतजामिया कमेटी मस्जिद, सेंट्रल सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, लोकल इस्लामिया कमेटी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) अन्य हैं.
योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट के प्रभु श्रीकृष्ण विग्रह केस में वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि 15 मार्च को जामा मस्जिद की सीढ़ियों का जीपीआर सर्वे (वैज्ञानिक सर्वे) का प्रार्थना पत्र दाखिल किया था. जिस पर अब बहस शुरू हो गई है. जबकि, कोर्ट के आदेश पर एएसआई व संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार को इस मामले में विपक्षी बनाया गया है.
एएसआई ने पहले जामा मस्जिद के जीपीआर सर्वे को टालने के लिए हर संभव प्रयास किया. वहीं, दूसरे केस में वादी श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट के अधिवक्ता विनोद कुमार शुक्ला का कहना है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों का जीपीआर सर्वे से जामा मस्जिद का सच सबके सामने आएगा. पहले ही सभी प्रतिवादियों को जीपीआर सर्वे पर अपनी आपत्ति दाखिल की थी. इसके बाद ही आज मामले की सुनवाई हुई है.
जामा मस्जिद में दुकानें बनीं, एएसआई ने नहीं की कार्रवाई: अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि एएसआई के प्रथम महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट ए-टूर- इन इस्टर्न राजपुताना 1882-83 में लिखा है कि औरंगजेब ने मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मन्दिर के श्रीकृष्ण विग्रह आगरा की कुदसिया बेगम की सीढ़ियों नीचे पैरों से कुचलने के लिए दबाए थे.
इतिहासकारों ने भी बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे पैरों से कुचलने के लिए श्रीकृष्ण के विग्रह दबाए गए. सन 1920 ई में जामा मस्जिद संरक्षित स्मारक घोषित करने का नोटिफिकेशन जारी किया गया था. जिसमें जामा मस्जिद के चारों ओर किसी भी प्रकार निर्माण का उल्लेख नहीं है और ना ही मस्जिद में किसी भी प्रकार के इस्लामिक आयोजन का उल्लेख है.
लेकिन, अभी जामा मस्जिद में दुकानें बनी हैं. जो व्यापारिक उद्देश्य से संचालित हैं. जामा मस्जिद कानून के अनुसार एक राष्ट्रीय महत्व का स्मारक है. जिसके चारों तरफ 100 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं कराया जा सकता है. जिसके विरुद्ध विपक्षी एएसआई ने आजतक किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की.
जहांआरा ने बनवाई थी जामा मस्जिद: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल शहंशाह शाहजहां की 14 संतानें थीं. जिसमें मेहरून्निसा बेगम, जहांआरा, दारा शिकोह, शाह शूजा, रोशनआरा, औरंगजेब, उमेदबक्श, सुरैया बानो बेगम, मुराद लुतफुल्ला, दौलत आफजा और गौहरा बेगम शामिल थे. एक बच्चा पैदा होते ही मर गया था.
मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां की सबसे प्रिय बेटी जहांआरा थी. जहांआरा मुगलकाल की सबसे अमीर शहजादी थीं. उसने वजीफे की पांच लाख रुपये की रकम से सन 1643 से 1648 के बीच जामा मस्जिद का निर्माण कराया था.
औरंगजेब लाया था मथुरा से विग्रह और पुरावशेष: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि 16 वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर ध्वस्त कराया था. औरंगजेब केशवदेव मंदिर की मूर्तियों के साथ ही तमाम पुरावशेष मथुरा से आगरा लेकर आया था. तब उसने मूर्तियों और पुरावशेष को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाए. इस बारे में तमाम इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखा है.
इसमें औरंगजेब के सहायक रहे मुहम्मद साकी मुस्तइद्दखां ने अपनी पुस्तक 'मआसिर-ए-आलमगीरी', प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार की पुस्तक 'ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब', पुस्तक 'तवारीख़-ए-आगरा' और मथुरा के महशहूर साहित्यकार प्रो. चिंतामणि शुक्ल की पुस्तक ' मथुरा जनपद का राजनीतिक इतिहास' में भी जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मूर्तियां दबाने की बात विस्तार से लिखी है.
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