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छात्राओं की आर्ट फैकल्टी में अब रूचि नहीं, 5 एडमिशन और नहीं होते तो लटक जाता ताला - Shajapur Government Girls College

जैसे-जैसे समय बदला वैसे ही स्टूडेंट्स की रूचि रोजगार वाले कोर्स करने की तरफ बढ़ रही है. ऐसे में शाजापुर जिले का एकमात्र शासकीय गर्ल्स डिग्री कॉलेज पिछले 37 साल से सिर्फ आर्ट फैकल्टी के भरोसे चल रहा है. अब आलम ये है कि यहां एडमिशन ना के बराबर हो रहे हैं. ऐसे में अब यहां कभी भी ताला लटक सकता है.

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 9, 2024, 4:10 PM IST

SHAJAPUR GOVERNMENT GIRLS COLLEGE
5 एडमिशन और नहीं होते तो लटक जाता ताला (ETV Bharat)

शाजापुर: शासन ने छात्राओं की बेहतर शिक्षा के लिए 1987 में शाजापुर जिला मुख्यालय पर जिले का एकमात्र शासकीय कन्या महाविद्यालय शुरू किया था. जहां कला संकाय की पढ़ाई से शुरुआत की गई थी. उम्मीद थी कि समय के साथ-साथ यहां अन्य संकाय भी शुरू होंगे, लेकिन आज 37 साल बाद भी कला संकाय के अलावा यहां वाणिज्य या विज्ञान संकाय शुरू नहीं हो सका. इस कारण यहां लगातार छात्राओं की संख्या गिरती जा रही है. शिक्षा सत्र 2024-25 के लिए चल रही एडमिशन प्रक्रिया पर गौर करें, तो यहां बीए प्रथम वर्ष में 90 सीटों के मुकाबले महज 30 ही एडमिशन हुए हैं. यदि 25 से कम एडमिशन होते, तो शासन की गाइडलाइन के मान से जिले का एकमात्र कन्या महाविद्यालय इसी साल बंद हो जाता.

बीए प्रथम वर्ष में 90 सीटों पर हुए मात्र 30 एडमिशन (ETV Bharat)

कोई नए पाठ्यक्रम नहीं किए शुरू

प्राइवेट कॉलेज हों या सरकारी, समय के साथ हर कॉलेज में नए-नए कोर्स शुरू होते हैं लेकिन शाजापुर जिले का एक मात्र शासकीय गर्ल्स कॉलेज ऐसा है जहां कोई नया कोर्स शुरू नहीं हुआ. 1987 में शुरू हुए इस कॉलेज को 37 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन यहां कभी नए डिप्लोमा और डिग्री कोर्स के लिए प्रयास ही नहीं हुए. कॉलेज प्रबंधन ने बीते वर्षों में स्ववित्त योजना से यहां एमकॉम और बीकॉम संचालित किया था लेकिन फीस अधिक होने के कारण कम छात्राओं ने एडमिशन लिए, इस कारण दोनों ही कक्षाएं बंद हो गई. वर्तमान में यहां कला संकाय ही संचालित है, जिसमें साल दर साल छात्राओं की संख्या तेजी से कम हो रही है. तीसरे चरण के अंत तक यहां मात्र 30 एडमिशन हुए हैं जो कॉलेज के भविष्य के लिए काफी चिंताजनक है.

कॉलेज का स्थान बदलें, तो बढ़ सकते हैं एडमिशन

जिला मुख्यालय पर बने गर्ल्स कॉलेज की पुरानी बिल्डिंग किला परिसर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने स्थित थी. लेकिन नई बिल्डिंग किला परिसर के अंतिम छोर पर जाने से यहां हमेशा भय का माहौल बना रहता है. कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं एवं उनके अभिभावकों से चर्चा की तो उनका कहना था कि कॉलेज तक पहुंचने के लिए छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यहां अधिकांश छात्राएं ग्रामीण क्षेत्रों से आती हैं, जिन्हें बस स्टैंड या टंकी चौराहा से कॉलेज तक पैदल आना पड़ता है. वहीं किला गेट पर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है.

'कला संकाय में भी सभी विषय उपलब्ध नहीं'

छात्रा नंदिनी राठौड़ का कहना है कि "कला संकाय में भी जो विषय चाहिए वे भी नहीं हैं. मजबूरी में दूसरे विषय से बीए करना पड़ रही है." वहीं छात्रा जया यादव का कहना है कि "कॉलेज भले ही किला की बाउंड्रीवॉल के बीच है, लेकिन यहां जहरीले जानवर भी घूमते रहते हैं. जिसके कारण यहां खतरा बना रहता है. किला गेट से कॉलेज तक पहुंचने के लिए पक्का पहुंच मार्ग भी नहीं है, जिससे बारिश में परेशानी होती है. यदि यह कॉलेज एबी रोड या ऐसे किसी स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जाए, जहां आवागमन की सुविधा हो, तो छात्राओं के एडमिशन में बढ़ोत्तरी हो सकती है."

अतिथि शिक्षकों के भरोसे पढ़ाई का जिम्मा

गर्ल्स कॉलेज में स्थायी प्राचार्य का पद कई वर्षों से रिक्त है. यहां सहायक प्राध्यापक के 6 पद स्वीकृत हैं, इनमें से 4 पर अतिथि विद्वान कार्यरत हैं. जबकि एक पर स्थायी प्राध्यापक कार्यरत हैं. एक पद पूरी तरह खाली पड़ा है. ग्रंथपाल का पद भरा है, लेकिन ग्रंथपाल पिछले 2 साल से बिना सूचना के अनुपस्थित चल रही हैं. क्रीड़ा अधिकारी के पद पर भी अतिथि विद्वान कार्यरत है. कार्यालय की बात करें तो मुख्य लिपिक, लेखापाल, भृत्य, प्रयोगशाला परिचारक, स्वीपर का पद भी लंबे समय से रिक्त है. वहीं कॉलेज में पदस्थ चौकीदार ने भी हाल ही में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है. साल के अंत में एक सहायक ग्रेड - 3 भी रिटायर्ड होने वाले हैं. ऐसे में यह कॉलेज शैक्षणिक और कार्यालयीन स्टाफ की कमी से भी जूझ रहा है, जिसका सीधा असर छात्राओं की पढ़ाई पर पड़ रहा है.

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कई बार आवेदन दिए, नहीं हुई सुनवाई

प्रभारी प्राचार्य डॉ. पी मूंदडा का कहना है कि गर्ल्स कॉलेज प्रबंधन ने कॉलेज में कम हो रहे एडमिशन की संख्या बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं. कई बार उच्च अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को आवेदन दिए, जिसमें मांग की गई कि कॉलेज में 1987 से सिर्फ कला संकाय संचालित है. यदि यहां शासन स्तर पर वाणिज्य संकाय या विज्ञान संकाय शुरू किया जाता है, तो एडमिशन की संख्या बढ़ सकती है. कॉलेज को बहुसंकाय करने के लिए छात्राओं द्वारा भी मांग की जा रही है. इसे लेकर उच्च शिक्षा विभाग के साथ प्रयास जारी हैं.

शाजापुर: शासन ने छात्राओं की बेहतर शिक्षा के लिए 1987 में शाजापुर जिला मुख्यालय पर जिले का एकमात्र शासकीय कन्या महाविद्यालय शुरू किया था. जहां कला संकाय की पढ़ाई से शुरुआत की गई थी. उम्मीद थी कि समय के साथ-साथ यहां अन्य संकाय भी शुरू होंगे, लेकिन आज 37 साल बाद भी कला संकाय के अलावा यहां वाणिज्य या विज्ञान संकाय शुरू नहीं हो सका. इस कारण यहां लगातार छात्राओं की संख्या गिरती जा रही है. शिक्षा सत्र 2024-25 के लिए चल रही एडमिशन प्रक्रिया पर गौर करें, तो यहां बीए प्रथम वर्ष में 90 सीटों के मुकाबले महज 30 ही एडमिशन हुए हैं. यदि 25 से कम एडमिशन होते, तो शासन की गाइडलाइन के मान से जिले का एकमात्र कन्या महाविद्यालय इसी साल बंद हो जाता.

बीए प्रथम वर्ष में 90 सीटों पर हुए मात्र 30 एडमिशन (ETV Bharat)

कोई नए पाठ्यक्रम नहीं किए शुरू

प्राइवेट कॉलेज हों या सरकारी, समय के साथ हर कॉलेज में नए-नए कोर्स शुरू होते हैं लेकिन शाजापुर जिले का एक मात्र शासकीय गर्ल्स कॉलेज ऐसा है जहां कोई नया कोर्स शुरू नहीं हुआ. 1987 में शुरू हुए इस कॉलेज को 37 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन यहां कभी नए डिप्लोमा और डिग्री कोर्स के लिए प्रयास ही नहीं हुए. कॉलेज प्रबंधन ने बीते वर्षों में स्ववित्त योजना से यहां एमकॉम और बीकॉम संचालित किया था लेकिन फीस अधिक होने के कारण कम छात्राओं ने एडमिशन लिए, इस कारण दोनों ही कक्षाएं बंद हो गई. वर्तमान में यहां कला संकाय ही संचालित है, जिसमें साल दर साल छात्राओं की संख्या तेजी से कम हो रही है. तीसरे चरण के अंत तक यहां मात्र 30 एडमिशन हुए हैं जो कॉलेज के भविष्य के लिए काफी चिंताजनक है.

कॉलेज का स्थान बदलें, तो बढ़ सकते हैं एडमिशन

जिला मुख्यालय पर बने गर्ल्स कॉलेज की पुरानी बिल्डिंग किला परिसर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने स्थित थी. लेकिन नई बिल्डिंग किला परिसर के अंतिम छोर पर जाने से यहां हमेशा भय का माहौल बना रहता है. कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं एवं उनके अभिभावकों से चर्चा की तो उनका कहना था कि कॉलेज तक पहुंचने के लिए छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यहां अधिकांश छात्राएं ग्रामीण क्षेत्रों से आती हैं, जिन्हें बस स्टैंड या टंकी चौराहा से कॉलेज तक पैदल आना पड़ता है. वहीं किला गेट पर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है.

'कला संकाय में भी सभी विषय उपलब्ध नहीं'

छात्रा नंदिनी राठौड़ का कहना है कि "कला संकाय में भी जो विषय चाहिए वे भी नहीं हैं. मजबूरी में दूसरे विषय से बीए करना पड़ रही है." वहीं छात्रा जया यादव का कहना है कि "कॉलेज भले ही किला की बाउंड्रीवॉल के बीच है, लेकिन यहां जहरीले जानवर भी घूमते रहते हैं. जिसके कारण यहां खतरा बना रहता है. किला गेट से कॉलेज तक पहुंचने के लिए पक्का पहुंच मार्ग भी नहीं है, जिससे बारिश में परेशानी होती है. यदि यह कॉलेज एबी रोड या ऐसे किसी स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जाए, जहां आवागमन की सुविधा हो, तो छात्राओं के एडमिशन में बढ़ोत्तरी हो सकती है."

अतिथि शिक्षकों के भरोसे पढ़ाई का जिम्मा

गर्ल्स कॉलेज में स्थायी प्राचार्य का पद कई वर्षों से रिक्त है. यहां सहायक प्राध्यापक के 6 पद स्वीकृत हैं, इनमें से 4 पर अतिथि विद्वान कार्यरत हैं. जबकि एक पर स्थायी प्राध्यापक कार्यरत हैं. एक पद पूरी तरह खाली पड़ा है. ग्रंथपाल का पद भरा है, लेकिन ग्रंथपाल पिछले 2 साल से बिना सूचना के अनुपस्थित चल रही हैं. क्रीड़ा अधिकारी के पद पर भी अतिथि विद्वान कार्यरत है. कार्यालय की बात करें तो मुख्य लिपिक, लेखापाल, भृत्य, प्रयोगशाला परिचारक, स्वीपर का पद भी लंबे समय से रिक्त है. वहीं कॉलेज में पदस्थ चौकीदार ने भी हाल ही में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है. साल के अंत में एक सहायक ग्रेड - 3 भी रिटायर्ड होने वाले हैं. ऐसे में यह कॉलेज शैक्षणिक और कार्यालयीन स्टाफ की कमी से भी जूझ रहा है, जिसका सीधा असर छात्राओं की पढ़ाई पर पड़ रहा है.

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कई बार आवेदन दिए, नहीं हुई सुनवाई

प्रभारी प्राचार्य डॉ. पी मूंदडा का कहना है कि गर्ल्स कॉलेज प्रबंधन ने कॉलेज में कम हो रहे एडमिशन की संख्या बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं. कई बार उच्च अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को आवेदन दिए, जिसमें मांग की गई कि कॉलेज में 1987 से सिर्फ कला संकाय संचालित है. यदि यहां शासन स्तर पर वाणिज्य संकाय या विज्ञान संकाय शुरू किया जाता है, तो एडमिशन की संख्या बढ़ सकती है. कॉलेज को बहुसंकाय करने के लिए छात्राओं द्वारा भी मांग की जा रही है. इसे लेकर उच्च शिक्षा विभाग के साथ प्रयास जारी हैं.

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