शहडोल। अगर मन में ठान लिया जाए, कड़ी मेहनत की जाए, तो सपने को साकार करने से कोई नहीं रोक सकता है. ऐसी ही कहानी है शहडोल जिले की एक महिला मीना कुशवाहा की. जिसके पास कभी दो वक्त के खाने का भी जुगाड़ नहीं था. साइकल से अपने सफर की शुरुआत की, सपना खुद की कार खरीदकर ड्राइव करने का था. जिसे मीना कुशवाहा ने अपने मेहनत से कर दिखाया. मीना कुशवाहा के संघर्ष की कहानी आज दूसरी महिलाओं के लिए भी एक बड़ी प्रेरणा है.
गरीबी से ऐसे किया संघर्ष
मीना कुशवाहा शहडोल जिले के लालपुर ग्राम पंचायत के नौघड़िया गांव की रहने वाली हैं. वो बताती हैं कि 'जब मैं यहां शादी करके आई थी, तो परिवार में बड़ी गरीबी थी. दो वक्त की रोटी खाना भी मुश्किल था. दाल चावल तो छोड़िए रोटी कैसे मिले इसका जुगाड़ भी मुश्किल था. पति मजदूरी करते थे, पेंटिंग का काम करते थे और उस समय ₹100 मजदूरी मिलती थी. दिन भर की मजदूरी 100 रुपये, सोचिए कैसे घर चलता रहा होगा.'
'ऐसे में मुझे लगा की कैसे हम इतने कम पैसे में घर चला पाएंगे. जिंदगी कैसी चलेगी, तो फिर मैंने भी सिलाई का काम सीखा और एक सेकंडहैंड सिलाई मशीन खरीद ली. नई मशीन खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. सेकंड हैंड मशीन खरीद कर मैं अपनी बस्ती से ढाई किलोमीटर दूर जाकर एक घनी बस्ती, जो ट्राइबल एरिया था. वहां रास्ते में सड़क पर मशीन रखकर सिलाई का काम करती थी.
धीरे-धीरे मेरे पास कस्टमर आने लग गए. कुछ कमाई भी होने लग गई और घर भी बढ़िया चलने लग गया. भोजन का जुगाड़ तो हो गया. धीरे-धीरे मैंने दुकान को बढ़ाना शुरू किया. पैसे आने लगे तो फिर मैं जो कपडे़ सिलती थी, उसे रखना भी शुरू कर दिया. ब्लाउज के पीस रखना भी शुरू कर दिए. जो मेरे पास ब्लाउज सिलाने आता था, उसे कपड़े भी दिखाती थी, वो कपड़े खरीद लेता था और सिलाई भी करा लेता था. उससे मेरी दुकान बढ़ने लग गई. इसके बाद मैंने उसमें किराना सामान रखना भी शुरू कर दिया. किराने की दुकान भी वहां चलाने लगी. काम बेहतर चल रहा था, आमदनी भी हो रही थी.'
ट्रेनर मास्टर बनकर गांवों में जाने लगी
मीना कुशवाहा बताती हैं कि इसके बाद मैं दूर-दूर के गांव में सिलाई सिखाने जाने लगी. ट्रेनर मास्टर के रूप में मुझे मौका मिला. महिला स्वावलंबन स्वरोजगार योजना के तहत मुझे ट्रेनर मास्टर बनाया गया था. मैं अलग-अलग गांव की महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग देने लगी. उसी दौरान मुझे ₹5000 मंथली पेमेंट भी मिलने लगा. उससे मेरे परिवार को काफी सहारा मिला. जब मैं सिलाई सीखने जाती थी, तो वहां भी कपड़े खरीद कर ले जाती थी. साथ में रखे रहती थी जिन महिलाओं को पसंद आ जाता था, उन्हें बेच भी देती थी, उससे मेरा व्यापार भी चलता रहता था.
आजीविका मिशन का मिला सहारा
इसके बाद आजीविका मिशन से संपर्क हुआ, तो उनको लगा कि इस महिला में प्रतिभा काफी है. दूसरी महिलाओं के समूह बना सकती है. दूसरी महिलाओं को जोड़ सकती है. तो फिर मैंने अपना खुद का समूह बनाया. इसके बाद जिले में कई गांव में जाकर आजीविका मिशन वालों के साथ कई ग्रुप कई समूह बनवाए. इसके लिए महिलाओं को प्रेरित किया. महिलाओं को बाहर निकाला. वहां से भी मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. 32 गांव में जाकर मैंने समूह बनवाया.
पढ़ाई से भी प्रेम
मीना कुशवाहा कहती हैं कि जब मेरी शादी हुई थी, तो मैं पांचवी क्लास तक ही पढ़ी थी. जब हमारे पास थोड़ी संपन्नता हुई. पैसे आये तो मेरे हस्बैंड ने मुझे रेगुलर 10वीं तक पढ़ने के लिए मौका दिया. फिर मैंने 10वीं तक पढ़ाई की. इसके बाद आजीविका मिशन से जिले में कई महिलाओं से मेरा परिचय हुआ.
राजनीति में भी जाने का सपना था
इसके बाद मेरा सपना था कि भविष्य में मौका मिला तो पॉलिटिक्स में भी हाथ आजमाना है. समाज की सेवा करना है, तो उसमें भी मैंने शुरुआत की. पहली बार गांव में वार्ड में पंच बनी. पंच बनकर मैं गांव की सेवा करने की कोशिश की फिर उसके बाद मुझे जनपद सदस्य बनने का भी मौका मिला. इसके लिए मेरे पास कोई गाड़ी नहीं थी, तो मैंने एक स्कूटी खरीदी थी. इस स्कूटी पर ही लाउड स्पीकर लगाकर दो पंचायत में जाकर प्रचार प्रसार करती थी. जिसके बाद पहली बार जनपद सदस्य बनी थी.
मैं किसी के कहने पर राजनीति में नहीं आई मेरे पति की भी इच्छा थी कि अपने गांव में सम्मान बनाने के लिए चुनाव लड़ना चाहिए. उन्होंने मौका दिया और मैं चुनाव लड़ी. भविष्य में मौका मिला तो राजनीति में भी आगे आऊंगी. इसके अलावा अखिल भारतीय महासभा कुशवाहा समाज की जिला अध्यक्ष भी हूं.
बच्चों को पढ़ाना सपना
मीना कुशवाहा कहती हैं कि मैं तो ज्यादा नहीं पढ़ पाई, लेकिन बच्चों को हायर एजुकेशन देना ये मेरा सपना था. इसके लिए मैंने शुरुआत से उन्हें इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाया. मेरा छोटा वाला बेटा भोपाल में बी फार्मा कर रहा है. मेरा एक बेटा बीएमएलटी कर रहा है.
जैविक खेती, हल्दी को बढ़ावा
मीना कुशवाहा कहती हैं कि 4 एकड़ जमीन में मैं खेती भी कर रही हूं, जिसमें जैविक खेती को प्रमोट कर रही हूं. जिसमें दो एकड़ जमीन मेरी खुद की है. दो एकड़ जमीन मैंने दूसरे किसानों से ली है. इसके अलावा मैं हल्दी की खेती भी जैविक कर रही हूं और हल्दी में बड़ा काम करना चाह रही हूं. एक एकड़ में अभी हल्दी की खेती कर रही हूं. हल्दी से मैं कई प्रोडक्ट भी तैयार करती हूं. हल्दी का पूरा काम करती हूं. फिर उसे उबालना फिर उसे सुखाना फिर उसे पीस कर उसके पैकेट बनाना पैकेट बनाकर अपने समूह का लोगो लगाकर बेचती भी हूं. हल्दी की मेरी अच्छी सप्लाई हो रही है. कच्ची हल्दी का अचार भी बनाती हूं. मेरे हल्दी के अचार की काफी डिमांड भी है. भोपाल में राष्ट्रीय वन मेला था, जहां काफी हल्दी के अचार की डिमांड थी.
मसाला यूनिट डालने की तैयारी
मीना कुशवाहा कहती हैं कि इसके अलावा मेरा आगे का विचार घर में एक मसाला यूनिट डालने का है. खाद्य प्रसंस्करण विभाग की ओर से मुझे 1 लाख 20,000 रुपए की राशि मिली है. लोन के रूप में उसमें मसाला यूनिट डाल रही हूं, हल्दी और मसाले का काम करने का सपना है. इसके अलावा पार्ट टाइम ब्यूटी पार्लर का भी काम करती हूं. अगर मेरे पास ग्राहक आ गए तो ब्यूटी पार्लर की सेवा भी देती हूं. मैं हर दिन 5:00 बजे सुबह उठती हूं और 11:00 बजे रात तक काम करती हूं.
कई महिलाओं को सिखा रहीं
मीना कुशवाहा खुद तो आगे बढ़ ही रही हैं. साथ ही कई महिलाओं को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहती हैं. मीना कहती हैं कि उनके साथ गांव की करीब 200 महिला जुड़ी हुई हैं. इसके अलावा जिले भर की बात करें तो 2000 महिला उनके साथ जुड़ी हुईं है और जो उनके टच में रहती हैं, जिन्हें वो सिखाती रहती हैं.
लखपति क्लब में हैं शामिल
मीना कुशवाहा अपने अथक परिश्रम कड़े संघर्ष की बदौलत अब लखपति क्लब में भी शामिल हो गई हैं. मीना कहती हैं कि पहले तो हमें महीने में तो 2000 रुपये मिलना भी मुश्किल होता था, लेकिन अब 8 से ₹10,000 महीने कमा लेते हैं. अब वो लखपति क्लब में शामिल हो गई हैं. साल भर में लगभग लाख रुपए से ऊपर ही कमा लेती हैं.
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कार का सपना हुआ पूरा
मीना कहती हैं कि अब मेरा घर भी ठीक चल रहा है. जमीन भी मैंने थोड़ी बहुत ले ली है. घर भी मेरा बन चुका है. मेरा एक सपना था कि मैं कार खरीद लूं खुद ड्राइव करूं और उससे मैं अपना काम करूं तो मैं अब एक कार भी लोन पर ले लिया है. जिसका किस्त मैं दे रही हूं और कार ड्राइव कर रही हूं. अपने सपने को जी रही हूं.