अजमेर. प्रदेश में भीषण गर्मी और लू का प्रकोप शुरू हो चुका है. कई जिलों में पारा 45 डिग्री के पार हो गया है. गर्मी के इस मौसम में स्वयं को सुरक्षित रखना आवश्यक है. जरा सी लापरवही स्वास्थ्य के लिए काफी घातक हो सकती है. आयुर्वेद पद्धति के अनुसार लू (हीट वेव) का कारगर इलाज है. जेएलएन अस्पताल में आयुर्वेद विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ बीएल मिश्रा ने बताया कि कुछ आवश्यक जानकारी से लू से बचा जा सकता है. आइए जानते हैं डॉ मिश्रा से लू के कारण, लक्षण और उपचार संबंधी हेल्थ टिप्स.
प्रदेश में तेज धूप और गर्म हवाओं ने लोगों के जीवन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. गर्मी और लू से ग्रस्त कई मरीज अस्पतालों में आ रहे हैं. गर्मी के मौसम में लू से स्वयं को बचाना आवश्यक है. आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्म ऋतु को आदान काल कहते हैं. आयुर्वेद विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ बीएल मिश्रा ने बताया कि ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें धरती पर सीधे आती हैं. इससे धरती का तापमान बढ़ जाता है. धरती, वनस्पति और प्राणियों के शरीर में तीव्र ताप के कारण पानी अचूषन (सूखना) होता है. इस कारण शरीर में स्थित पित्त की तीव्र विकृति होती है, जिससे शरीर में तापमान बढ़ जाता है. शरीर का तापमान बढ़ने के कारण रक्त गाढ़ा हो जाता है. इससे मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी होती है. वहीं, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और ह्रदय की गति भी बढ़ जाती है. डॉ मिश्रा बताते हैं कि पित्त की तीव्र विकृति को वापस संतुलित करने का मतलब ही लू से बचाव है.
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लू लगने के कारण : डॉ मिश्रा बताते हैं कि गर्मी के मौसम में अक्सर लोग लापरवाही करते हैं और लू की चपेट में आ जाते हैं. उन्होंने बताया कि गर्मी के मौसम में भूखे पेट और प्यासे धूप में घूमने के कारण व्यक्ति लू की चपेट में आ जाता है. इसके अलावा धूप में ज्यादा देर तक रहना भी हानिकारक है. इन कारणों से पित्त की तीव्र विकृति हो जाती है और यह लू का कारण बनती है. उन्होंने बताया कि लू लगने पर चिकित्सक से परामर्श लेकर इलाज जरूर लें. इलाज में देरी जनलेवा भी साबित हो सकती है.
लू के लक्षण : डॉ मिश्रा ने बताया कि लू की चपेट में आने पर व्यक्ति के शरीर का तापमान बढ़ने लगता है. ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है. मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. इससे तेज सिर दर्द होने लगता है. शरीर में पानी की कमी के कारण उल्टी, दस्त होने लगते हैं. आंखें लाल हो जाती हैं और हृदय की गति भी बढ़ जाती है. कई बार व्यक्ति बेहोश भी हो जाता है. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि लू की चपेट में आने से बेहोश हुए व्यक्ति को पानी नहीं पिलाना चाहिए. अचेत व्यक्ति को पानी पिलाने पर पानी फेफड़ों में जा सकता है. इस कारण रोगी की मौत भी हो सकती है. उन्होंने बताया कि शरीर में पित्त की विकृति से व्यक्ति को भूख नहीं लगती. इस कारण लू से ग्रस्त रोगी शरीर में कमजोरी महसूस करता है.
लू से ऐसे करें बचाव : डॉक्टर ने बताया कि आदान काल में भूखे-प्यासे बाहर जाना मुसीबत मोल लेना है. गर्मी के मौसम में सूती कपड़े पहनना चाहिए. घर से बाहर निकलते वक्त शरीर को कपड़े से ढंक कर रखें. सिर और चेहरे को भी कपड़े से ढंक कर रखना चाहिए. तेज गर्मी में लंबी यात्रा करने से बचना चाहिए. भोजन में गरम मसाले का ज्यादा उपयोग नहीं करना चाहिए. डॉ मिश्रा बताते हैं कि इस मौसम में खाना अधिक नहीं खाना चाहिए, लेकिन बार-बार थोड़ा-थोड़ा खाना आवश्यक है. डिब्बा बंद, बासी खाना और जंक फूड ना खाएं. उन्होंने बताया कि गर्मी के मौसम में रसदार फलों का सेवन करना लाभकारी है. तरबूज, खरबूजा, संतरा, नारियल पानी, अनानास, टमाटर, चीकू, आम का सेवन गुणकारी है. इसके अलावा दही, छाछ, लस्सी, शरबत, गन्ने का रस, श्रीखंड, शिकंजी आदि शीतल पेय पदार्थ का उपयोग भी लाभदायक है. इसके अलावा आम का पाना, जौ की राब, दाणी का सत्तू का सेवन भी फायदेमंद है. गर्मी के मौसम में बार-बार पानी पीना चाहिए. साथ ही आंखों पर रंगीन चश्मा लगाकर ही धूप में बाहर निकलना चाहिए.
लू लगने पर यह घरेलू नुस्खे भी कारगर : आयुर्वेद विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ बीएल मिश्रा बताते हैं कि लू लगने पर घरेलू नुस्खे का उपयोग भी कारगर होते हैं. डॉ मिश्रा ने बताया कि लू लगने पर पुदीने के पत्तों को चबाकर खाने से राहत मिलती है. साथ ही पुदीने के पत्तों को मुंह और सीने पर मलने से भी फायदा होता है. उन्होंने बताया कि लू लगने पर रोगी के बदन को गीले कपड़े से पोछना चाहिए. ऐसा करने से त्वचा के छिद्रों के माध्यम से शरीर को पानी की पूर्ति होती है. डॉ मिश्रा बताते हैं कि केरी का पाना, जिसमें शक्कर, काला नमक, पुदीना, जीरा मिलाकर पीने से भी फायदा होता है. इसके अलावा दही में प्याज के छोटे टुकड़े खाना, काला नमक, सूखा पुदीना, शक्कर मिलाकर खाने के साथ सेवन करने से भी लू में राहत मिलती है.