जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने बिजली कर्मचारी को 26 साल पहले दिए सेवा परिलाभ को उसे रिटायर होने के 7 साल बाद वापस लेने के आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में प्रमुख ऊर्जा सचिव और जेवीवीएनएल के प्रबंध निदेशक सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश राम अवतार की याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए.
याचिका में अधिवक्ता विजय पाठक ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता पूर्व में राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड में कार्यरत था. वर्ष 1998 में पदोन्नति के फलस्वरूप उसे पे-फिक्सेशन का लाभ दिया गया. वहीं, बाद में समय-समय पर याचिकाकर्ता को चयनित वेतनमान और पदोन्नति दी गई. इसी बीच विद्युत निगम बनने पर बोर्ड के कर्मचारियों को पांच निगमों में बांट दिया और याचिकाकर्ता को जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में लगा दिया. यहां से याचिकाकर्ता वर्ष 2017 में रिटायर हो गया.
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याचिका में कहा गया कि गत दिसंबर माह में जेवीवीएनएल ने वर्ष 1998 में दिए गए पे-फिक्सेशन को गलत बताते हुए अधिक दिए भुगतान की रिकवरी निकाल दी और उसी के अनुरूप वर्तमान पे-फिक्सेशन को कम करते हुए पेंशन भी कम करने के आदेश जारी कर दिए. इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि कर्मचारी की पेंशन राशि से किसी तरह की वसूली नहीं की जा सकती है. इसके अलावा उसे 26 साल पहले दिए परिलाभ को नियमानुसार सही दिया गया था.
याचिकाकर्ता सहित करीब 54 कर्मचारियों को यह परिलाभ दिया गया था, लेकिन जेवीवीएनएल में समायोजित किए 14 कर्मचारियों से ही यह रिकवरी की जा रही है. जबकि अन्य बिजली निगमों में तैनात कर्मचारियों से इस तरह की रिकवरी नहीं हुई है. ऐसे में याचिकाकर्ता के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता. इसके अलावा रिकवरी से पूर्व उसे न तो कोई नोटिस दिया गया और ना ही उसे पक्ष रखने का मौका दिया गया. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने रिकवरी आदेश पर रोक लगाते हुए संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है.