रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव बेहद करीब है, ऐसे में हर राजनीतिक दल अपने नफा नुकसान को ध्यान में रखते हुए जीत की रणनीति बनाने में जुटे हैं. 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में मुकाबला मुख्य रूप से बीजेपी और महागठबंधन के बीच था. लेकिन इस बार इंडिया गठबंधन का मुकाबला बीजेपी की अगुवाई वाले मजबूत एनडीए से है. असम के मुख्यमंत्री और झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने भी संकेत दिया है कि एनडीए में आजसू और जेडीयू उनके सहयोगी होंगे.
दूसरी तरफ, सत्ताधारी महागठबंधन ने भी 2019 के मुकाबले अपने कुनबे का विस्तार किया है. इस बार राज्य में इंडिया ब्लॉक के तहत माले महागठबंधन में शामिल हो गई है. उत्तरी छोटानागपुर के कई इलाकों में माले पहले से ज्यादा मजबूत भी हो गई है क्योंकि मासस का माले में विलय हो गया है. तो वहीं भाजपा और जेवीएम के सीटिंग विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने से कुछ विधानसभा सीटों पर इंडिया ब्लॉक का समीकरण बदल गया है. ऐसे में कुछ सीटों पर 2019 के मुकाबले इस बार इंडिया ब्लॉक के दलों की बीच सीटों की अदला-बदली की संभावना है. ऐसे ही कुछ सीटे हैं, जिन्हें लेकर चर्चा जोरों पर है.
भवनाथपुर विधानसभा सीट
इंडिया ब्लॉक और खासकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो इस बार पलामू प्रमंडल की यह सीट कांग्रेस की जगह झारखंड मुक्ति मोर्चा के खाते में जा सकती है. झारखंड की राजनीति पर दो दशक से ज्यादा समय से नजर रख रहे वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह इसके दो कारण भी बताते हैं.
सतेंद्र सिंह कहते हैं कि 2019 में यह सीट महागठबंधन में कांग्रेस के खाते में गई थी, लेकिन महागठबंधन का उम्मीदवार होने के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार केदार प्रसाद को महज 10,895 वोट ही मिल पाए थे और वे चौथे स्थान पर रहे थे. जबकि बसपा उम्मीदवार सोगरा बीबी 56914 वोट पाकर दूसरे स्थान पर और निर्दलीय अनंत प्रताप देव 53050 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे. आज अनंत प्रताप देव झारखंड मुक्ति मोर्चा में हैं और हाल ही में मंईयां सम्मान यात्रा के दौरान रोड शो से लेकर सभाओं तक अनंत प्रताप देव की मेहनत को देखकर पार्टी काफी खुश है. ऐसे में पूरी संभावना है कि इस बार भवनाथपुर में कांग्रेस की जगह जेएमएम उम्मीदवार मैदान में होंगे.
बरकट्ठा विधानसभा सीट
महागठबंधन दलों के बीच सीटों की अदला-बदली की प्रबल संभावना वाली दूसरी सीट उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल की बरकट्ठा विधानसभा सीट है. राजद की राजनीति को बेहद करीब से समझने वाले पत्रकार अशोक कहते हैं कि 2019 के विधानसभा चुनाव में राजद को 07 विधानसभा सीटें मिली थीं. चुनाव नतीजों पर गौर करें तो बरकट्ठा ही एकमात्र ऐसी सीट थी, जिसने लालू प्रसाद की पार्टी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई. महागठबंधन का उम्मीदवार होने के बावजूद राजद उम्मीदवार इतना कमजोर साबित हुआ कि उसे महज 4867 वोट ही मिल पाए, वह अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया. वरना 2019 में भले ही राजद मात्र 01 विधानसभा सीट जीत पाई हो, लेकिन कोडरमा, गोड्डा, देवघर और हुसैनाबाद में उसने विपक्ष को कड़ी टक्कर दी थी.
उन्होंने बताया कि मनिका को छोड़ दें तो 2019 में बरकट्ठा सीट पर निर्दलीय अमित यादव ने 75572 वोट पाकर जीत दर्ज की थी, जबकि भाजपा प्रत्याशी जानकी यादव 56914 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे. आज अमित यादव भाजपा में हैं और जानकी यादव झारखंड मुक्ति मोर्चा में हैं. ऐसे में इस बात की प्रबल संभावना है कि इस बार विधानसभा चुनाव में राजद की जगह बरकट्ठा से झामुमो प्रत्याशी चुनाव लड़े.
सिमरिया विधानसभा सीट
सीटों की अदला-बदली की प्रबल संभावना वाली तीसरी सीट सिमरिया विधानसभा सीट है. 2019 में भाजपा के किशुन दास 61428 वोट पाकर यहां से विधायक बने थे. तब महागठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई थी. महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर भी कांग्रेस के योगेंद्र नाथ बैठा को मात्र 27665 वोट ही मिल पाए थे, जबकि आजसू उम्मीदवार के तौर पर मनोज चंद्रा को 50442 वोट मिले थे और तब उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी थी. अब मनोज चंद्रा झारखंड मुक्ति मोर्चा में हैं, इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जगह मनोज चंद्रा सिमरिया से झामुमो उम्मीदवार के तौर पर नजर आ सकते हैं.
बिश्रामपुर विधानसभा सीट
2019 में तेजस्वी यादव ने आखिरी वक्त तक बिश्रामपुर सीट के लिए महागठबंधन पर जबरदस्त दबाव बनाया था, इतना ही नहीं रांची में रहते हुए भी प्रेस क्लब में उन्होंने हेमंत सोरेन-आलमगीर आलम की प्रेस कॉन्फ्रेंस से दूरी बनाए रखी थी. तब लालू प्रसाद के हस्तक्षेप के कारण महागठबंधन टूटने से बच गया था और बिश्रामपुर सीट कांग्रेस के खाते में चली गई थी. कांग्रेस ने तब अपने दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री ददई दुबे उर्फ चंद्रशेखर दुबे को अपना उम्मीदवार बनाया था. 2019 के चुनाव में बिश्रामपुर के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस और महागठबंधन दोनों को परेशान कर दिया था. महागठबंधन के उम्मीदवार होने के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार ददई दुबे चौथे स्थान पर रहे थे, उन्हें 26957 वोट मिले थे. तब यह सीट बीजेपी ने जीती थी.
मांडू विधानसभा सीट
परंपरागत रूप से यह सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा की मानी जाती रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव में भी यह सीट महागठबंधन में जेएमएम के खाते में गई थी, लेकिन दो वजहों से इस बार मांडू की सीट कांग्रेस की झोली में जाती दिख रही है. पहली वजह यह है कि 2019 में बीजेपी के सिंबल पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे जयप्रकाश भाई पटेल लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और दूसरी वजह यह है कि महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर जेएमएम उम्मीदवार रामप्रकाश भाई पटेल 44768 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे. तब आजसू उम्मीदवार निर्मल महतो ने जेपी पटेल को कड़ी टक्कर दी थी और 47793 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे. 2019 के विजयी उम्मीदवार के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यहां कांग्रेस की दावेदारी मजबूत है.
पोड़ैयाहाट विधानसभा सीट
मांडू की तरह ही एक और सीट पोड़ैयाहाट की है, जहां के विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. 2019 में पोड़ियाहाट की सीट महागठबंधन में झामुमो के खाते में गई थी. झामुमो ने अशोक कुमार को महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन यहां मुकाबला झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार प्रदीप यादव (77358 वोट) और भाजपा उम्मीदवार गजाधर सिंह (63751 वोट) के बीच रहा. झामुमो उम्मीदवार अशोक कुमार (34745 वोट) तीसरे स्थान पर रहे थे, इसलिए अब जबकि प्रदीप यादव कांग्रेस में हैं, तो बहुत संभव है कि सीट बंटवारे में यह सीट इस बार झामुमो की जगह कांग्रेस के खाते में चली जाए.
तोरपा विधानसभा सीट
झारखंड विधानसभा की तोरपा ऐसी सीट है, जहां सीट बंटवारे के फॉर्मूले के मुताबिक 2019 की तरह इस बार भी झारखंड मुक्ति मोर्चा का दावा है, लेकिन सत्ताधारी दलों के बीच चर्चा है कि यह सीट तय करेगी कि महागठबंधन दलों के शीर्ष नेताओं के बीच कितनी समझ है या भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए ये दल आपस में कितनी कुर्बानी देने को तैयार हैं. इस सीट पर 2019 में भाजपा के कोचे मुंडा ने 43482 वोट पाकर जीत दर्ज की थी, जबकि झामुमो के सुदीप गुड़िया 33852 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे.
इस बार चर्चा है कि कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रदीप बलमुचू को एडजस्ट करने के लिए तोरपा सीट कांग्रेस के खाते में जाए. कांग्रेस की बीट पर लंबे समय से काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार विपिन उपाध्याय कहते हैं कि मौजूदा राजनीतिक हालात में झामुमो ने घाटशिला विधायक रामदास सोरेन को चंपाई सोरेन के विकल्प के तौर पर पेश किया है, ऐसे में वह घाटशिला और कोल्हान की राजनीति में किसी भी तरह से कमजोर पड़ते नहीं दिखना चाहेंगे, ऐसे में इस बात की प्रबल संभावना है कि प्रदीप बलमुचू के लिए तोरपा सीट छोड़कर घाटशिला को और सुरक्षित बनाने की कोशिश की जाएगी.
क्या कहते हैं झामुमो और कांग्रेस के नेता?
2019 के मुकाबले इस बार विधानसभा चुनाव में कई सीटों की अदला-बदली के सवाल पर झारखंड कांग्रेस के प्रवक्ता जगदीश साहू कहते हैं कि अगर हमारे नेताओं को लगेगा कि सीटों की अदला-बदली से महागठबंधन के परिणाम पर सार्थक असर पड़ेगा तो कई सीटों पर निर्णय लिया जा सकता है.
पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी राकेश सिन्हा ने भी कहा कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम की समीक्षा कर रही है, इसके साथ ही 2019 के विधानसभा चुनाव में हम जहां-जहां हारे हैं उसकी भी समीक्षा की जा रही है कि उस समय किन परिस्थितियों में हम पिछड़ गए थे और उन सीटों पर मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति क्या है.
वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते हैं कि महागठबंधन या इंडिया ब्लॉक के बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला लगभग तय है, कुछ सीटों पर बदलाव की संभावना है क्योंकि इस बार की राजनीतिक स्थिति 2019 के मुकाबले कुछ अलग है, उन सीटों पर चर्चा के बाद महागठबंधन के नेता अंतिम निर्णय लेंगे.
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