मंडी: जानवर और पक्षी का स्वभाव है सूरज ढलते ही पशु-पक्षी घर का रास्ता पकड़ लेते हैं. बिना किसी मदद के वापस अपने गंतव्यों तक भी पहुंच जाते हैं. पुराने समय में कबूतर एक जगह से दूसरी जगह बिना किसी मदद के संदेश पहुंचाते थे. माना जाता है कि जानवर कभी अपना रास्ते नहीं भटकते. कई पक्षी जलीय रास्तों से होते हुए हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं और वापस उसी रास्ते से लौट भी जाते हैं. कुछ पक्षी लंबी उड़ान के बाद भी अपना वापसी का रास्ता आसानी से खोज लेते हैं.
जानवरों के इस व्यवहार को आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने समझ लिया है. जानवरों के इसी विशेष व्यवहार पर आधारित कुछ मिनी रोबोट्स बनाए हैं. भविष्य में ये रोबोट्स स्वचालित वाहनों के लिए मददगार साबित होंगे और इससे इस क्षेत्र में नई क्रांति आने की उम्मीद है. आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ फिजिकल साइंसेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. हर्ष सोनी ने अपने शोध के माध्यम से यह पता लगाने की कोशिश की है कि आखिर कैसे जानवर चरागाह और लंबे सफर के बाद घर वापस आ जाते हैं. भले ही उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़े. शोधकर्ताओं ने इस तथ्य को समझने के लिए इस शोध में छोटे प्रोग्राम योग्य रोबोट्स का उपयोग किया है.
आईआईटी मंडी के वैज्ञानिकों ने किया छोटे रोबोट्स का इस्तेमाल
शोधकर्ता डॉ. हर्ष सोनी ने उदाहरण देते हुए बताया कि, 'होमिंग कबूतर सुरक्षित तरीके से अपना रास्ता खोजने के लिए प्रसिद्ध हैं. वह अपनी कौशलता से लंबी दूरी तक संदेश पहुंचाने के बाद भी वापिस अपने गंतव्य लौट आते हैं. इसी तरह समुद्री कछुए, सामन और मोनार्क तितलियां भी अपने जन्म स्थान पर लौटने के लिए लंबी यात्राएं करते हैं. डॉ. शोध के निष्कर्ष स्वचालित वाहनों के लिए बेहतर नेविगेशन सिस्टम के विकास और खोज एवं बचाव मिशनों में सुधार के लिए उपयोगी हो सकते हैं. जानवरों के इस होमिंग व्यवहार की नकल करने के लिए आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने छोटे रोबोट्स का उपयोग करके इन पैटर्न की जांच की है.'
सेंसर से लैस हैं रोबोट
लगभग 7.5 सेमी व्यास के यह रोबोट वस्तुओं और प्रकाश का पता लगाने के लिए सेंसर से लैस हैं, जिससे वो सबसे चमकीले प्रकाश स्रोत से चिह्नित घर का पता लगा सकते हैं. रोबोट स्वतंत्र रूप से नियंत्रित पहियों का उपयोग करके किसी वाहन की एक स्थान से दूसरे स्थान पर गति की योजना का अध्ययन करते हैं और प्रकाश की तीव्रता के आधार पर अपने पथ को कुछ जानवरों के समान समायोजित करते हैं. अध्ययन के निष्कर्षों को जर्नल पीआरएक्स लाइफ में प्रकाशित किया गया है.
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