देहरादून: उत्तराखंड में हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य हिमालय का संरक्षण और संवर्धन करना है. हिमालय दिवस के अवसर पर राज्य सरकार की ओर से तमाम कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. इस बार वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी में भी कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा है, जिसमें देशभर के तमाम संस्थानों के वैज्ञानिक एकजुट होकर हिमालय की मौजूदा स्थितियों पर चर्चा करेंगे.
साल 2010 में हिमालय दिवस मानने पर दिया गया जोर: साल 2010 में तमाम सामाजिक संगठनों ने एक जुट होकर हिमालय दिवस मानने पर जोर दिया था, जिसके बाद से उत्तराखंड में 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. इसके बाद साल 2014 में तत्कालिक मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 9 सितंबर को हिमालय दिवस मानने की घोषणा की थी, जिसके बाद से ही वृहद स्तर पर प्रदेश भर में हिमालय दिवस मनाया जाता है. साथ ही इस दिन हिमालय के संरक्षण और संवर्धन पर चर्चा की जाती है.
कार्यक्रम में देशभर के वैज्ञानिक होंगे शामिल: हिमालय दिवस पर वाडिया इंस्टीट्यूट में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में हिमाचल प्रदेश के आपदा प्रबंधन निदेशक डीसी राणा, सेंट्रल यूनिवर्सिटी हिमाचल प्रदेश के प्रोफेसर एके महाजन, हिमाचल प्रदेश के एसडीएम कंसल्टेंट डॉ. एसएस रंधावा, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी रुड़की की वैज्ञानिक अर्चना सरकार, आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक राजीव सिंह, उत्तराखंड लैंडस्लाइड मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर देहरादून के निदेशक डॉ. शांतनु सरकार, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. डीपी कानूनगो, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया कोलकात्ता के डीडीजी डॉ. हरिश बहुगुणा, वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डॉ. कालाचंद साई समेत अन्य वैज्ञानिक शामिल होंगे.
हिमालय की मौजूदा स्थितियों पर होगी चर्चा: वाडिया के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. आरजे पेरूमल ने बताया कि हिमालय दिवस मानने की शुरुआत उत्तराखंड से साल 2014 में हुई थी. उत्तराखंड में हर साल आपदा आती है. साल 2010 और 2013 में भी प्रदेश में बड़ी आपदा आई थी, जिसके चलते काफी अधिक नुकसान हुआ था. ऐसे में इस बार वाडिया इंस्टीट्यूट 9 सितंबर को हिमालय दिवस मानने जा रहा है. उन्होंने कहा कि "Climate change how they are affecting the Himalayas" थीम निर्धारित की गई है. जिस पर देश के तमाम संस्थानों से आने वाले वैज्ञानिकों के साथ चर्चा की जाएगी.
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